मंगलवार, 2 जुलाई 2024

धार्मिक आयोजनों में भगदड़ से मौत का वीभत्स चेहरा…

 धार्मिक आयोजनों में भगदड़ से मौत का वीभत्स चेहरा…


उत्तरप्रदेश के हाथरस में धार्मिक आयोजन में भगदड़ से हुई मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया , हृदय विदारक इस घटना ने कई ऐसे सवाल छोड़ गये जो सत्ता को ही नहीं शासन प्रशासन को भी इस घटना का गुनहगार साबित करते हैं।

यही नहीं इस आधुनिक दौर में सूचना के विलंब को लेकर विकसित भारत की जुमलेबाज़ी पर भी सवाल उठाते है कि आख़िर प्रधानमंत्री तक खबर पहुँचते घंटों कैसे लग गये, वही प्रधानमंत्री जो वर्तमान समय को अमृतलाल ही नहीं कहते बल्कि विकसित भारत का भी सपना दिखाते घूम रहे है।

किसी भी आयोजन की स्वीकृति देते वक्त अधिकतम भीड़ की संख्या निर्धारित नही होती क्या। ये सवाल अब क्या मायने रखता है?

धार्मिक आयोजनों में लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं लेकिन उनका रहना खाना पीना भेड़ बकरियों की तरह होता है। धार्मिक संस्थाओं को ये हिदायत क्यों नही हो कि पहले पर्याप्त इंतजाम करो फिर भीड़ बुलाओ।

हाथरस में हुई मौत का जिम्मेदार कौन होगा। धार्मिक टूरिज्म बढ़ाने वाली सरकार ने अपने नागरिकों की सुरक्षा के क्या इंतजाम किये हैं। 

ऐसे कितने ही सवाल हर घटना के बाद होते रही लेकिन कभी इस पर ध्यान नहीं दिया गया।

अब जब यह भयावह घटना हुई तो क्या आयोजकों पर कड़ी कार्रवाई होगी कहना मुश्किल है…


धार्मिक आयोजनों में भगदड़ से मौत का इतिहास…


12 श्रद्धालुओं की जान चली गई थी 2022 में माता वैष्णो देवी मंदिर में, श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची थी भगदड़


250 लोगों की मौत हो गई थी 2008 में राजस्थान के जयपुर शहर स्थित चामुंडा मंदिर में बम की अफवाह से मची भगदड़ में


36 लोगों की मौत हो गई थी इंदौर में रामनवमी के मौके पर एक मंदिर में हो रहे हवन कार्यक्रम में, पुरानी बावड़ी पर बना स्लैब टूट गया था।


39 लोगों की मौत हुई थी महाराष्ट्र के नासिक जिले में कुंभ मेले में भगदड़ मचने से 2003 में


340 से अधिक लोगों की जान गई थी


महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित मंधारदेवी मंदिर में भगदड़ में कुचल जाने की वजह से 2005 में


पिछले दो दशक के दौरान मंदिरों और धार्मिक आयोजनों में मची भगदड़ में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है। 2000 के बाद देश में भगदड़ मचने से हुए बड़े हादसों पर एक रिपोर्ट।


146 लोगों की मौत हुई थी हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में अफवाह के कारण मची भगदड़ से 2008 में


27 तीर्थ यात्रियों की जान चली गई थी आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में गोदावरी नदी के किनारे घाट पर भगदड़ मचने के कारण 2015 में


20 श्रद्धालुओं को जान गंवानी पड़ी थी हरिद्वार में हरकी पैड़ी घाट पर भगदड़ मचने की वजह से 2011 में


63 लोगों की मौत हुई थी 2010 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में मची भगदड़ के दौरान


32 लोगों की जान गई थी पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 2014 में, दशहरा मेला खत्म होने के बाद हुई थी घटना


115 लोगों की मौत हो गई थी 2013 में मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित रतनगढ़ मंदिर के नजदीक । पुल गिरने की अफवाह से मची थी भगदड़


पुलिसकर्मी से कथित बाबा बने सूरज पाल को जान लीजिए…


सूरजपाल ने सत्संग के लिए ही एसआइ की नौकरी छोड़ी थी। वह अक्सर वर्दी में ही प्रवचन देने लगता था। महकमे में सवाल उठे तो उसने सत्संग में ही रमने का मन बना लिया। वह कोट-पैंट पहन कर ही पहुंचता था। साथ में पत्नी भी होती थी। उत्तर प्रदेश में कासगंज जिले के बहादुरनगर गांव के रहने वाले सूरजपाल के पिता किसान थे। प्रवचन के प्रति बचपन से ही उसकी रुचि थी। पुलिस में सिपाही के रूप में भर्ती हुआ और पदोन्नत होकर एसआइ बना। उत्तर प्रदेश के 12 थानों के अलावा एसआइयू में भी तैनात रहा। नौकरी के दौरान भी वह प्रवचन देता रहता था। इस बात की चर्चा काफी होने लगी तो 18. वर्ष नौकरी करने के बाद पिछली सदी के नौवें दशक में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। इसके बाद प्रवचन- सत्संग शुरू कर दिया। इसके साथ ही नाम बदलने का निर्णय लिया। नया नाम रखा नारायण साकार विश्व हरि । उत्तर प्रदेश के साथ ही राजस्थान और मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में उसके अनुयायी हैं। बाबा और उनके अनुयायी मीडिया से दूरी बनाकर रखते हैं।

मिठलबरा के बाद डर‌पोक-चापलूस का तमगा…

 मिठलबरा के बाद डर‌पोक-चापलूस का तमगा…


शोले फिल्म का एक मशहूर डॉयलाग है,गब्बर का नाम मिट्टी में मिला दिया… यह डायलॉग कांग्रेस नेता रविन्द्र चौबे पर कितना फिट बैठता है यह तो उनके अपने ही तय करेंगे, लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेताकों में शुमार रविन्द्र चौबे की राज्य बनने के बाद से ही पोल खुलने लगी थी।

समाज से जुड़े लोगों ने तो रवींद्र चौबे को पहले ही मिठलबरा का तमगा दे रखा था, और अजीत जोगी की चापलूसी का तमगा भी जुडेते जुड़ते इसलिए रह गया क्योंकि,  राज्य बनने के बाद सत्ता तीन साल ही चल पाया, लेकिन नेता प्रतिपक्ष बनते ही जिस तरह से चौदहवें मंत्री के रूप में गिनती हुई, रहा सहा साख भी जाता रहा। और इस करनी का फल यह हुआ कि कांग्रेस का गढ़ तो ढहा ही परिवार की साख भी जाते रही । हद तो तब हुआ जब बाफना की इस पटखनी के बाद भी उनका रवैया नहीं बदला।

इसके बाद भूपेश सरकार में मंत्री बनने के बाद भी मोहन सेठ से पिछले दरवाजे से संबंध ने कई तरह के गुल खिलाने की चर्चा को ही हवा नहीं दी बल्कि मंत्री बने रहने की चाह ने अब उन पर चापलूसी ही नहीं बलि डरपोक होने का भी तमगा लगा दिया।

अब तो इस बात की हवा तब और फैलने लगी जब कथित लेटर बम के हर पन्ने में रवींद्र चौबे को डरपोक - चापलूस बताया गया।

एक तो पहले ही ईश्वर साहू जैसे अनजान चेहरे से हार जाने का दर्द वे भूल नहीं पा रहे हैं उपर से हप्पोक और चापलूस का यह तमगा उनकी राजनीति को किस दिशा में ले जाएगा कहना मुश्किल है।