शनिवार, 24 अगस्त 2024

ओपीएस - एनपीएस - यूपीएस के बाद क्या ...

 ओपीएस - एनपीएस - यूपीएस के बाद क्या ...


एक बार फिर सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन स्कीम लागू करने की घोषणा कर दी गई है। लेकिन ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग पर अड़े कर्मचारियों का ग़ुस्सा इससे शांत नहीं हो रहा  है, वे  इस नये पेशन स्कीम यानी यू पी एस को अपनाने तैयार नहीं हैं।

दरअसल ओपीएस का मामला इतना बड़ा हो गया कि वह चुनाव को प्रभावित करने लगा है और जब अब हरियाणा - जम्मूकश्मीर के बाद महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसमा का चुनाव है तो मोदी सरकार ने यूपीएस स्कीम लांच कर कर्मचारियों के ग़ुस्से पर पानी डालने की कोशिश कर रही है। लेकिन लगता है कि इससे बात नहीं बनने वाली है कर्मचारी संगठनों ने अपनी ओपीएस की माँग को दोहराते हुए नये सिरे से आन्दोलन की रूपरेखा बनाने की घोषणा कर दी है।

असल में एन पी एस को लागू करने का काम भारतीय जनता पार्टी की सरकार के पूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में शुरू किया गया था, इसलिए कर्मचारियों का ग़ुस्सा बीजेपी पर फूटने लगा है। और मोदी सरकार जानती है कि यदि कर्मचारियों को नहीं मनाया गया तो जैसे जैसे आन्दोलन तेज होगा, बीजेपी का चुनाव जीतना मुश्किल होता चला जायेगा।

इस स्कीम के लागू होते ही कर्मचारियों के पास विकल्प चुनने का अवसर तो बढ़ गया है लेकिन वोट की राजनीति के चलते जिस तरह से सरकार नई-नई पेंशन स्कीम ला रही है क्या आने वाले दिनों में कोई और स्कीम लाई जायेगी।

इस नई पेंशन स्कीम के तहत केंद्रीय कर्मचारियों के अंतिम वेतन के 40 से 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन की गारंटी होगी. आसान भाषा में कहें तो, यदि आपका 50,000 रुपये महीने के अंतिम वेतन पर रिटायर होते हैं तो, आपको 20 से 25 हजार रुपये प्रति महीने पेंशन के रूप में दिया जाएगा. हालांकि कुल सेवा का समय और पेंशन कोष से आपके द्वारा किसी भी प्रकार की निकासी का समायोजन किया जाएगा. इस पेंशन गारंटी को पूरा करने के लिए पेंशन कोष में किसी भी कमी को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के बजट से पूरा किया जाएगा. 

दावा किया जा रहा है कि अगर राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली को लागू किया जाता है तो 1 जनवरी साल 2004 से नेशनल पेंशन स्कीम में रजिस्ट्रर्ड कें 87 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारियों को इसका फायदा मिलेगा. वित्त मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, डीए दरों में बढ़ोतरी के साथ यह राशि बढ़ती रहती है. मंत्रालय ने कहा था कि ओपीएस वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं है क्योंकि यह अंशदायी नहीं है और सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता रहता है. 

सत्ता के नर‌पिशाचों की हवस...

 सत्ता के नर‌पिशाचों की हवस... 


दिल्ली की निर्भया से लेकर उत्तराखंड की अंकिता भंडारी,  कुछ भी तो नहीं बदला है। बल्कि कानून कड़े  करने की नौटंकी और राजनैतिक नफा-नुक़सान  वाला प्रदर्शन नया जुड़ गया है। 

ऐसे में छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में बलात्कारियों के साथ सत्ता का गठजोड़ एक वीभत्स चेहरा  के रूप सामने आकर छाती ठोंककर खड़ा होने लगा है। राजनैतिक दलों की बेशर्मी को उजागर करती घटनाएं क्या इस शांत प्रदेश को उद्देलित नहीं करती ।

ऐसा भी नहीं है कि रायगढ़ और कांकेर में हुए गैंगरेप पर जो मीडिया आज खामोश है, पहले भी ऐसा ही था । तब मीडिया ईट पर ईट बजा देता था और न तो  राजनैतिक दलों की और न ही उनके नेताओं की हिम्मत पड़ती कि वह किसी यौन शोषण के किसी छिछोरे  के साथ खड़ा  हो सके ।

लेकिन राज्य बनने के बाद सत्ता ने जिस तरह से मीडिया को अपने ईशारे पर नचाना शुरु किया है उसके बाद ऐसे छिछोरों के साथ न केवल नेता बल्कि समूची पार्टी खड़ी हो जाती है।

रायगढ़ के भाजपा जिलाध्यक्ष अग्रवाल की करतूत पर तो उसे हटाने की बजाय समू‌ची पार्टी का इस कदर संरक्षण में खड़ा रहा कि बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी गई।

कांकेर के बाहुचर्चित घटना के आरोपी को तो सांसद की रिकिट तक दे दी गई।

और औद्योगिक नगरी के विमला रेप कांड का कथित आरोपी सत्ता तक जा पहुंचा है तो फिर हिमशिखर गुप्ता से लेकर कितने ही नाम बरबस ही याद आ जाते हैं जो सत्ता और नेताओं के साये तले अपनी हवस के लिए नरपिशाच से कम नहीं है।

क्या एक बार फिर उन घटनाँओं को सामने लाया जाना चाहिए जिसने आदोलन की शक्ल लेकर समूचे छत्तीसगढ़ में हलचल मचा दी थी।

हमने तय किया है कि अब इतिहास के पन्नों को कुरेद कर उन नरपिशाचों की करतूत को लोगों तक लाने की जो शायद आम लोगों को यह से सोचने के लिए मजबूर कर दे कि राजनीति में हवस के नरपिशाचों के लिए कोई जगह नहीं है और राजनैतिक दल भी ऐसे लोगों से ही दूरी बना लें।

याद कीजिए 80 के दशक की नह श्वेता हत्याकांड जिसने समूचे छत्तीसगढ़ में अपने विरोध प्रदर्शन से हलचल मचा दी थी, और पुलिस की वह भूमिका जिसने आनन फानन में किसी को भी पकड़ लेने की पटकथा लिखी थी । इस घटना में शामिल डाक्टरी की पढ़ाई करने वालों को बचाने की भी चर्चा रही। क्या है यह श्वेता रेप हत्याकांड, पूरे मामले को  एक बार किए आपकी आँखों के सामने लाने की कोशिश होगी। विमला रेप कांड हो या हो या कांकेर रायगढ़ हो या छत्तीसगढ़ के किसी भी हिस्से का रेप कांड  सिलसिलेवार प्रस्तुत करने की कोशिश होगी।

किस किस पाटी के कौन कौन से नेता या फिर संभ्रात परिवारों के रईसज़ादे ? सब कुछ आपने सामने लाने की कोशिश... (शीघ्र ही)