मंगलवार, 3 सितंबर 2024

पवन नहीं यह झोंका है...

 पवन नहीं यह झोंका है...


रिमोट से चलने वाली सरकार के रूप में बदनाम हो चुने साय सरकार कब तक मंत्रिमंडल का विस्तार करेगी, निगम-मंडल में नियुक्ति कौन करेगा के सवालों के बीच पवन साय अचानक भाजपा के संगठन मंत्री पारी नेताकों में सबसे ताकतवर शख्स नजर आने लगे है तो इसकी कई वजह है।

वैसे तो भाजपा में संगठन मंत्री की ताकत क्या होती है यह किसी से छिपा नहीं है, सारंग बंधु से लेकर सौदान सिंह और अब पवन साय की ताकत का अहसास पार्टी के नेताकों को भी है, लेकिन कहा जाता है कि सत्ता आने के बाद भी ताकतवर होने का ऐसा उदाहरण बहुत कम देखने को मिलता है कि लालबत्ती के लिए भी भीड़ मुख्यमंत्री से ज्यादा संगठन मंत्री जुटा ले। हालांकि कुछ लोग नीतिन नबीन और जामवाल के पास भी पहुंच रहे हैं लेकिन जब सब कुछ तय करने का ईशारा संगठन मंत्री की ओर किया जाए तो फिर क्यों न पवन साय को ही सत्ता केन्द्र मानकर भीड़ बढ़े।

और शायद यही वजह है कि बिल्डर्स से लेकर भ्रष्टाचारी हो या आपराधिक छवि वाले नेता ही क्यों न हो, सत्ता केन्द्र को ही खुश करने में लगे हैं।

ऐसे में यदि मंत्रालय में भी भाई साहब ! वाली संस्कृति का ही प्रभाव बढ़ रहा हो तो फिर अफसरों के काम काज पर इसका असर पड़‌ना तय है।

ऐसे में लालबत्ती की चाह में चक्कर पर चक्कर लगा रहे नेता अब पवन साय को खुश करने में लगे हैं लेकिन पवन साय को जानने वाले कहते हैं कि वे भी सायं सायं  में माहिर है।

सायं साये में माहिर तो सौदान सिंह भी थे लेकिन इतनी भीड़ वे भी नहीं खींच पाये थे, और चर्चा इसी बात की है कि जब इतनी भीड़ नहीं खींच पाने के बाद भी सौदान सिंह इतना खींच गये तो फिर भीड़ वाले कितना खींच रहे हैं। और शायद यही वजह है कि भाजपाई राजनीति में इन दिनों यह नारा जोरों से उछाला जा रहा है—-

  पवन नहीं यह झोंका है

 लालबत्ती का धोखा है...।