गुरुवार, 29 अगस्त 2024

मोदी का विकास , दरकता विश्वास

 मोदी का विकास

दरकता विश्वास


कंगना रानौत के मुताबिक इस देश को आजादी तब मिली जब नरेन्द्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने। और तब से जो विकास की नदियां इस देश में बहना शुरू हुआ है उसकी गाथा भी गजब है।

जीएसटी की विसंगतियां और पेट्रोल डीजल पर खून निचोड़ने वाला टैक्स, मित्र-प्रेम के चलते खाई बनती असमानता, इलेक्ट्रोलर बांड से वसूली, पीएम केवर फंड की लूट और नफरत के बाज़ार सज़ा कर वोट की फसल काटने के खेल के बीच विकास की चकाचौंध। 

क्या यह सब इस देश की सत्ता को तानाशाही के रास्ते नहीं ले जा रहा था। और उसकी पराकाष्ठा नान बायोलॉजिकल नहीं था।

लेकिन धर्म और स्वार्थ की पट्टी  बांधे लोग आज भी बेरोजगारी और मंहगाई के भीषण त्रासदी को नहीं समझ पा रहे हैं तो इसका परिणाम क्या भयावह नहीं होगा।

अपराध पर राजनैतिक  नफा नुक़सान का खेल नया नहीं है और राष्ट्रपति की भूमिका पर सवाल भी।

लेकिन यदि न खाऊंगा, न खाने दूँगा के जुमले में केवल विरोधियों को ही फंसाया जाए और ख़ुद वाशिंग मशीन बन जाये तो महाराष्ट्र के लोगों के लिए भगवान माने जाने वाले शिवाजी महाराज की प्रतिमा कहां टिक पायेगी। 

लेकिन दूसरों के पाप गिनाकर स्वयं के पाप को ढंकने की कोशिश को लोगों ने उज्जैन में भी देखा तो अयोध्या में, दिल्ली के प्रगति मैदान में देखा तो नये संसद भवन में टपकते पानी में भी ।

जो देख पा रहे हैं वे जाग चुके है और जिन्होंने धर्म और स्वार्थ की पट्टी बांध रखी है वे कंस और रावण की श्रेणी में स्वयं को खड़ा कर चुके हैं। क्योंकि राम और कृष्ण ही नहीं रावण और कंस भी हिन्दू थे।

कर्म का फल एक न एक दिन मिलता है। 

ऐसे में यदि 240 के संकेत समझ में न आये ।  हम बंटेगे तो कटेंगे और असम में क़ब्ज़ा नहीं करने दूंगा के नफ़रती बोल 440 का झटका जरूर देगा।

ऐसे में राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता का असर न केवल स्मृति ईरानी  के अलावा कई विरोधियों में दिखाई देगा तो मोदी की बिगड़ती छवि से संघ प्रमुख मोहन भागवत ही नहीं चीन और अमेरिका भी चिंतित होंगे।