रविवार, 18 अगस्त 2024

उठो द्रोपदी...

 उठो द्रोपदी...



पिछले एक सप्ताह से अचानक सोशल मीडिया में उठो द्रौपदी... शास्त्र उठा लो, अब गोविन्द न आयेंगे की गूंज तेज होने लगी।

लेकिन क्या द्रोपदी के शस्त्र उठाने को यह समाज बर्दाश्त कर पायेगा?

इस दौर में शस्त्र उठाने वाले द्रौपदी को छिनाल कहने से क्या वे चुकेंगे?

याद किजिए जब विनेश फोगाट, साक्षी मलिक ने छोटे-छोटे बच्चियों की छाती पर हाथ धरने वाले के खिलाए जब शस्त्र उठाया था, तब क्या उन्हें छिनाल कहने वाले वहीं लोग नहीं थे जो अब उठो द्रोपदी.. का राग अलाप रहे हैं।

किस तरह से पूरी सरकार छिछोरा बृजभू‌षण शरण सिंह को बचाने कूद पड़ी थी।

कुलदीप सेंगर, चिन्म्यानंद और बृजभूषण शरण सिंह जैसे छिछोरों को भगवान की तरह जब तक पूजा जाता रहेगा,  क्या कोई द्रोपदी शस्त्र उठा पायेगी?

शस्त्र तो उस द्रौपदी ने भी उठाने की हिम्मत नहीं कि क्योंकि राजा धृतराष्ट्र था और भीष्म-द्रोणाचार्य की भूमिका दुर्योधन - दुसाशन की जय करने की थी।

अपराजेय निवेश के स्वदेश लौटने के बाद हुए स्वागत देख जिनकी  छाती में अब भी साँप लोट रहे हैं, वे भी द्रोपदी को शस्त्र उठाने का हुंकार भर रहे हैं। 

इन शस्त्र उठाने की हुंकार भरने वाले क्या अपने राजनैतिक दलों में मौजूद छिछोरों को पार्टी से हटाने की मांग कर पायेंगे।

शस्त्र द्रोपदी को नहीं अर्जुन को उठाना होगा, तभी धृतराष्ट्र के संरक्षण द्रोपदी को जंघा में बिठाने का दुस्साहस बंद होगा।

एक प्रदर्शन इन राजनैतिक दलों में मौजूद छिछोरों को पार्टी से निकाले जाने के खिलाफ भी होना चाहिए ।