बुधवार, 19 जून 2024

मोदी का इटली दौरा क्यों विवाद में

 मोदी का इटली दौरा क्यों विवाद में, क्या वहाँ अपमान हुआ 


दुनिया के सात शक्तिशाली देशों के जी सेवन की बैठक में भारत को आमंत्रित तो किया गया लेकिन क्या पीएम मोदी को वहाँ जाना था ?

सबसे बड़ी बात तो यह है कि इटली का व्यवहार भारत के प्रति रूखा रहा, भले ही गोदी मीडिया इटली के प्रधानमंत्री जर्जिया से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भेंट को जोशीला बता रही हो लेकिन जर्जिया के दूसरे देशों के प्रमुखों से भेंट का जो वीडियो आया है वह सब कुछ साफ़ कर देता है 

पूरी रिपोर्ट आप देखें और तय करें…

https://youtu.be/JBGFAo7RYvI?si=8wAUWOzxS_PFs40R

बड़े बेआबरू होकर...

 बड़े बेआबरू होकर...


भले ही मोहन सेठ ने मूंछ पर ताव नहीं मारा हो, या मोदी की तरह छाती ठोंक कर  गारंटी नहीं दी थी कि, वे ६ माह मंत्री पद नहीं छोड़ेंगे लेकिन एक निजी चैनल को दिये इन्टखयू में उन्होंने मंशा  जता ही दी थी कि वे भले ही विधायकी छोड़ दें लेकिन मंत्री पद पर ६ माह रह सकते हैं। और इसलिए वे जब इस्तीफा देने निकले थे तो केवल विधायक पद से ही इस्तीफ़ा दिया था।

कांग्रेस को पटखनी देने में माहिर मोहन सेठ को तब कहां मालूम था कि उन्हें मंत्री पद पर रंगा-बिल्ला एक दिन भी देखना नहीं चाहते और न ही उन्हें यह भी मालूम था कि वे कांग्रेसियों को साधने के चक्कर में पार्टी के भीतर उन्होंने विरोधियों की फौज खड़ी कर रखी है, और इसी फ़ौज ने उन्हें पहले विधायकी से निपटाया फिर मंत्री पद से । लोग तो इस फ़ौज में डॉ. रमन सिंह, से लेकर राजेश मूणत, सहित कई नाम गिना रहे हैं जिसमें ताजा नाम अरुण साव का भी शामिल हो गया है, वैसे तो बिलासपुर जिले के कई नेताओं के नाम शामिल है खासकर अफसरी से राजनीति में आये ओपी चौधरी का नाम भी तो इस फौज में है।

और शायद यही वजह है विधायक पद से इस्तीफ़ा देने के बाद मोहन सेठ इस कदर निश्चिंत थे कि उन्होंने विभाग की बैठने तक ले ली, लेकिन वे अपनी फाइलें रोकने की घटना को नजर अंदाज करते रहे।

आड‌वानी-जोशी को किनारे लगाने वालों के लिए यह कोई मायने नहीं रखता कि मोहन सेठ रायपुर दक्षिण के अपराजेय योद्धा है. और शायद चर्चा इसलिए इस बात की है कि उन्हें कैबिनेट की भरी बैठक में इस्तीफ़ा देने कहा गया1 यानी घोर बे….!

तब मोहन सेठ का इस्तीफ़ा देते समय आंसू निकलना स्वाभाविक है, और लोगों का क्या ?  विरोधी कह रहे हैं कि उन्हें तो विधायकी के साथ ही मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था, कम से कम ये स्थिति तो नहीं बनती तो समर्थक अब  रंगा-बिल्ला के साथ प्रदेश में पनप आये नये कॉकस को गरिया रहे हैं।


साय खिंचवा रहे हैं सायं-सायं फ़ोटो

 साय खिंचवा रहे हैं

सायं-सायं फ़ोटो 


इसे फोकट के पाय तो मरत ले खाय की  छतीसगढ़ी कहावत  से जोड़ना बेमानी होगी, लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इन दिनों सोशल मीडिया में छाए हुए हैं तो इसकी वजह  उनका मीडिया मैनेजमेंट हैं, हालांकि उनका मीडिया सलाह‌कार को लेकर पत्रकारो में जो चर्चा है वह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मीडिया सलाहकार की तरह ही है। कंवल ओढ के...!

ख़ैर आज चर्चा तो मुख्यमंत्री के धान बोवाई की तस्वीर की है  जिसे लेकर लोग बेवजह विवाद पैदा कर रहे हैं और अब विष्णुदेव साय की तुलना एक ऐसे नेता से होने लगी है जो छत्तीसगढ़ी संस्कृति की दुहाई देते हुए हाथ में भौरा चलाते थे । उसका परिणाम अब सबके सामने है।

इसमें कोई शक नहीं होगा कि विष्णुदेव साय पहले भी किसानी करते रहे होंगे, लेकिन कभी फोटो-सोटो खिंचाने की नहीं सोची होगी, लेकिन अब मुख्यमंत्री बनने के बाद भी किसानी करनी है तो फ़ोटो-शोटो ठीक-ठाक आना चाहिए तो उसी ढंग से पहनावा भी तैयार किया गया। ऐसे में पूर्वगृहमंत्री ननकीराम कँवर की किसानी वाली तस्वीर को बाजू में चिपकाकर देखना चाहिए खेती का तरीका क्या होना चाहिए।



ख़ैर अब मीडिया सलाहकार का मैनेजमेंट का कोई जवाब नहीं , सभी बड़े अख़बारों में छप तो गया अब लोगों का क्या - वे तो बोलेंगे ही।

अब आने वाले तीज़ त्यौहार में कैसे मैनेजमेंट होगा बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए।