सोमवार, 2 जून 2025

नेहरू का यह सच होश उड़ा देंगे…

 नेहरू का यह सच होश उड़ा देंगे…


पहले नेहरू को छोटा करने विषवमन हुआ, उससे भी बात नहीं बनी तो सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते तो… का मायाजाल बिछाया गया और जब इससे भी बात नहीं बनी तो सरदार पटेल की प्रतिमा बड़ी बना दी गई तब भी नेहरू का क़द वे छोटा नहीं कर पाये। तब सवाल ये है कि आख़िर वे लोग नेहरू को छोटा क्यों बताना चाहते है? झूठ और नफ़रत के आसरे धर्म की राजनीति करने वालो को यह ज़रूर पड़ना चाहिए…

एक दशक से फैलाया जा रहा है कि पंडित नेहरू अपनी पत्नी कमला नेहरू को धोखा देकर एडविना के साथ इश्क लड़ा रहे थे। इस दावे में उतनी ही सच्चाई है जितने की उम्मीद किसी संघी से की जा सकती है। 

डिस्कवरी ऑफ इंडिया में पंडित नेहरू ने विस्तार से कमला नेहरू और उनके अंतिम दिनों के बारे में लिखा है। लगभग 8 से 10 पेज में है। उस दौर की तमाम बातें, कमला नेहरू के साथ उनका रिश्ता, कैसे उम्र के साथ बढ़ती आपसी समझ, कैसे उनकी बीमारी के समय जेल में थे, जेल से छूटे और सीधे स्विटजरलैंड पहुंचे जहां उनका इलाज चल रहा था। कमला नेहरू के साथ इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी पहले से मौजूद थे। 

कमला नेहरू जी 1920 के बाद से ही बीमार रहने लगी थीं। इसके बावजूद आंदोलन में सक्रिय रहती थीं। बीच-बीच उनका अलग-अलग जगहों पर इलाज चलता था। इसके लिए पंडित नेहरू उन्हें अलग जगह ले जाते। कोलकाता और श्रीलंका में भी उनका इलाज चल चुका था। वे लंबे समय तक इलाज के लिए नैनीताल और देहरादून भी रहीं। 

1933 में जब उनकी हालत ज्यादा तो उन्हें अल्मोड़ा के सैनिटोरियम में रखा गया था। पंडित नेहरू भी अल्मोड़ा जेल में ही बंद थे। इस दौर में नेहरू कई बार जेल गए और जब भी जेल से छूटते थे, कमला नेहरू का इलाज कराते थे। 

1935 में जब डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें स्विट्ज़रलैंड ले जाया गया, उस समय पंडित नेहरू जेल में बंद थे। अंग्रेजों ने रिहाई के लिए शर्त रखी कि बाहर निकलकर राजनीति न करें तो छोड़ सकते हैं। नेहरू सावरकर नहीं थे। उन्होंने राजनीति छोड़ने से मना कर दिया। 

कमला नेहरू की बिगड़ती तबियत को देखते हुए अंग्रेज सरकार पर काफी दबाव डाला गया और तब जाकर वे रिहा हुए। रिहा होते ही इलाहाबाद पहुंचे और वहां से 8 दिसंबर 1935 को स्विट्ज़रलैंड रवाना हो गए। 

लंबे समय तक इलाज के बाद 28 फरवरी 1936 को कमला नेहरू का निधन हुआ तब पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी उनके साथ ही थे। 

लौटते समय के बारे में उन्होंने जो लिखा है, वह बहुत मार्मिक है कि सबकुछ खो गया था, जैसे रोशनी चली गई थी। उन्होंने जो लिखा है, उससे पता चलता है कि कैसे वे दोनों एक दूसरे के प्रति स्नेह और सम्मान से भरे हुए थे। 

जब यह सब हुआ, तब एडविना माउंटबेटन सीन में कहीं नहीं थीं। कमला नेहरू की मृत्यु के 11 साल बाद, 1947 में दिल्ली आईं। 

आप सोचिए कि संघी नेहरू को लेकर किस हद तक कुंठित और घृणा से भरे हुए हैं। जिस व्यक्ति ने अपना परिवार, घर सबकुछ देश के लिए कुर्बान कर दिया, जो व्यक्ति आजादी के लिए लगभग 10 साल जेल में रहा, उसके निजी जीवन को लेकर घिनौनी बातें फैलाते हैं। 

वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उनके पास न तो नेहरू जैसा कोई है, न अगले हजार साल तक कोई हो सकता है।(kk)