गुरुवार, 25 जुलाई 2024

योगी के ख़िलाफ़ ऐसा षड़यंत्र…

 मोदी के बाद योगी'

पर लग रहा पलीता.


लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा बेचैन संघ है लेकिन मोदी के आगे घुटने टेक चुके संघ प्रमुख की दिक्कत यह है कि वे इस बात का विरोध भी नहीं पा रहे हैं कि आखिर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इतनी छिछालेदर क्यों की जा रही है।

दरअसल योगी आदित्यनाथ पर प्रहार तो लोकसभा चुनाव के बहुत पहले जब उत्तरप्रदेश में विधानसभा का चुनाव हुआ था तभी से योगी के खिलाफ षड़यंत्र शुरु हो चुका था। और इसकी एक मात्र वजह सोशल मीडिया में चलने वाला वह नारा था 'मोदी के बाद योगी।

इस नारे से भाजपा के गुजराती लॉबी में बेचैनी की खबर आने लगी। तब सवाल यह था कि आख़िर मोदी के बाद योगी वाले नारे से किसे दिक़्क़त थी और यह नारा किसे सबसे  ज्यादा परेशान कर रहा है।

क्या वे लोग परेशान हैं जो योगी के मुख्यमंत्री बनने से पहले अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे या ख़ुद अमित शाह।

यह गंभीर सवाल है, जिसका जवाब सीधे कोई नहीं देना चाहेगा। लेकिन उत्तरप्रदेश में अमित शाह के बढ़ते हस्तक्षेप की जो चर्चा रही, उससे यह समझा जा सनता है कि योगी के बढ़ते कद को कौन रोक रहा था या किसे दिक़्क़त है…?

तब लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद केशव‌प्रसाद मोर्या को क्या आगे ला कर फिर योगी को बदनाम करने की कोशिश हो रही है?

लेकिन भाजपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत आज भी संघ है। क्योंकि कहा जा है कि यदि संघ ने इस मामले में कड़ा रुख़ अख़्तियार नहीं करता तो योगी बहुत पहले ही हटा दिये जाते।तब मोदी के प्रभाव का डंका भी बज रहा था।

लेकिन अब बदली हुई परिस्थिति में योगी को हटा पाना इसलिए मुश्किल है क्योंकि लोकसभा के परिणाम से साफ़ है कि अब मोदी के चेहरे से यूपी में चुनाव नहीं जीता जा सकता?

हालोकि भाजपा के भीतर खाने में चर्चा यह भी है कि योगी को बचाने में संघ की भूमिका केवल बतौलेबाजी है। असल बात तो यह है कि मोदी-शाह भी जानते और मानते हैं कि उत्तरप्रदेश में योगी से बड़ा न तो कोई बड़ा नेता है और न ही किसी भाजपा नेता में वह दम है कि उत्तरप्रदेश में सरकार अपने बूते पर बना ले।

तब क्या यह पूरा खेल योगी को हटाने नहीं बल्कि योगी की छवि को बिगाड़‌ने का है ताकि मोदी के बाद योगी के नारे पर पलीता लग जाए?

मंत्री पद जाने का असर…

 मंत्री पद से  इस्तीफ़ा का असर...


कहा जाता है कि मंत्री पद का अपना जलवा है और मंत्री पद के साथ मिलने वाली सुविधा का अपना मिजाज । और मंत्री पद ही छिन जाये तो सबसे ज्यादा परिवार वालों पर इसका असर होता है। बंगला छिने जाने का असर के कई किस्से है। और नेता के परिवार वालों का बंगला छिने जाने के बाद बंगले के दीवार, खंभे से लिपटकर रोने के भी किसे चर्चा में रहे हैं। तो चेहरे से हंसी गायब हो जाने और भूख नहीं लगने , कुछ भी अच्छा नहीं लगने के किस्से भी जान चर्चा में रहे हैं। 

ऐसे में रायपुर के सांसद बने बृजमोहन अग्रवाल के मंत्री पद से इस्तीफा का असर भी जनचर्चा में है।

बड़े भाई गोपाल अग्रवाल ने तो सोशल मीडिया में अपना तेवर भी दिखाना शुरू कर दिया है। 



वे लगातार भाजपा की सरकार को कोस रहे हैं। जबकि वे खाटी संघी है और महानगर प्रमुख भी रह चुके हैं। पहले वे मीडिल क्लास की तकलीफ के बहाने गरियाते रहे तो अब बजट पर को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

दूसरे छोटे माई योगेश आग्वाल के अपने ही क़िस्से हैं। चला मुरारी हीरो बनने की तर्ज़ पर कवर्धा कांड  के किस्से तो सभी जानते ही हैं कि होटल में क्या क्या हुआ अब चेंबर की बैठक में उनके हरकतों को तिलमिलाहट की संज्ञा दी जा रही है। क्योंकि चेम्बर चुनाव में मोहन सेठ की सत्तावाली ताकत के बाद भी वे बुरी तरह हार गये थे।

एक और छोटे भाई तो रायपुर दक्षिण से विधायक बनने का सपना ही पाल लिया है और कहा जा रह है कि पत्रकारों से अपनी दावेदारी को सबसे सक्षम बताने और मोहन सेठ का सही उत्तराधिकारी बताने में लग गये है। इस सबसे  दूर यशवंत का मिजाज भी कम चर्चा में नहीं है उनके इस तरह से राजनीति से दूरी पर कई तरह की चर्चा है जो पारिवारिक बताया जा रहा है।

यानी मंत्री पद चले जाने का असर इस तरह चर्चा में है।।