इस पूर्व सैनिक ने बता दिया सेना की वर्दी की सच्चाई…
ऑपरेशन सिंदूर अभी चल ही रहा है और देश के प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पोस्टर लगवाकर चुनावी प्रचार में कूद पड़े हैं। अब भी कई सवाल का जवाब आना बाक़ी है , सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि पहलगाम में सीआरपीएफ़ किसके कहने से और क्यों हटाया गया जबकि सीजफ़ायर को लेकर सवाल है तो सेना को हुए नुक़सान को लेकर भी धुँध अटा पड़ा है, विजय शाह से लेकर दूसरे भाजपाइयों के विषवमन के बीच अब रेलवे टिकिट में मोदी की फ़ोटो के अलावा वर्दी में मोदी वाले पोस्टर पर सवाल का जवाब पूर्व सैनिक मुकेश कुमार बहुगुणा का लेख की हक़ीक़त ज़रूर पढ़ना चाहिए…
#लोकतंत्र_सेना_की_वर्दी और #युद्ध_का_उन्माद
इन लोगों के नाम तो जानते ही होंगे आप -
क्लीमेंट एटली, हेरोल्ड मैकमिलन, जेम्स कैलाघन, एडवर्ड हीथ ( चारों ब्रिटेन ),एहद बराक , मेनाकम बेगिन, नताली बेनेट, बेंजामिननेतान्यहू, एरियल शेरोन (सभी इजराइल ) , जॉर्ज डब्ल्यू बुश ( सीनियर ), जॉर्ज बुश ( जूनियर ), जिमी कार्टर, डी आइजनआवर , गेराल्ड फोर्ड ( सभी अमेरिका ), चार्ल्स डी गाल ( फ्रांस ) .....
ये सभी वे लोग हैं जो #राष्ट्रपति या #प्रधानमंत्री के रूप में अपने #देश_की_सरकार_के_मुखिया रह चुके हैं... मुखिया होने के अलावाइन सभी ने #सेना_में_सेवा दी है, #युद्ध_में_भाग भी लिया है, और इनके मुखिया रहते हुए इनके देश ने #युद्ध_भी_लड़े या#मिलिट्री_आपरेशन किये हैं...
ऐसी सूची बहुत लम्बी है, यूरोपीय देशों सहित दुनिया के कई देशों के बड़े नेता सैन्य सेवा में रह चुके हैं, सिर्फ अमेरिका में ही 31 ऐसेराष्ट्रपति हो चुके हैं, जो पूर्व सैनिक थे ).... अतः, यहाँ सिर्फ कुछ के ही नाम लिखे हैं..
पर, आपको इनकी ऐसी कोई तस्वीर नहीं मिलेगी, जिसमें मुखिया के रूप में कार्य करते हुए ये सेना की वर्दी में सार्वजनिक रूप से आयेहों..... ऐसा कोई वाकया नहीं मिलेगा ज़ब इन्होंने #वोट_के_लिए_सेना_की_वर्दी या प्रतीक या सेना के कार्यों का प्रयोग किया हो...
कारण ? कारण यह है कि एक मैच्योर लोकतान्त्रिक व्यवस्था में #शक्ति_का_श्रोत मूलतः जनता में निहित होता है, जिसकाप्रकटीकरण जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के रूप होता है... जो इस शक्ति का प्रयोग राज्य के संवैधानिक संस्थानों ( विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका ) द्वारा निरुपित व्यवस्थाओं के माध्यम से करते हैं...
विदेशों के अलावा, हमारे देश भारत में भी कई ऐसे बड़े लोग हो गये हैं जो #सेना_में_एक्टिव_सेवा करने के बाद जनप्रतिनिधि ( विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री ) के रूप में कार्य कर चुके हैं, राज्यपाल और अन्य संवैधानिक पदों भी रह चुके हैं...
लेकिन आपने इनमें से भी किसी को जनप्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए सेना की वर्दी में नहीं देखा होगा.. जरूरत हुई तो अपनेमैडल जरूर लगा लेते हैं या अपनी रेजिमेंटल कैप पहन लेते हैं... जिसके लिए अधिकृत हैं सभी पूर्व सैनिक..
अब, कुछ और नाम भी याद होंगे आपको...
ईदी अमीन ( युगांडा ), कर्नल गद्दाफी ( लीबिया ), हिटलर ( जर्मनी), जोसफ स्टालिन ( USSR), माओ त्से तुंग ( चीन ), बेनिटोमुसोलिनी ( इटली ), किम जोंग- II ( नॉर्थ कोरिया ) , सद्दाम हुसैन ( इराक ), याहिया खान, परवेज मुसर्रफ, अयूब खान, जिया उलहक ( सभी पाकिस्तान )...
ये भी अपने देश के मुखिया थे, सेना में सेवा कर चुके थे... और देश के मुखिया के रूप में भी अक्सर पूरे रोबदाब से सेना की वर्दी पहनकर रहना पसंद करते थे...
कारण? कारण यह कि ये सभी #विचार_कर्म_स्वभाव_से ही #तानाशाह थे.. #लोकतान्त्रिक_व्यवस्थाओं_को_ठेंगे_पर रखते हुएअपनी शक्ति जनता की बजाय सेना से लेते थे...
इतिहास गवाह है कि #तानाशाहों #को_सेना_की_वर्दी हमेशा पसंद आती है... क्योंकि वो जानते हैं कि कि उनके पैर बहुत कमजोर हैं, तो शक्ति के लिए #वर्दी_का_सहारा लेना पड़ता है....
और लोकतंत्र और आम नागरिक पर अटूट भरोसा रखने वाले, खुद पर विश्वास रखने वाले नेता, सैनिक होने के बावजूद नागरिकवेशभूषा में ही रहते हैं...
इतिहास यह भी बताता है कि अपनी तमाम ध्वंसक शक्तियों के बावजूद युद्ध खतरनाक स्थिति नहीं होती है.. लेकिन युद्ध का उन्माद सदैव ही सदैव ही खतरनाक होता है...क्योंकि युद्ध नवनिर्माण के रास्ते भी तो खोलता है, लेकिन उन्माद हमेशा हमेशा के लिए विध्वंसकही रहा है...
जयहिंद
मुकेश प्रसाद बहुगुणा
पूर्व सैनिक और पूर्व प्रवक्ता राजनीति विज्ञान