शनिवार, 13 जुलाई 2024

बुरी तरह घिर गये गृहमंत्री…

 बुरी तरह घिर गये विजय शर्मा गृहमंत्री


छत्तीसगढ़  के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के सामने दोहरी चुनौति खड़ी हो गई है एक तरफ़ प्रदेश में कानून व्यवस्था की बदतर होती स्थिति से निपटने की चुनौति है तो दूसरी तरफ पार्टी के भीतर उनके बढ़ते विरोधियों को संभालने की। 

हिन्दू ध्रुवीकरण की राजनीति के आसरे पहली बार विधायक बने विजय शर्मा को उपमुख्यमंत्री के साथ गृह विभाग जैसे सबसे महत्वपूर्ण विभाग दिया गया तो इसके पीछे की राजनीति को आसानी से समझा जा सकता है। क्योंकि बीजेपी को यही रास आता है।

कहा जाता है कि मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे होने के बावजूद पिछड़  जाने की बड़ी वजह रमन सिंह को बताया जा रहा है, लेकिन उनकी राजनैतिक विरोधियों की संख्या दिनों दिन बढ़ते ही जा रही है तो इसकी वजह उनका मोहन सेठ से नजदिकियों को माना जा रहा है।

सूत्रों का कहना है कि बलौदा बाजार कांड के बाद हुए मॉब लिंचिंग की घटना के बाद वे हिन्दुवादी  संगठनों के निशाने पर भी आ गये है । ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो प्रदेश के कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति  को लेकर उठने लगा है। और वसूली में अभ्यस्त हो चुके पुलिस को संभालना एक अलग ही चुनौतीपूर्ण कार्य है।

बताया जाता है कि पार्टी के भीतर ही अब विजय शर्मा के खिलाफ गोलबंदी शुरु हो गई है तो इसकी बड़ी वजह पार्टी में कोयला, शराब और दूसरे क़िस्म के  माफिया खासकर सरकारी विभाग में सप्लाई करने वालों का बढ़ता प्रभाव है। और ऐसे माफियाओं के साथ यदि विधायक और संगठन के ज़िम्मेदारों के खड़े होने की चर्चा है तब क़ानून व्यवस्था को संभालना आसान भी नहीं है।

सूत्रों की माने तो प्रदेश में बिगड़‌ती कानून व्यवस्था के लिए यही लोग जिम्मेदार है। तब राज्य में मौजूद प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को साधने की एक अलग ही चुनौती है।

कांग्रेस ने तो प्रदेश में बिगड़‌ती कानून व्यवस्था  को लेकर विधानसभा घेराव का निर्णय मी कर लिया है और प्रदेश अंग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने जिस तरह की रणनीति बनाई है उसका असर तो बाद में देखने को मिलेगा, लेकिन इन दिनों कांग्रेस ने अपने पदाधिकारियों के खिलाफ हो रही काविाई की वजह से आक्रमक मुद्रा में है तो इसकी वजह मुख्यमंत्री के सलाहकारों की उदासिनता को माना जा रहा है।

ऐसे में प्रदेश में जिस तरह से नशे के कारोबारियों ने शासन-प्रशासन में अपनी घुसपैठ बना रखी है उसे लेकर भी कई तरह की चर्चा है तो दुसरी तरफ पार्टी संगठन में दागी अफसरों के साथ खड़े होने वाले दलालों की सक्रियता ने  भी गुटबाजी को हवा दी है। 

बहरहाल गृहमंत्री विजय शर्मा बुरी तरह से फँस गए है और इससे निकलना अब बड़ी चुनौति है।

रूस-आस्ट्रि‌या यात्रा का सच

 रूस-आस्ट्रि‌या यात्रा का सच 

छटपटाते अफवाह का खुलता झूठ...


कहा जाता है कि झूठ के पांव नहीं होते लेकिन जब सच आकर सामने खड़ा हो जाता है तो छटपटाते हुए दम तोड़ देता है। लेकिन जिनकी पूरी राजनीति ही अफवाह उड़ाने वाली संस्था के आसरे टिकी हो वह भला सच को इतनी आसानी से कैसे मान लें, या पचा लें? तब वह बेशर्मी पर उतर आता है…।

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रुस और आस्ट्रिया की यात्रा का सच यही है कि जो कुछ हुआ या होगा  वह मित्रता की उस बुनियाद पर टिका है जिसका पहला पत्थर नेहरू ने रखा है।

वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू जिसे पानी पी-पीकर कोसा जाता है, जिसके नाम से झूठ परोसने की परम्परा निभाई जाती है और जिसे गाली देकर अपनी राजनीति साधने की कोशिश की जाती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इन दो देशों की यात्रा के सच की शुरुआत  कहां से की जाए । आस्ट्रिया से !

शुरुआत कहीं से कर ले बुनियाद में नेहरू आज भी सीना ताने खड़े नज़र आ जाएँगे,हालांकि इस दौर में उनका क़द छोटा  करने  की तमाम कोशिश हुई लेकिन हर कोशिश का अंजाम झूठ और अफवाह की शक्ल में उभर आया।

तब रुस की यात्रा में क्या हुआ ? यह सवाल इसलिए भी नहीं होना चाहिए क्योंकि जिस मित्रता की बुनियाद में पं. नेहरू जैसे महान नेता ने पहला पत्थर रखा हो उसकी ईमारत हिल ही नहीं सकती।

मोदी सत्ता की अमेरिका परस्त्त नीति के बाद भी यदि भारत के साथ रुस खड़ा है तो इसकी वजह बुनियाद का वह पहला पत्थर है जो पंडित नेहरु ने उस वक्त रखा था जब वे आधुनिक भारत के निर्माण में जुटे थे। और नेहरू की ताकत ही थी कि रूस ने तब नेहरू के सपने को पूरा करने न्यौछावर हो गया था।

तब रुस से यदि कुछ मिल रहा है,  मान-सम्मान आर्थिक मदद  उस मित्रता की बुनियाद का हिस्सा है जिसे भारत ने भी बखूबी निभाया।

भले ही मोदी समर्थक इस बात को प्रचारित करते रहे कि रूस ने जो सम्मान दिया है वह मोदी की ताकत का फल है। लेकिन सच तो यह है कि रूस का सम्मान इस देश के प्रधानमंत्री के लिए है जो मित्रता की उस बुनियाद का हिस्सा है जिसका पहला पत्थर पंडित नेहरू ने रखा और रचा है।

रुस जानता है कि भारत के दिल में रुस कहाँ है सर पर लाल रूसी टोपी, जिसे मोदी ने भी गुनगुनाया वह नेहरू और भारत की सोच से निकला ही गीत था।

तब पंडित नेहरु का कद क्या सरदार पटेल की सबसे ऊंची मूर्ति बनाकर की जा सकती है। मोदी समर्थकों को 'भारत एक खोज' पढ़‌नी चाहिए और यदि वे इसे नेहरू की वजह से नहीं पढ़ रहे है तो राष्ट्रीय कवि रामधारी सिह दिनकर की वह 186 पेज की किताब जरूर पढ़‌नी चाहिए ताकि वे झूठ और अफवाह से अपने को ही नहीं इस देश को भी बचा ले। 

तब आस्ट्रि‌या दौरे का सच क्या वे लोग पचा पायेंगे जो झूठ और अफवाह की राजनीति में फँसे हुए हैं।

आस्ट्रिया की यात्रा  में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ने शायद सपने में भी नहीं  सोचा रहा होगा कि पंडित नेहरू की ऊंचाई उन्हें यहां भी बौना साबित कर देगी। यात्रा के दौरान जब आस्ट्रि‌या के चांसलर कार्ल नेहमर ने कहा कि पंडित नेहरू की ठोस मध्यस्थता की वजह से 1955 में आस्ट्रिया एक अलग देश बना।

इस पर मोदी ज़रूर हतप्रभ  रह गये होंगे! 


लेकिन सच यही है कि डंका यदि आज रही दुनिया में भरात का बज रहा है तो इसरी वजह नेहरू  का रखा बुनियाद ही है।