सोमवार, 1 जुलाई 2024

दिल्ली से भी छुट्टी...

 दिल्ली से भी छुट्टी...


यह तो बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय की कहावत को ही चरितार्थ करती है वरना कोरबा की सीट से  लोकसभा का  चुनाव हारने के बाद भाजपा नेत्री सरोज पांडे की यह स्थिति कभी नहीं बनती कि उनकी दिल्ली में भी न केवल पूछ-परख कम हो जाए बल्कि बड़े नेता मिलने का समय ही न दे।

महापौर , विधायक से लेकर संसद तक के सफर में सरोज पाण्डे को खूब पापड़ बेलना पड़ा। पार्टी ने भी तब उनके जोश को देखते हुए खूब तवज्जो दी। रमन सिंह के विरोध के बावजूद सौदान सिंह से लेकर दिल्ली दरबार हो भाजपा आईटी सेल सब जगह उनकी खूब चली। और यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें राज्यसभा तक पहुंचा दिया।

मिलाई से राजनैतिक सफर शुरू करने वाली सरोज पाण्डे  पहली बार चर्चा में आई, जब छिदवाड़ा में लोकसभा का उपचुनाव हुआ था। वहां उनकी प्रचार शैली के चलते ही वे बड़े नेताकों की नजर में आई, और प्रेमप्रकाश पाण्डे के टक्कर में खड़ी भी हो गई।

लेकिन कहा जाता है कि अपने इसी प्रचार शैली के चलते वे राज्यसभा भी पहुंच गई और जब दुर्ग से टिकिट नहीं मिला तो चुनाव लड़‌ने कोरबा जा पहुंची और यही धोखा खा गई क्योंकि उन्हें यहां रमन समर्थकों ने घेर लिया बल्कि उनकी शैली से डरे सत्ता ने ऐसा प्रचार किया कि वह चुनाव बुरी तरह हार गई। जीतने पर नौकर बना देने के प्रचार ने पुरानी याद ताजा कर दी। 

इधर चुनाव हरवाने का मामला तूल पकड़‌ता उससे पहले दिल्ली से आने वाली खबर ने सरोज पांडे  की मुसिबत बढ़ा दी।

कहा जाता है कि वे भागे-दौड़े  दिल्ली तो पहुंच गई लेकिन उनकी बात सुनने की बात तो दूर उनसे मिलने  का समय नहीं दिया गया।

अब चर्चा तो कई तरह की है और हम चर्चा में इस बात का हल्ला ज्यादा है कि अब दिल्ली को हारे हुए लोगों की जरूरत नही है।

पैसा दो-काम लो

 पैसा दो-काम लो


कृषि विभाग में खुले आम चल रहे चालीस फीसदी कमीशन की अपनी कहानी है तो कृषि मंत्री राम‌विचार नेताम की अपनी कहानी है। कहा जाता है कि यहां सब कुछ तय न राम‌विचार करते हैं और न ही मुख्यमंत्री की ही इस विभाग में चलती है।

चलती किसी की है तो राकेश अग्रवाल की या फिर भुवनेश यादव की। राकेश और भुवनेश का क्या क़िस्सा है यह भी चर्चा में है। और इनकी  चलेगी भी क्यों नहीं, क्योंकि कृषि मंत्री ने सारी जिम्मेदारी राकेश को सौप दी है। राकेश और भुवनेश यादव की जोड़ी ने ऐसे ऐसे कमाल शुरु कर दिया है कि कोई भरोसा भी नहीं कोगा कि छत्तीसगढ़  जैसे राज्य में डंके की चोट पर कोई सरकार  को ही नहीं आम किसानों को करोड़ों का चूना लगा रहा है।

कहा तो यहां तक जाता है कि रामविचार नेताम जरूरत पड़ने पर राकेश की गाड़ी का इस्तेमाल  ही नहीं अफिस का भी इस्तेमाल कर लेते हैं। और आफिस का इस्तेमाल को लेकर जो चर्चा है वह भी कम चौकाने वाला नहीं है। 

राम विचार नेताम के नाम पर तो रमन सिंह के भी धोखा खाने की चर्चा कम नहीं है। नाम बड़े और दर्शन छोटे की कहावत तो चरितार्थ है ही अंधा बोटे रेवड़ी अपन - अपन को दे का भी क़िस्सा कृषि विभाग के गलियारे से होते हुए एश्वर्या से लकेर अब शहर के चौराहो पर भी सुनाई देने लगा है।

ऐसा रहीं है कि रामविचार पर इस तरह के आरोप पहली बार लग रहे हो या राकेश के खेल की चर्चा पहली बार ही रही हो। रामविचार ने तो तब भी रमन सिंह, अमर अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल  से बाजी मार ली थी जब इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक घोराले के नार्को टेस्ट की कथित सीडी वायरल हुई थी।

लेकिन  सैंया भये कोतवाल तो डर काहे की तर्ज पर राकेश और भुवनेश का कमाल से लोग ज़रूर चौंक जाते हैं।