बुधवार, 21 अगस्त 2024

चौधरी को छवि की चिंता...

 चौधरी को छवि की चिंता...


यह तो बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना अमित शाह जैसे कद्‌दावर नेता के खासमखास और प्रदेश सरकार के दमदार मंत्री ओपी चौधरी को अपनी छवि सुधारने के लिए इतनी कवायद नहीं करनी पड़ती।

कहा जा रहा है कि ३३ हजार शिक्षकों की भर्ती वाले मामले में विडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया में जिस तरह से ओपी चौधरी के ख़िलाफ़ बेरोजगारों ने मोर्चा खोला है उससे ओपी चौधरी अपनी छवि को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गए है, हालाँकि कलेक्टरी के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप भी उन पर कम नहीं है, लेकिन अमित शाह के वरदहस्त में सुपर सीएम की कथित पदवी से उत्साहित ओपी चौधरी ने जिए ताह से सत्ता और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत की थी वह उतनी ही तेजी से फिसलता जा रहा है।

और शायद यही वजह है कि उन्होंने अब अपनी छवि नये सिरे से गढ़ने की कवायद करने में  लग गये  हैं। दरअसल ओपी चौधरी यह बात भूल गये हैं कि एक बार छवि बिगड़ गई तो उसे सुधारना बड़ा टेढ़ा काम है लेकिन नौकरशाही का रुतबा उन्हें हार नहीं मानने दे रहा है, ऐसे में चर्चा  इस बात की भी है कि नेशनल प्रोपेगेंडा ग्रुप भोपाल वाले ने ठेका लिया कि वे हर हप्ते अपने सबसे बड़े पोर्टल में उनकी छवि सुधारेंगे तो दर्जन भर पोर्टल को भी छवि सुधारने की जिम्मेदारी तो दे दी गई लेकिन छवि है कि...!

राजीव गांधी को क्यों याद किया जाना चाहिए...

 राजीव गांधी को क्यों याद किया जाना चाहिए...


युवा प्रधानमंत्री, मिस्टर क्लीन के रूप में चर्चित रहे इंदिरा के बेटे राजीव गांधी की असमय मृत्यु ने देश को नई आधु‌निक सोच के साथ काम करने वाले को ही नहीं खोया था, बल्कि  उस  नये भारत की उम्मीद की नींव को भी धराशाही कर दिया था, जो विश्व में युवाओं ने जो सपने पाल रखे थे।

समूचा देश २० अगस्त को जब उन्हें याद कर रहा था तब मेरे ज़ेहन में रायपुर के उस छोटे से एयरपोर्ट में उनकी आमद  की धुंधली  तस्वीर में खो गया ।

हम रिपोर्टरों का समूह एक ही जगह पर खड़े थे और राजीव हम सबके बेहद नज़दीक। फोटोग्राफरों गोकूल सोनी - विनय शर्मा की सजग आँखें राजीव की एक एक हरकत पर

कैमरे को क्लीक कर रही थी तो तमाम कांग्रेसियों की नजर टकटकी लगाए राजीव को देख रही थी। हाथ हिलाते पत्रकारों के सामने से गुजरते हुए एक आवाज ने सबका ध्यान अपनी खीच लिया 

राजीव....

यही कहा था नेता शिवेन्द्र बहादूर सिंह ने। राजीव के लिए यह संबोधन जीतना सहज़ रहा होगा मौजूद लोगों के लिए उतना ही असहज । इस घटना की चर्चा अब भी होती है। राजीव और शिवेंद्र दून स्कूल के सहपाठी थे।

लेकिन वे जितने सहज और सरल थे उतने ही संवेदनशील और बेबाक ।

गांवों की बदहाली उन्हें भीतर तक सालती रही होगी इसलिए उन्होंने जब कहा कि केंद्र सरकार एक रुपये भेजतीं है वह गाँव तक पहुंचते पहुंचते 25 पैसे रह जाते है तब विपक्ष ने राजीव के इस कथन को कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार के रूप में प्रस्तुत प्रस्तुत करने लगे और आज भी गाहे-बगाहे कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार  के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। 

राजनैतिक चालबाज़ी से दूर 1984 के दंगों पर उनकी टिप्पणी को  भी विपक्ष  ने कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो....! लेकिन यह बात उन्होंने इंदिरा की जयंती समारोह में तब कही थी जब दंगे समाप्त हो चुके थे।

श्रीलंका में शांति  सेना भेजने की बात हो या उन पर हमला ।' कोई कैसे भूल सकता है।

इस देश को राजीव को क्यो याद कर नमन करना चाहिए यह बताने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि उनकी हत्या की खबर जब लोगों तक पहुंची तब तक शाम का अंधेरा गहरा चुका था, दोपहर की इस घटना की खबर जब प्रेस तक पहुंची तो रोजमर्रा के कामकाज ऊफान पर था।

खट् खट् करते टेली प्रिंटर से आई इस खबर को देखकर सहसा किसी को भरोसा नहीं हो रहा था । पर नियति ने अपनी इबादत लिख दिया था । तब मैं दैनिक स्वदेश में रिपोर्टर की हैसियत से काम कर रहा था।

फ़्रंट पेज प्रशांत शर्मा देखते थे। उन्होंने ही यह खबर पहले दी थी, और इसके बाद आनन फानन में बुलेटिन निकाला गया था ।

राजीन के इस असमय चले जाने को लेकर देश भर से शोक संवेदनाओ ने टेली प्रिंटर की स्पीड बड़ा दी थी और  छोड़ गई राजीव की वह यादें जिसके लिए यह देश उन्हें हमेशा याद रखेगा।

राजीव ने इस देश को क्या दिया इसका सबसे अच्छा जवाब यह है कि आज जो दूरसंचार, डिजिटल हेडिया, सोशल मीडिया जो  कुछ भी दिखाई दे रहा है, उसके पीछे का मूल विचार राजीव का ही था। उन्होंने दूरसंचार क्रांति लाई। सी डॉट  से लेकर एमटीएनएल जैसी  कंपनियां उन्ही की देन है।

90 के दशक में जब लोग बेरोजगारी से जूझ रहे थे तब लाखों लोगों को रोजगार देने वाला एसटीडी पीसीओ बूथ उनकी ही देन है। स्वरोजगार का वर्तमान मॉडल जनसेवा केंद्र की नींव भी राजीव की सोच है।भारत का युवा आईटी सेक्टर में जो झंडे गाड़ रहा है उसके पीछे एक छोटी उम्र के प्रधानमंत्री की बड़ी सोच है । राजीव गांधी ने देश में कंप्यूटर क्रांति लाने का काम किया राजीव विज्ञान और तकनीक की ताकत जानते थे उन्होंने सस्ते कंप्यूटर के लिए इंपोर्ट ड्यूटी कम कर दी थी . रेलवे में कम्प्यूटरों का इस्तेमाल करके टिकीटिंग भी शुरू करवाई. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 1970 में देश में पब्लिक डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत हो गई थी लेकिन आईबीएम के साथ देश मे कम्प्यूटर के व्यवसायिक उपयोग को गति राजीव के प्रयासों से ही मिली थी आज अगर भारत आईटी सेक्टर का सुपर पावर है तो उसकी एक वजह राजीव की सोच है।

राजीव गांधी को 21 वीं सदी के महान लोकतंत्र का सबसे बडा कैटेलिस्ट माना जाना चाहिए।  राजीव सरकार ने 1989 में संविधान के 61 वें संशोधन के जरिए वोट देने की उम्रसीमा 21 से घटाकर 18 वर्ष कर इस लोकतंत्र की जवान कर दिया, तो पंचायत राज अधिनियम लाकर ग्रामीण भारत को शहर के बराबर शक्तिशाली बनाया।

राजीव गांधी ने शिक्षा क्षेत्र में क्रांति की पहल करते हुए नवोदय विद्यालयों की शुरुआत की और गाँव के बच्चों को भी उत्कृष्ट शिक्षा मिले इसलिए गाँव -गाँव मे नवोदय विद्यालय खोलकर बच्चों को कक्षा 6 से 12 वीं तक की मुफ्त शिक्षा और हॉस्टल में रहने की सुविधा दी और आज नवोदय विद्यालय के विद्यार्थी पूरे देश विदेश मैं देश का झंडा ऊंचा कर रहे है

ये है इंदिरा के बेटे की सोच जिसकी वजह से उन्हें देश हमेशा याद रखेगा।