गुरुवार, 11 जुलाई 2024

संघ का खेल, शंकराचार्य फेल

 संघ का खेल, शंकराचार्य फेल

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान 

रसरी आवत जात है, सील पर पड़त निशान ।


वृंद सतसई ने यह दोहा लिखते समय यह नहीं सोचा होगा कि इसका उपयोग नरैटिव बनाने के लिए भी जब किया जायेगा तो लोग झूठ को भी सच मान बैठेंगे। हालांकि हिटलर ने बहुत पहले ही कह दिया था कि किसी झूठ को बार-बार बोलने से वह सच लगने लगता है। 

और इस खेल को क्या संघ यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इस तरह खेला कि अब हिन्दू‌ओं के सर्वोच्च गुरु की बातों की बजाय समाज संघ और बीजेपी के हिंदुत्व पर ही भरोसा करने लगी। 

यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हो चला है क्योंकि हाल की दो घटनाओं में हिंदू समाज के एक बड़े वर्ग ने न केवल हिन्दू समाज के सर्वोच्च गुरु शंकराचार्यों की बातों की बजाय संघ के प्रचारक रहे  देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों का समर्थन ही नहीं किया बल्कि शंकराचार्यों के खिलाफ विषवमन करते नजर आये।

पहली घटना राममंदिर के प्राण प्रतिष्छा समारोह से जुड़ी है, इस मामले में प्राणप्रतिष्ता समारोह को लेकर शंकराचार्यों ने जब आपत्ति की, और इसे पूरे समारोह को धर्म-शास्त्र के खिलाफ बताते हुए इसके गंभीर दुष्परिणाम की चेतावनी भी दी।

लेकिन स्वयं को धार्मिक मानने वाले या धर्म का रक्षक बताने वाले संघ ने ही शंकराचार्यो की बात नहीं मानी और न ही हिदुत्व का बखेड़ा खड़ा करने वाली पार्टी भाजपा ने ही शंकराचार्यों का कहा माना। इतना ही नहीं शंकराचार्यों की नाराजगी की खबर पर इन संगठनों से जुड़े लोगों ने शंकराचार्यों की आलोचना करना शुरू कर दिया ।

दूसरी घटना संसद में राहुल गांधी के द्वारा हिंदुओं को कथित तौर पर हिंसक बताने वाले बयान से जुड़ा है। राहुल गांधी ने संसद में जिस तेवर के साथ मोदी, भाजपा और संघ  पर हिंसा फैलाने, डराने दौर नफरत फैलाने का आरोप लगाया उसके बाद ख़ुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहना शुरू कर दिया कि राहुल गांधी ने हिन्दु समाज को हिंसक बताया है।

इसके बाद देश भर में किस तरह से संघ और भाजपा से जुड़े संगठनों ने धमाचौकड़ी मचाई, वह किसी से छिपा नहीं है।

इस धमाचौकड़ी को रोकने जब शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी सामने आकर कहा कि राहुल गांधी ने हिन्दू समाल को हिसक नहीं कहा है और उन संगठनो को हिंसक कहा  है, तब भी न तो भाजपा सुनने को तैयार है और न ही संघ से जुड़े संगठन ही प्रदर्शन रोक रहे हैं ।

यानी इस घटना के बाद भी शंकराचार्यों की अवहेलना की जा रही है तब यह सवाल इसलिए भी बड़ा हो जाता है कि क्या संघ और भाजपा ने स्वयं को हिंदुओं का ठेकेदार और रक्षक के रूप में जो प्रचारित-प्रसारित किया है (सालों से) वह अब आम लोगों के दिलो-दिमाग में इस कदर बैठ गया है कि सर्वोच्च गुरु भी अब उनके  लिए कोई मायने नहीं रखता ।