गुरुवार, 26 जून 2025

आपात काल का एक और सच…

 आधी रोटी खाएँगे , इंदिरा वापस लायेंगे…

और इस नारे ने इंदिरा को वापस सत्ता में ले आये..


लेकिन संसद की देहरी से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपातकाल की याद दिलाते समय यह बात भूल गये, भूले तो वे विनोबा जी द्वारा इस आपात काल को अनुशासन पर्व कहा था,, हम आपात काल की वकालत नहीं बल्कि एक और सच्चाई आपको दिखा रहे है…

दरअसल आरएसएस और बीजेपी के पास गाड़े मुर्दे उखाड़ने के अलावा कुछ बचा भी नहीं है तब सीतामढ़ी के राजकुमार गुप्ता ने जो लिखा वह भी लोगों को जानना चाहिए…  

इंदिरा गांधी ने संविधान के दायरे में रहते हुए अराजकता, देशविरोध और विदेशी एजेंटों से  देश को बचाया. अगर वह निर्णय नहीं लिया गया होता, तो भारत का राजनीतिक और सामाजिक ढांचा नष्ट हो जाता.


आपातकाल को केवल एकतरफा आलोचना से नहीं, बल्कि उस समय की ऐतिहासिक परिस्थितियों, सामाजिक विघटन और विद्रोह के प्रयासों की पृष्ठभूमि में देखना होगा।


जब देश अराजकता के कगार पर था, तब एक स्त्री ने " आयरन लेडी " ने सही निर्णय लेकर भारत को बचाया.... 

                        


नए संसद सत्र प्रारंभ के ठीक पूर्व संसद की देहरी से आपातकाल की याद दिलाते नरेंद्र मोदी शायद यह भूल रहे हैं कि इन्हीं के पितृ संगठन आरएसएस की बढ़ती अनुशासनहीनता के कारण ही आपातकाल लगाया गया था जिसे विनोबा जी ने अनुशासन पर्व की संज्ञा दी थी. 


इस दौर में हर जगह संघ के संधियों की साहूकारी चल रही थी. मुनाफाखोरी और गोदामों में अनाज भरकर कालाबाजारी की जा रही थी. जबकि किसान और आम आदमी कर्ज़ के तले दबा जा रहा था. लोगों की निजी संपत्ति और ज़मीन जायदाद इन लोगों के अधीन गिरवी होते जा रहे थे. मजदूर बंधुआ मजदूरी करने विवश किए जा रहे थे.


कालेज, यूनिवर्सिटीज बंद से हो गए थे और पाठ्यक्रम तीन साल पीछे चल रहा था. हर जगह अव्यवस्था का आलम सम्पूर्ण क्रांति के नाम पर चल रहा था. 


ट्रेन घंटों पीछे चला करती थी और इनके साथी जार्ज फर्नांडिस डायनामाइट लगा कर बड़ौदा में ट्रेन उड़ाने का षड्यंत्र रच रहे थे. 

जेपी ने पुलिस और सेना से सरकार का आदेश न मानने का आह्वाहन कर डाला. यह सब भारत जैसे लोकतंत्र में सीधे विद्रोह की चेष्टा थी. अगर यह सब चलता रहता, तो भारत एक अराजक, विखंडित और गृहयुद्ध की ओर बढ़ता देश बन जाता.


इंदिरा जी ने आपातकाल लगा कर देश को विखंडन और विदेशी षड्यंत्रों से बचाने का एक रणनीतिक कदम उठाया, सब चीजों को व्यवस्थित किया. बीस सूत्री कार्यक्रम लागू किया जिससे हर वंचित को लाभ पहुंचाने के वास्तविक प्रयत्न किए गए. बैंक फाइनेंस की झड़ी लगा दी गई ताकि हर व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार व्यवसाय और जीवनयापन कर सके. 


ट्रेन इतने समय पर चलने लगी थीं कि उनके आगमन से लोग अपनी घड़ी मिलाने लगे थे. हर किस्म की हड़तालें बंद हो गई थी और कल कारखाने पूर्ववत चालू हो गए थे.  जनता एक तरह से खुश हो रही थी. यह कदम भारत को अराजकता, सामाजिक विघटन, और विदेशी प्रायोजित "टुकड़े-टुकड़े गैंग" के हाथों में गिरवी रखने से बचाने का था।


सबसे ज्यादा  संघ परिवार के लोग ही जेल भेजे गए थे. यही वे संघी थे जो जेल से अपने माफीनामे सरकार को भेजा करते थे और उनका विधिवत प्रकाशन समाचार पत्रों में सशुल्क छपवाते थे, और तब पैरोल पर जेल से छूटते थे. एक प्रकार से तब वे अपने आप में सावरकर को दोहरा रहे थे. देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने की यह कोई बड़ी सजा नहीं.

सेना के साथ मिलकर कुछ लोग सत्ता हथियाना चाहते थे. वो इलाहाबाद का जज भी जे पी का रिश्तेदार था. कमाल तो देखो, इनके समुदाय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने को sc ( हरिजन ) घोषित करने का मुकदमा कर रखा है जो आज भी लंबित है. बुरा दौर था. मैं उसका समर्थन नहीं करता. लेकिन आज का दौर उससे भी बुरा है.

यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि इंदिरा गांधी जब इमरजेंसी हटाने पर विचार कर रही थीं तो कौन लोग इमरजेंसी के पक्ष में बयान दे रहे थे? अगर विकीपीडिया पर भरोसा करें तो इमरजेंसी हटाए जाने की घोषणा के महज चार महीने पहले- यानी नवंबर 1976 में माधवराव मुले, दत्तोपंत ठेंगड़ी और मोरोपंत पिंगले के नेतृत्व में 30 से ज़्यादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि अगर आरएसएस कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया जाए तो वे लोग इमरजेंसी का समर्थन करेंगे. वाजपेयी भी इसके पक्ष में थे.

संजय गांधी की नसबंदी की जबराना हरकतों की वजह से इंदिरा गांधी चुनाव हारी और बाद में जो संघनीत सरकार बनी, उसने सबसे पहले ऐसे तमाम जेल यात्रियों के लिए स्वतंत्रता सेनानियों की तरह पेंशन शुरू की गई जिसका लाभ उन्हें अब तक मिल रहा है जो अभी शायद 25000 प्रतिमाह है. आंदोलनजीवी को अशांति फैलाने का यह पुरस्कार कितना वाजिब है यह देश तय करेगा.

 इमरजेंसी उपरांत इंदिरा जी चुनाव हार गयीं और इंदिरा जी के विरूद्ध भ्रष्टाचार और तमाम फालतू के आरोप लगाकर जांच करने के लिए गुजरात के एक जज छोटा भाई शाह के नेतृत्व में शाह कमीशन बनाया गया ।

वरिष्ठ पत्रकार खुशवंत सिंह ने कहा था कि शाह कमीशन में कार्यवाही नहीं खिलवाड़ हो रहा था।

उस कमीशन के सामने कांग्रेस सांसद शशि भूषण बाजपेई ने ३५० पन्नों की साक्ष्य प्रस्तुत की जिसमें जनसंघ के एकाउंट नंबर और उनमें आने वाले पैसे का जिक्र किया गया और शाह कमीशन की रिपोर्ट बिल्कुल पढ़ी नहीं गयी।

जनता पार्टी की सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी और वो बेटे को दलाली करवाने लगे और ये पहले लिख चुका हूं और जयप्रकाश नारायण दिल्ली आये और दलाली देखी तो उनको दिल्ली के मौर्या शेरेटन होटल में पूरे सम्मान के साथ नजरबंद कर दिया गया और कुछ दिन बाद जेपी किडनी पकड़कर बिहार वापस चले गये।

 कुछ ही दिनों बाद सारा झूठ का महल भरभरा कर गिर गया और लोग चीखने लगे " आधी रोटी खाएंगे इंदिरा वापस लायेंगे" 

कुदरत ने आगे और खेल दिखाया आगे चलकर। 

देश के साथ गद्दारी करने वाले निक्सन के दलाल जेपी कैसे निपटे? अटल बिहारी वाजपेई और जार्ज फर्नांडिस दस दस साल देश के साथ गद्दारी करने की सजा पाकर मरे और उनका बास रिचर्ड निक्सन अमरीका में जलील करके वाटरगेट कांड में महाभियोग के जरिए हटाया गया और आज कैनेडी, आइजनहावर या ओबामा की तरह उसे कोई याद करने वाला नहीं है और शेरनी की तरह मुस्कुराते हुए शहीद हुयीं इंदिरा जी को कोई भूलने वाला नहीं है। 

तुम मर जाओ जेपी ... 

क्या आप जानते है कि जेपी के कंधों पर सवार होकर आने वाली जनता सरकार, जेपी की मौत के लिए कितनी उत्साह से भरी हुई थी। जेपी, जो आंदोलन के नेता थे, जनता सरकार की सत्ता में दलाली देखकर टूट गए। मौर्या शेरेटन होटल में नजरबंद किए गए और बीमार होकर लौटे।

हांजी, बीमार जेपी के मरने के पहले ही उन्हें संसद में हड़बड़ तड़बड़ श्रद्धाजंलि भी दे दी थी। फिर पता चला, अभी साहब जिंदा है, तो भरी संसद से माफी मांगी गयी। 

गूगल कीजिए, मिल जाएगा। 

इंदिरा की "तानाशाही" के खिलाफ...? 

जेपी आंदोलन आखिर था क्यों? ऐसा कौन सा भ्रष्टाचार हो गया? जब नियमित चुनाव हो ही रहे थे, तो तानाशाही कैसे आ गयी? और जब माँग बिहार विधानसभा बरखास्त करने की थी, तो यह इंदिरा गांधी की सत्ता उखाड़ने की ओर क्यों बढ़ गयी?

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वे तानाशाहीपूर्ण निर्णय क्या थे?


प्रिवीपर्स खत्म करना?? बैंक नेशनलाइजेशन?? हरित क्रांति?? पाकिस्तान को दो टुकड़े करना??? या कांग्रेस के मोरारजी सहित कांग्रेस के सिंडिकेट को बेरोजगार कर देना?? 

आह, क्या मेस के खाने की फीस बढ़ जाना, गेहूं की कीमत बढ़ जाना, बेरोजगारी बढ़ जाना, रेलवे के वेतम भत्ते न बढ़ाना?? ये इतना बड़ा संकट था, कि देश की सेना और पुलिस से विद्रोह का आव्हान किया जाए। 

अगर हां, तो क्या आप आज के विपक्ष को, इन्हीं कृत्यों के लिए आप समर्थन देंगे?? 

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दरअसल 1975 की इमरजेंसी के बाद तो आप नसबन्दी, संजय गांधी, तुर्कमान गेट, मीसाबन्दी और किशोर कुमार के गाने न बजाने को तानाशाही गिना सकते हैं। 

लेकिन 1975 के इसके पहले कौन से निर्णय थे, जिसके खिलाफ जेपी आकर खड़े हो गए। 

कोई बताये...

मुस्लिम लीग जिन्ना के साथ सरकार बनाने वाले, अंग्रेजों के मुखबिर, गांधी के हत्यारे, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के विरोधी, संविधान और तिरंगा को जलाने वाले किस मुंह से संविधान रक्षा की बात करते हैं? 

जनता ने जल्द ही देखा कि संघ-जनसंघ-जनता पार्टी की सरकार न तो अनुशासन ला सकी, न विकास दे सकी। जल्द ही पूरे देश में नारा गूंजा —

"आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को लाएंगे!"

जनता का मन पलटा और 1980 में इंदिरा गांधी फिर सत्ता में लौटीं।

बा'द में जेपी ने इंदिराजी से माफ़ी मांगी थी- जेपी ने क़ुबूल किया था कि इंदिराजी के ख़िलाफ़ आंदोलन ग़लत था.(साभार)