शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

नौशेरा के शेर…

 नौशेरा के शेर…


मेरी वाल की मेमोरी में आज ये पोस्ट दिखाई दे गई, इसलिए यहां शेयर कर रहा हूं..।


आज भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा की कड़ियों में एक ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का शहादत दिवस है। दुर्भाग्य है कि उनकी कुर्बानियों को देश अब विस्मृत कर चुका है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ (संप्रति मऊ) जनपद के बीबीपुर में जन्मे उस्मान भारतीय सैन्य अधिकारियों के उस शुरुआती बैच में शामिल थे, जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ था।


1947 में भारत-पाक युद्ध के वक़्त वे उस पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिसने नौशेरा में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता है। उनकी बहादुरी और कुशल रणनीति के चर्चे इतने थे कि देश के बंटवारे के बाद उन्हें मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने चीफ बनाने का प्रलोभन देकर उन्हें पाक सेना में शामिल होने का निमंत्रण दिया था लेकिन उस्मान ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया। 


बंटवारे के बाद उनका बलूच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना के हिस्से में चला गया और वे स्वयं डोगरा रेजीमेंट में आ गये। पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे उस्मान सामरिक महत्व के क्षेत्र झनगड़ में तैनात हुए जिसे 25 दिसंबर ,1947 को पाकिस्तानी सेना ने कब्जे में ले लिया था। मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व-कौशल से झनगड़ भारत के कब्जे में आ गया। झनगड़ के इस अभियान में पाक की सेना के हजार जवान मरे थे और लगभग इतने ही घायल हुए थे।


झनगड़ के छिन जाने और बड़ी संख्या में अपने सैनिकों के हताहत होने से परेशान पाकिस्तानी सेना ने उस्मान का सिर कलम कर लाने वाले को 50 हजार रुपये का इनाम देने का ऐलान किया था।


3 जुलाई ,1948 की शाम उस्मान अपने टेंट से बाहर निकले ही थे कि पाक सेना ने उनपर 25 पाउंड का एक गोला दाग दिया जिससे उनकी शहादत हो गई। मरने के पहले उनके अंतिम शब्द थे – ‘हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न हो पाए।’


शहादत के बाद राजकीय सम्मान के साथ ब्रिगेडियर उस्मान को जामिया मिलिया इसलामिया क़ब्रगाह, दिल्ली में दफनाया गया। उनकी अंतिम यात्रा में देश के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला शामिल थे।


 किसी फौजी के लिए आज़ाद भारत का यह सबसे बड़ा सम्मान था। यह सम्मान उनके बाद किसी फौजी को नहीं मिला। मरणोपरांत उन्हें ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। अपने फौजी जीवन में बेहद कड़क माने जाने वाले उस्मान व्यक्तिगत जीवन में बेहद मानवीय और उदार थे। उन्होंने शादी नहीं की थी और अपने वेतन का बड़ा हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च कर दिया करते थे।


शहादत दिवस पर ‘नौशेरा के शेर’ ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को खिराज-ए-अक़ीदत !