ये होती है सत्ता का मिज़ाज…
जापान के बर्फीले उत्तरी इलाके में क्यू-शिराताकी नाम का एक बहुत छोटा सा रेलवे स्टेशन हुआ करता था. आसपास के गाँवों में रहने वालों की कुल आबादी कोई तीस-चालीस होगी. स्टेशन पर हर रोज़ एक रेलगाड़ी आते-जाते दो दफ़ा रुका करती.
रेलवे डिपार्टमेंट कई बरसों से गौर कर रहा था कि इस स्टेशन से बहुत ही कम यात्रियों का चढ़ना-उतरता होता था. स्टेशन के रखरखाव और रेलगाड़ी के ठहरने में अच्छा खासा पैसा खर्च हो रहा था. इस नुकसान के सौदे को देखते हुए मार्च 2016 से इस स्टेशन को बंद करने का फैसला ले लिया गया. इलाके के लोगों के लिए छः किलोमीटर दूर मौजूद एक दूसरे स्टेशन की सेवाएं लेने का विकल्प पहले से था.
फैसला लिए जाने के कुछ ही दिनों बाद रेलवे अधिकारियों को मालूम पड़ा कि क्यू-शिराताकी स्टेशन से हर सुबह चौदह-पंद्रह साल की एक बच्ची अपने स्कूल जाने और वापस घर लौटने के लिए उसी रेलगाड़ी का इस्तेमाल करती आ रही थी. वह सुबह सवा सात बजे स्टेशन पहुँचती थी, जहाँ से वह पैंतीस किलोमीटर दूर अपने स्कूल जाती थी. एक दूसरी रेलगाड़ी उसे शाम के पांच बजे वापस वहीं छोड़ती थी.
काना हरादा नाम की इस लड़की के बारे में पता चलते ही सरकार ने तय किया कि जब तक उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती, स्टेशन को किसी भी कीमत पर बंद नहीं किया जाएगा. अगले तीन साल तक क्यू-शिराताकी स्टेशन पर वह रेलगाड़ी हर दिन दो दफ़ा ठहरती रही ताकि काना हारादा की पढ़ाई पूरी हो और उसकी एक भी क्लास न छूटे.
इस घटना का 3 फरवरी 2025 के हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी इस ख़बर से कोई सम्बन्ध नहीं है जिसके मुताबिक़ साल 2014-15 से 2023-24 के बीच भारत में कुल 89,000 सरकारी स्कूल इस वजह से बंद कर दिए गए कि उनमें पढ़ने वाले बच्चों की तादाद लगातार घट रही थी.
जापान की काना हरादा की कथा बताती है कि इसी दुनिया में यह भी होता है कि बगैर मेले-तमाशे के कोई-कोई सरकारें अपने नागरिकों से किये गए हर वायदे को पाबंदी के साथ निभाती हैं. बजट की कमी, पैसे का नुकसान वगैरह सिर्फ बातें होती हैं जिन्हें कभी भी, कहीं भी बनाया जा सकता है.(साभार)
(फोटो: क्यू-शिराताकी स्टेशन पर काना हारादा को लेने पहुँच रही रेलगाड़ी)