पंत के छक्के ने क्यों याद दिला दी फरूख की…
वैसे तो विपरीत परिस्थितियों में कई भारतीय क्रिकेटरों ने अपनी जाँबाज़ पारी से लोगों के दिलों में राज किया है । ऋषभ पंत ने जब इंग्लैंड के जोफ़्रा आर्चर और कंबोज की गेंद को उड़ाया तो फरूख इंजीनियर ओ सलीम दुर्रानी की याद ताज़ा हो गई, आज फरूख इंजीनियर की बात इसलिए क्योंकि पंत के उस साहसिक शॉट के कुछ घंटे पहले ही लैंकाशायर ने अपने घरेलू मैदान ओल्ड ट्रैफ़ल के एक पैवेलियन का नाम फरूख और क्लाइव लॉयड के नाम रखा था…
फारुख इंजीनियर द्वारा 1967 में वेस्टइंडीज के खिलाफ मद्रास ( अब चेन्नई) टेस्ट में हाल, ग्रिफिथ, सोबर्स, गिब्स जैसे दिग्गज गेंदबाजों के सामने बनाए गए शतक को कौन भूल सकता है जिसमे फारुख इंजीनियर ने लंच से पहले 94 रन बनाए थे। फारुख ने उस पारी में हाल, ग्रिफिथ, सोबर्स जैसे दिग्गज तेज गेंदबाजों के खिलाफ 18 चौके लगाए थे। इस श्रृंखला के पहले दो टेस्ट में फारुख की जगह बुधी कुंदरन को खिलाया गया था। दोनों टेस्ट के हारने के बाद इस तीसरे टेस्ट में उन्हें मौका मिला। पहले ओवर से ही उन्होंने आक्रामक ढंग से खेलते हुए हाल और ग्रिफिथ, जो अब तक भारतीय बल्लेबाजों के लिए काल बन चुके थे, के शॉर्ट पिच गेंदबाजी पर शानदार हुक, पुल और स्कवेर कट शॉट खेलते हुए चौकों की झड़ी लगा दी। जब 129 के स्कोर पर पहले विकेट के रूप में दिलीप सरदेसाई आउट हुए तो उन्होने मात्र 28 रन बनाए थे।जब अंततः लंच के बाद वे 109 रन बनाकर आउट हुए तब तक भारत का स्कोर मात्र 145 रन था। इसी टेस्ट के बाद बुधी कुंदरन ने संन्यास ले लिया और 1974 तक इंजीनियर लगातार भारत के लिए खेलते रहे।
अगले साल उन्हें लैंकाशायर काउंटी ने अनुबंधित कर लिया। जब उस साल लैंकाशायर और यॉर्कशायर परंपरागत रोज़ जौस्ट खेलों के दौरान क्रिकेट मैच खेला जा रहा था तो फारुख ने उस समय के चोटी के तूफानी गेंदबाज फ्रेड ट्रूमैन की पहली गेंद, जो कि बाउंसर थी, जो इतनी ज़ोर से हुक किया कि गेंद हेडिंगले के पवेलियन के छट से टकराकर वापस मैदान में आ गयी। मैच के बाद जब सारे खिलाड़ी यॉर्कशायर कमिटी रूम में ड्रिंक के लिए इक्कठ्ठा हुए तो ट्रूमैन ने फारुख से पूछा कि उन्हें क्या चाहिए और उनके द्वारा एक ग्लास बियर की फरमाइश पर ट्रूमैन खुद उठकर बार जाकर उनके लिए टेटले का एक पिंट लाकर उन्हें दिया। यॉर्कशायर के सारे खिलाड़ी यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि कि फ्रेड एक विपक्षी, और वो भी लैंकाशायर के, खिलाड़ी को ड्रिंक सर्व करेंगे।
दरअसल उन्हें मैच शुरू होने से पहले का किस्सा मालूम नहीं था। मैच शुरू होने से पहले फ्रेड लैंकाशायर ड्रेसिंग रूम में अपने पुराने साथी ब्रायन स्टेथम से मिलने लैंकाशायर के ड्रेससिंग रूम में आए। जब ब्रायन ने फारुख परिचय ट्रूमैन से कराया तो उन्होने ने कहा कि भले ही इसने भारत के लिए सबसे तेज और शानदार शतक लगाया हो, पर जब ये आज बल्लेबाजी के आए और मैं गेंदबाजी कर रहा हूँ और इंजीनियर के लिए कोई फोन आए तो आप फोन करने वाले को कुछ देर के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कह सकते हैं क्योंकि कुछ ही देर में ये पवेलियन वापस आ ही जाएंगे। पर अपनी गेंद का हश्र देखकर फ्रेड फारुख के बल्लेबाजी के मुरीद बन गए और फिर उनकी दोस्ती फ्रेड के मृत्युपर्यंत बनी रही।
25 फ़रवरी 1938 को बॉम्बे के एक पारसी परिवार जन्मे इंजीनियर ने माटुंगा के डॉन बॉस्को हाई स्कूल और बाद में माटुंगा के ही पोद्दार कॉलेज में पढ़ाई की। हालांकि बचपन में इंजीनियर की पहली महत्वाकांक्षा पायलट बनने की थी, पर अपने पिता और बड़े भाई डेरियस, जो कि क्लब क्रिकेट खेलते थे, से प्रभावित होकर क्रिकेट के प्रति आकर्षित हो गए।उनके पिता ने उन्हें दादर पारसी कॉलोनी स्पोर्टिंग क्लब में दाखिला दिलाया, जहां उन्होंने सीनियर्स से खेल की बारीकियां सीखीं और बाद में टीम के नियमित सदस्य बन गए। उन्हीं दिनों एक बार डेरियस फारुख को ब्रेबोर्न स्टेडियम के ईस्ट स्टैंड ले गए, जहां उन्होंने डेनिस कॉम्पटन को क्षेत्ररक्षण करते देखा। फारुख ने कॉम्पटन को बुलाया, उन्होंने उन्हें च्यूइंग गम का एक टुकड़ा दिया, जिसे उन्होंने कई सालों तक अपनी बेशकीमती संपत्ति के रूप में संभाल कर रखा।
वह 1959 में बॉम्बे रणजी टीम में शामिल हुए , हालांकि उन्होंने 1961/62 तक विश्वविद्यालयों के लिए खेलना जारी रखा।इंजीनियर ने 1 दिसंबर 1961 को अपना टेस्ट डेब्यू किया जब भारत ने कानपुर के मोदी स्टेडियम में इंग्लैंड के साथ खेला। चूंकि उस समय बुधी कुंदरन के रूप में एक और बेहतरीन विकेट कीपर बल्लेबाज भारतीय टीम में थे, इसलिए 1967 में उनके संन्यास लेने तक टीम में उनकी जगह नियमित नहीं थी। उन्होने ने 1961/62 से 1974/75 तक भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेले। उन्होंने पाँच एकदिवसीय मैच भी खेले , जो सभी 1974/75 में खेले गए। उन्होंने टेस्ट मैचों में 31 की औसत से 2,611 रन बनाए, जिनमें दो शतक शामिल हैं और उनका सर्वोच्च स्कोर 121 रहा। उन्होंने 66 कैच लिए और 16 स्टंपिंग की। उनके टेस्ट कैरियर का सबसे स्वर्णिम वर्ष 1971 रहा जब भारत ने पहले वेस्ट इंडीज और फिर इंग्लैंड में जाकर पहली बार श्रृंखला जीती थी। ओवल टेस्ट के ऐतिहासिक विजय में उन्होंने दोनों पारियों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। पहली पारी में जहां उन्होंने 59 रन बनाए वहीं दूसरी पारी में जब 174 के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत के 134 रनों पर ही 5 विकेट गिर गए तो 28 नाबाद रनों की महत्वपूर्ण पारी खेलकर भारत को विजयी बनाया।
शायद उनके रन और भी ज्यादा होते अगर वे आक्रामक शैली में थोड़ा ठहराव ले आते। पर वे एंटरटेनर थे और अपनी बल्लेबाजी देखने आए हुए दर्शकों को निराश नहीं करना चाहते थे। कहते हैं कि जब एक बार उनसे इंग्लैंड के महान सलामी बल्लेबाज बायकाट ने कहा कि आप के पास मुझसे अधिक प्रतिभा है, पर अपने टेम्परामेंट के चलते मैंने आपसे अधिक रन बनाए, तो फारुख ने जबाव दिया - '' पर ज्याफ, लोग देखने किसे आते हैं?" कहा जाता है कि भारत और लैंकाशायर में उनकी शानदार चमकदार बल्लेबाजी को देखने के लिए स्टेडियम में लोगों की भीड़ जुट जाती थी। उनकी लोकप्रियता का आलम ये थे कि एक बार मैनचेस्टर में तय सीमा से अधिक तेज गाड़ी चलाने के जुर्म में ट्रैफिक इंस्पेक्टर चालान काटने लगा, पर जब वह उन्हें पहचान लिया तो हंस कर ये कहते हुए चालान नहीं काटा कि अगर मैंने चालान काट दिया तो मेरे पिता मुझ पर बहुत नाराज हो जाएंगे।
फारुख सिर्फ क्रिकेटर ही नहीं थे, बल्कि स्टार थे। अपने डैशिंग लुक और चुम्बकीय आकर्षण के चलते लोगों, खासकर महिलाओं के बीच बेहद लोकप्रिय थे। वे खाने-पीने और कपड़ों के शौकीन हैं। तभी उन्हें मिले इस सम्मान की चर्चा के दौरान कमेंट्री बॉक्स में रवि शास्त्री ने ऑन-एयर कहा, 'फारुख अपने समय के पिन-अप बॉय थे। वे बहुत फेमस थे। शुरुआत से लेकर अब तक वे वैसे ही हैं, बिल्कुल नहीं बदले। वे एक बहुत अच्छे स्टोरी टेलर है, लेकिन उनकी जो एक सबसे खास बात ये है कि वह खाते बहुत हैं। आप देखेंगे कि खाने के समय उनकी प्लेट हमेशा भरी रहेगी।''
23 जनवरी 1975 को नए बने वानखेड़े स्टेडियम में वेस्टइंडीज के ही विरुद्ध उन्होंने अपना अंतिम टेस्ट खेला। उसी साल वे प्रथम विश्व कप लिए भारतीय टीम में शामिल थे, पर उसी साल के अंत में न्यूजीलैंड और वेस्टइंडीज के दौरे के लिए उन्हें नहीं चुना गया। लैंकाशायर के लिए 1968 से लेकर 1976 तक उन्होंने 9 सीज़न खेले और इस दौरान लैंकाशायर, जिसने 1950 से कोई ट्रॉफी नहीं जीती थी, 4 बार जिलेट कप और 2 बार जॉन प्लेयर लीग कप जीता। बाद में वे शादी करके वहीं बस गए।बाद में वे क्लब के उपाध्यक्ष भी बने। 1983 में जब भारत ने विश्व कप जीता था तो वे कमेंट्री बॉक्स में मौजूद थे। 2024 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्रदान किया। पर उन्हें थोड़ा मलाल है कि मुंबई, खासकर ब्रेबोर्न स्टेडियम, जहां कि उन्होने अधिकांश क्रिकेट खेली है, उन्हें इस तरह सम्मान नहीं मिला है। क्या लैंकाशायर काउंटी की तरह बीसीसीआई भी बेबोर्न या वानखेडे के किसी स्टैंड का नाम उनके नाम पर रखेगी? (साभार)