बुधवार, 23 जुलाई 2025

हरेली-टोनही ज़मीन से अढ़ाई फिट ऊपर…

 हरेली-टोनही ज़मीन से अढ़ाई फिट ऊपर… 


छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार हरेली है और इसे सावन मास के अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन किसान अपने खेती किसानी में प्रयुक्त होने वाले औजारो की पूजा करते हैं तो घर घर न केवल पकवान बनते हैं बल्कि घर में आने वाली तमाम तरह की बाधाओं को दूर करने के उपाय किए जाते हैं, तब वह क़िस्सा जो बचपन की स्मृति लिये ज़ेहन में समाया हुआ है उसे आज आपके साथ शेयर कर रहा हूँ…

बात तीस पैतीस साल पुरानी है, कहा जाता है कि यह अमावस्या जादू टोने के लिये सबसे उपयुक्त दिन है, इस दिन तमाम तरह की शक्तियों को जागृत भी किया जाता है इसलिए आज के दिन टोनही झुपने ज़रूर निकलती है।

इस कहा सुना के फेर में हम कुछ दोस्त नदी किनारे रात में पहुँच गये , मान्यता है कि टोनही रात में निकलती है और वह न केवल ज़मीन से अढ़ाई फिट ऊपर चलती है बल्कि उसके मुँह से आग भी निकलते रहता है।

इस पहचान के आधार पर हम कुछ दोस्तों के साथ नदी किनारे जा कर चक्कर लगाने लगे।

उस रात हमे कुछ नहीं दिखा, यह सिलसिला कई सालों तक चला…

फिर …

अब भी इस मान्यता पर क्या कहें…

हरेली तिहार के दिन पूजा करने से पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित रहता है और फसल उगती है तो किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है. हरेली तिहार मनाने से फसल को हानिकारक किट तथा अनेको बीमारिया नही होती है इसलिए हरेली तिहार मनाया जाता है. हरेली त्यौहार के दौरान छत्तीसगढ़ के लोग अपने-अपने खेतों में भेलवा पेड़ की शाखाएँ लगाते हैं. वे  अपने घरों के प्रवेश द्वार पर  नीम के पेड़ की शाखाएँ भी लगाते हैं. नीम में औषधीय गुण होते हैं जो बीमारियों के साथ-साथ कीड़ों को भी रोकते हैं.  लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है. हरेली पर्व में, गांव और शहरों में नारियल फेंक प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. सुबह पूजा-अर्चना के बाद, गांव के चौक-चौराहों पर युवाओं की टोली एकत्रित होती है और नारियल फेंक प्रतियोगिता खेली जाती है. इस प्रतियोगिता में, लोग नारियल को फेंककर दूरी का मापन करते हैं. नारियल हारने और जीतने का सिलसिला रात के देर तक चलता है,  हरेली त्यौहार के दिन गाय बैल भैंस को भी साफ सुथरा कर नहलाते हैं. अपनी खेती में काम आने वाले औजारों को हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को धोकर और घर के बीच आंगन में रख दिया जाता है या आंगन के किसी कोने में मुरूम बिछाकर पूजा के लिए सजाते हैं और उसकी पूजा की जाती है साथ ही अपने कुलदेवता की भी पूजा की जाती है .  

माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं और कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला का भोग लगाया जाता है. अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं के साथ पूजा करते हैं. हरेली के बच्चे गेंड़ी का आनंद लेते हैं. इस अवसर पर सभी के घरों में विशेष प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं. चावल के आटे से बनी चीला रोटी को इस दिन लोग खूब चाव से खाते हैं. कोई इसे नमकीन बनाता है, तो कोई इसे मीठा भी बनाते हैं. यह खाने वालों की पसंद के ऊपर होता है. इस तरह से यह त्यौहार परम्पराओं से भरी हुई है. हरेली तिहार के दिन सभी लोग अपने–अपने दरवाजा पर नीम टहनी तोड़ कर टांग देते है और इसी बहुत गेंड़ी खेल का आयोजन शुरु हो जाता है. हरेली तिहार के दिन सुबह से ही बच्चे से लेकर युवा तक 20 या 25 फिट तक गेंडी बनाया जाता है. उसी दिन सभी युवा एवं बच्चे गेंडी चढ़ते है गावं में घूमते है. बच्चों और युवाओं के बीच गेंड़ी दौड़ प्रतियोगिता भी की जाती है.