एक लाख की कंपनी दस साल में तीस करोड़ की कैसे हो गई
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की यह कहानी भी
वैसे तो मोदी सरकार पर इलेक्ट्रोलर बॉण्ड के ज़रिए ही नहीं बड़े क़र्ज़दारों के बैंक लोन माफ़ कर चंदा वसूलने का आरोप लगता रहा है लेकिन आज हम पीयूष गोयल की वह चौंकाने वाली कहानी लेकर आये हैं जिसे सुनकर शायद आपके आँखों में बंधी पट्टी हट जाये…
नरेंद्र मोदी की सत्ता ने 2014 में कुर्सी कब्जाने के बाद से देश में फर्जीवाड़े से तिजोरी भरने का खुला खेल शुरू किया, लेकिन सिर्फ अपनों के लिए।
आम जनता बिना भगवा ओढ़े यह काम नहीं कर सकती।
ये कहानी मोदी के पीएम बनने से बहुत पहले, यानी 2005–06 से शुरू होती है।
मोदी के कद्दावर मंत्री और पेशे से CA पीयूष गोयल ने अपनी पत्नी सीमा गोयल के साथ मिलकर 1 लाख रुपए की जमा पूंजी से एक कंपनी खोली।
नाम रखा–इंटरकॉन एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड।
गोयल 13 मई 2014 तक इसके डायरेक्टर रहे। फिर मोदी सत्ता के आते ही पद छोड़ दिया।
1 लाख की पूंजी वाली इस कंपनी के 10 हजार शेयर्स थे–यानी 10 रुपए प्रति शेयर।
गोयल के पद छोड़ते ही सीमा के पास 9999 शेयर आ गए। एक शेयर जेबखर्च के रूप में बेटे ध्रुव के नाम कर दिया गया।
अब यहां से सारा खेल शुरू होता है।
गोयल के मंत्री बनते ही इंटरकॉन की आय 10 साल (2005 से) में बढ़कर 30 करोड़ हो गई।
इस 1 लाख के 30 करोड़ में (3000 %) बढ़ने की कहानी बहुत दिलचस्प है, क्योंकि इंटरकॉन ने आज तक कॉरपोरेट मंत्रालय को यह नहीं बताया कि कंपनी ने ऐसा कौन सा काम किया कि आय 30 करोड़ हो गई।
इस लूट के खेल को यूं समझें।
असल में, गोयल परिवार और दोस्तों–रिश्तेदारों का कुनबा 11 ऐसी कंपनियों से जुड़ा हुआ था, जिन्होंने बैंकों का लोन हड़पा।
गोयल के मंत्री बनते ही कुछ कंपनियों का लोन माफ हुआ तो कुछ दीवालिया होकर बेदाग निकल गईं।
इन्हीं में एक कंपनी थी शिरडी इंडस्ट्रीज। इस कंपनी ने 651 करोड़ का लोन लिया। नहीं चुकाया तो 2017 में 65% लोन माफ करवाया गया।
एक और कंपनी असीस प्लाईवुड ने 458 करोड़ का लोन हड़पकर खुद को कंगाल घोषित करवा दिया।
असीस इंडिया इंफ्रा पर भी 457 करोड़ का लोन था। असीस इंडस्ट्रीज को भी 258 करोड़ का लोन मिला।
सारे लोन का अधिकांश हिस्सा माफ हुआ। दिलचस्प है कि शिरडी से लेकर असीस ग्रुप तक की कंपनियों का ईमेल bknath@asisindia.com ही था। यानी चारों घपलेबाज कंपनियां एक ही शख्स की थीं।
इसी तरह की 11 कंपनियों के साथ गोयल परिवार के करीबी रिश्ते रहे और पीयूष बतौर केंद्रीय मंत्री उनके लिए काम करते रहे।
इन सभी 11 कंपनियों में मोदी सत्ता के आते ही गोयल और उसके परिवार के बतौर निदेशक इस्तीफे तो हुए, लेकिन जिन नए लोगों को बदले में लाया गया, वे भी गोयल परिवार से जुड़े थे।
इनमें राकेश अग्रवाल, मुकेश बंसल, अमित बंसल, मुकेश शाह और प्रशांत शेणॉय जैसे नाम हैं।
राकेश और मुकेश बंसल ने तो सरेआम कहा कि उनके पीयूष के परिवार से रिश्ते हैं।
वहीं, पीयूष गोयल परिवार का दावा है कि इंटरकॉन का काम सिर्फ एडवाइस देना था। यानी कंपनी पैसा लेकर सलाह देती है।
कैसी सलाह? जाहिर है लोन हड़पने की, दीवालिया होकर निकल लेने की, अपना लोन माफ करवा लेने की।
फिर मंत्री बनकर पीयूष गोयल किस तरह इन 11 कंपनियों की मदद कर रहे थे?
सत्ता के रसूख में अपने दोस्तों का लोन माफ करवाना, उन्हें बच निकलने का रास्ता बताना।
क्या यह हितों का टकराव नहीं है? याद रखे–पीयूष गोयल अभी भी केंद्रीय मंत्री है।
लेकिन, न खाऊंगा, न खाने दूंगा का जुमला फेंककर देश को बरगलाने वाले नरेंद्र मोदी ने सब जानते हुए पीयूष की फाइल दबाकर रखी।
कांग्रेस ने जब 2018 में इस मामले को उठाया तो इसी मोदी सत्ता ने झूठा बताकर हवा में उड़ा दिया।
तब तक गोदी मीडिया भी बिक चुकी थी।
आज भी किसी पत्रकार में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह इस मामले को दोबारा उठाने की हिम्मत कर सके।
अब यह साफ हो चुका है कि इसी मोदी सत्ता के मंत्री, संत्री, माननीयों ने किस तरह ऐसी करप्ट कंपनियों के लिए दलाली की और बैंकों से 14 लाख करोड़ के लोन माफ करवा दिए।
अभी भी करीब 150 माननीय देश के लिए नहीं, कंपनियों के लिए काम करते हैं।
नतीजा इंटरकॉन जैसी और भी कंपनियां खड़ी हो रही हैं और गरीब जनता के टैक्स का पैसा लूट रही हैं।
देश को बचाने के लिए सिर्फ नरेंद्र मोदी का ही जाना जरूरी नहीं।
उनके साथ देश की करप्ट सत्ता को भी अगले 200 साल तक उखाड़ फेंकना जरूरी है। (साभार)
वरना ऐसी सत्ता सैकड़ों पीयूष को पालती रहेगी।
Soumitra Roy