गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

ग्राहम स्टेन्स की हत्या करने वाला महेंद्र की रिहाई

 ग्राहम स्टेन्स की हत्या करने वाला महेंद्र की रिहाई  




आस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स को जिंदा जलाकर मार डालने के अपराध में शामिल महेंद्र हेम्ब्रम को अच्छे व्यवहार के आधार पर जेल से रिहा कर दिया गया है । 


ऑस्ट्रेलिया के एक पादरी थे ग्राहम स्टेन्स । ओडिशा के आदिवासी इलाकों में कुष्ठ रोगियों की सेवा करते थे। 30 सालों से वहां एक्टिव थे । 

22-23 जनवरी 1999 के रात की बात है जब वह अपने दो बेटों 10 साल के फिलिप और 6 साल के टिमोथी के साथ ग्राहम अपनी जीप में सो रहे थे । तभी कुछ लोगों ने उनकी जीप में आग लगा दी । उन्हें शक था कि ग्राहम सेवा की आड़ में धर्मांतरण कराते हैं । अपने 2 बेटों के साथ ग्राहम स्टेन्स जीप में जिंदा जलकर मर गए । 

इस घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया था । इस केस में 51 लोगों की गिरफ्तारी हुई जिसमे 14 लोग दोषी पाए गए पर सजा 3 को ही हुई । सजा पाए इन्हीं लोगों में से एक था महेंद्र हेम्ब्रम । कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी लेकिन 25 साल की कैद के बाद अब उसे कोर्ट ने रिहा कर दिया गया है क्योंकि कैद मे उसका व्यवहार ‘ अच्छा ‘ पाया गया है । 

'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक, महेंद्र हेम्ब्रम की रिहाई के लिए ओडिशा राज्य सजा समीक्षा बोर्ड (Odisha State Sentence Review Board) ने सिफारिश की थी । इसके बाद कोर्ट ने जेल में 'अच्छे व्यवहार’ के आधार पर हेम्ब्रम को रिहा करने का आदेश दिया। 25 साल की उम्र में सजा मिली । 50 साल का हेंब्रम बुधवार को जेल से बाहर आया । स्वागत में उसके समर्थकों ने उसे माला पहनाई और ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए । 

दारा सिंह जेल में- 

ग्राहम स्टेन्स को बेटों समेत जिंदा जलाने वाले लोगों में हेम्ब्रम के अलावा दारा सिंह भी मुख्य दोषी पाया गया था । उसे कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी । पर बाद में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था । दारा सिंह अब इस मामले का अकेला दोषी है, जो अभी भी जेल में है । उसकी भी रिहाई के लिए भी लगातार अभियान चलाया जा रहा है और उम्मीद है कि वह भी ‘ अचछे व्यवहार ‘ के आधार पर शीघ्र रिहा हो जाएगा । 

इन लोगों की रिहाई कैंपेन को प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन माझी ने भी तब समर्थन दिया था , जब वो क्योंझर से विधायक होते थे ।

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

रग रग में राम

 


रामचरित मानस में तुलसीदासजी कहते हैं-
सीय राम मय सब जग जानी। 
करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी ।। 
सबसे कठिन और सबसे अद्भूत इस एक चौपाई में राम -सीता के जीवन का पूरा सार छिपा है। इस देश के पूरब से पछचिम और उत्तर से ठत दक्छिन तक राम  रचे बसे हैं,तो इसकी वजह राम  का वह जीवन-दर्शन है जो उन्हें आम जन के साथ खड़ा करता है।  वे चाँद पाने माता कौशल्या से हट करते हैं,तो पिता के वनवास की आज्ञा को सिर झुकाकर स्वीकार करते हैं। विश्वामित्र की यज्ञ की रक्छा से लेकर सीता वनवास का निर्मम फैसला हो या शबरी के जूठे बेर खाने का निर्णय , सबमे राम अलग से दिखलाई पड़ते हैं। सीता के अपहरण के बाद वन में भटकने से लेकर राम का सारा निर्णय राजा को राजघरानों और महलों से निकालकर भाषा-बानी ,मिटटी-पानी ,जड़-चेतन में फैलने का  उपक्रम है।  मनुष्य-मात्र का आख्यान वाले इन निर्णयों की वजह से ही राम पुष्प गंध की तरह हवा-पानी में रचे बसे हैं। राजशक्ति पर उठती ऊँगली को आमजन का अधिकार मानने की वजह से ही वे साधारण बन कर रग  रग में समाते चले गए।
यह साधारण सहजता ही राम को जन जन जन से जोड़ती है। वे कैकेई के  पुत्र मोह को सहज मानवीय प्रवृति के रूप में देखते हैं। राम की यही दृष्टि उन्हें वनवासियों से जोड़ती है,केवंट के दिल में उतारती है तो आमजन के सुख-दुःख का हिस्सेदार बनाती है। विश्वामित्र की यज्ञ की रक्छा से लेकर वनवास काल में जो उनसे मिलता है,अपना दुखड़ा सुनाते है,और राम उन सबको उबारते हैं। माता अहिल्या से लेकर सुग्रीव-हनुमान और फिर विभीषण सबमे वे ताकत बनकर समाते हैं।
राम से मिलन तब भी उत्सव था और आज भी उत्सव है। ऐसा उत्सव जिसमे राम न  स्वयं के रह जाते हैं और न ही उनका उत्सव मनाने वाले ही स्वयं के रह पाते हैं। राम का इस तरह मिलना ही राम राज्य की कल्पना को मूर्तरूप देता है। राम राजा है फिर भी वे किसी को अपने दरबार तक नहीं बुलाते , वे स्वयं सब तक जातें हैं। वे केंवट,शबरी , काक ,बंदर भालू सबको मान देते हैं। राम सबके बीच जाकर घुलते-मिलते हैं। यह घुलना-मिलना ही राम को व्यापकता देती है। राम सबको अपने लगते हैं। यंहा तक कि मृत्यु शैया में पड़े रावण से वे राजनीती का पाठ सीखने  लक्छ्मन को सलाह देते हैं। राम ने मानो कहा हो अच्छे गुण सीखने में कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए। दुश्मन की शक्ति को रेखांकित व् मान देने वाला यह निर्णय अद्भुत है।
इतिहास के सत्य से बड़ा कोई नहीं   होता। इतिहास आमजन का दर्शन बने। राम की यह कोशिश उनके हर निर्णय में शामिल है। इसलिए उनके हर निर्णय के पीछे साफ दिखता है कि व्यक्ति कितना भी बलवान हो जाये वह सत्य से बड़ा नहीं है। पिता की आज्ञा पर वनगमन का उनका निर्णय सत्ता का जन जन तक पहुंचने का अद्भुत मेल है। यह सहजता राम को जन जन से जोड़ती है। धरती-पुत्रों के नजदीक लाती है। पेड़-पौधों,पशु-पकछियों वनवासियों सबसे जोड़ती है। इस सहजता में सर्वशक्तिमान का कंही आभास नहीं होने देते राम। कठिन परिस्थितियों में भी राम की सहजता उन्हें सबसे अलग तो करती है,लेकिन इस अलगपन में भी वे सबसे घुल-मिल जाते हैं। वे कोई घोषणा नहीं करते। बल्कि वे स्वयं को लोगों की रक्त धमनियों में प्रवाहित करते हैं।
वनवास काल की सहजता में सीता को पाने की अधीरता के बाद भी राम सत्य के साथ  हैं। साधारण जन के प्रश्न पर सीता को वन वन में छोड़ने का आदेश सत्य को न्याय देने का निर्णय है। धरती-पुत्री की पवित्रता पर उठी ऊँगली को न्याय देने का यह निर्मम निर्णय ही सीता-राम को एक करता है।
मनुष्य मात्र की नियति कर्म मात्र है। नियति के  इस खेल से कोई अछूता नहीं है। समय की माप का सृष्टा सूर्य भी कंहा इससे बच पाया है। फिर राम और सीता कर्म से परे कैसे हो सकते थे। उन्हें कितनी परीक्छा देनी पड़ी। पूरे  जीवन में राम अकेले दिखलाई पड़ते हैं।चौदह साल के वनवास और फिर एक साधारण जन के सवाल पर सीता का वनवास। फिर भी राम-सीता कभी अलग नहीं हुए। सीता,राम के पार्श्व में नहीं सदा साथ-संग बगल में खड़ी हैं। सही मायने में राम की पूर्णता सीता की भूमिका के बगैर क्रियान्वित हो ही नहीं सकता। अन्याय का विरोध और उसके नाश का कारण की भूमिका में सीता खड़ी ही है,साधारण जन के आरोप में न्याय की सत्ता स्थापित करने की बड़ी भूमिका भी सीता की रही है।
राम-सीता का जैसे कुछ था ही नहीं,वे तो न्याय की सत्ता स्थापित करने ही अवतरित हुए थे। और इस कार्य में दोनों को सहस्त्रधाराओं में बंटना पड़ा। वे बंटे पर धरती  के प्राण में समाकर एक हो गए। पेड़-पौधों,,मिट्टी पानी में अलग-अलग  समाते हुए एक होते चले गए। वे एक-दूसरे में इतना समा गए कि आज भी भारत की हर स्त्रियां अपने पति में राम का रूप देखती हैं,और हर पति अपनी पत्नी में सीता का स्वरूप देखता है।
राम के निर्मम निर्णय के बाद भी राम-सीता अलग नहीं हुए। वे अलग कभी थे ही नहीं बल्कि अपने में       अडिग सत्य की स्थापना का प्रतिमान बने रहे। सत्य की मर्यादा में दोनों ऐसे घुलते रहे कि वे लोगों के रग रग में समाते चले गए। आदमी को आदमी बनाए रखने वे साधारण जन को मान देते रहे। राम ने राज्य और साधारण जन की अवधारणा ही बदल दी। वे अपनी सत्ता स्थापित करने की बजाय सत्य की सत्ता की स्थापना के कर्म में लगे रहे। यही वजह है कि राम आज भी इस देश के पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्छिन तक पूजे जाते हैं। वे देश के बोली,भाषा,मिट्टी ,पानी और जड़-पत्ते के शिराओं में आमजन के रग रग में रमे हैं। 

गुरुवार, 27 मार्च 2025

जज कर्णन रिहा हो गये, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना भारी पड़ा था

 जज कर्णन रिहा हो गये, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना भारी पड़ा था  

सच कड़वा होता है लेकिन यह वह सच है जो दलितों को उसकी हैसियत बताता है, अम्बेडकर के संविधान के रहते 


 पढ़िए. समझिये. कोई दलित जज बनकर भी आवाज़ नहीं उठा सकता है. और अगर हिमाकत की तो सजा तय है, भले ही आप जज क्यों नहीं हों।



यह व्यक्ति जस्टिस कर्णन है जो कोट पहनकर फिल्मी स्टाइल में घूमता है। चिन्नास्वामी स्वामीनाथन कर्णन। वह न्यायालय की अवमानना के लिए छह महीने की जेल की सजा काटकर बाहर आ रहे हैं। 


कर्णन कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। वह मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। वहां के पहले दलित न्यायाधीश। वह न्यायाधीश रहते हुए जेल की सजा काटने वाले पहले न्यायाधीश भी हैं। अब उनके बारे में बात करने की वजह भी है। 


2017 में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा था। एक पत्र जिसमें 20 न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार की जानकारी थी। यह पत्र एक बड़ा विवाद बन गया। इससे संवैधानिक संकट पैदा हो गया।


 इतिहास में पहली बार किसी मौजूदा न्यायाधीश ने दूसरे न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। केंद्र सरकार इस पत्र को जारी करने के लिए तैयार नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति कर्णन के खिलाफ न्यायालय की अवमानना का मामला दर्ज किया। 


न्यायमूर्ति कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और कुछ अन्य न्यायाधीशों को पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला जीत लिया। 


उन्होंने छह महीने की जेल की सजा काटी। उस समय उनका विरोध करने वालों ने कहा था कि वे पागल हैं। लेकिन अब जब एक जज के घर से करोड़ों रुपए का काला धन बरामद हुआ है, तो यह स्पष्ट हो गया है कि कर्णन सही थे।


न्यायपालिका को न्यायालय के अलावा कोई और नहीं सुधार सकता। जस्टिस कर्णन की ओर से यह एक विनम्र प्रयास था। हमारे पास यह उम्मीद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है कि ऐसे और भी जज होंगे!!

(साभार)

सोमवार, 24 मार्च 2025

सुशांत केस बंद..पर रिया को इंसाफ़ कौन देगा!

 समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में सीबीआई ने दो क्लोज़र रिपोर्ट दाख़िल कर दी हैं. इन रिपोर्टों में अभिनेता की मौत के मामले में किसी साज़िश से इनकार किया गया है.

महीनों तक रिया चक्रवर्ती का मीडिया ट्रायल हुआ और उसे अपराधी घोषित कर दिया गया.



सुशांत केस बंद..पर रिया को इंसाफ़ कौन देगा!

●●

रिया दोषी थी या नहीं, ये अब कोई नहीं पूछ रहा…

मीडिया का काम पूरा हो चुका है।

उस दिन एक नहीं, दो मौतें हुई थीं।

●●

पहली— सुशांत की।

दूसरी— रिया की निजता, करियर और चरित्र की।

●●

1998 में मोनिका लेविंस्की के साथ भी यही हुआ था।

राष्ट्रपति क्लिंटन को बचाने के लिए मीडिया ने मोनिका को शिकार बना दिया।

आज वही खेल रिया के साथ खेला गया।

●●

"क्या रिया ने ड्रग्स लिए?"

"क्या रिया ने सुशांत को मारा?"

"रिया 'विषकन्या' थी?"

●●

सवालों का ढोंग था…

फैसला तो पहले ही सुना दिया गया था।

●●

राजकुमारी डायना मीडिया से बचते-बचते मर गईं।

मोनिका लेविंस्की ने लड़ाई लड़ी, और आज ऑनलाइन उत्पीड़न के खिलाफ खड़ी हैं।

रिया को भी लड़ना होगा…

क्योंकि उसका सामना ऐसे शिकारी से है जो मरने के बाद भी शिकार को बेचता है।

●●

जब समाज ही जल्लाद बन जाए, तो समझो सभ्यता की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी 

                सीबीआई आज़ जिस निष्कर्ष पर पहुंची है तब मुंबई पुलिस ने भी यही कहा था और इसे आत्महत्या क़रार दिया था. लेकिन मीडिया ट्रायल के दबाव एवं राजनीतिक लाभ के मद्देनजर यह केस सीबीआई को सौंप दिया गया.

 सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट के बाद न्यूज चैनलों के खिलाफ ग़लत खबर चलाने एवं एक महिला के उत्पीड़न मामले में आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए. 

https://youtu.be/VVmOxeYQyIE?si=eky00ThRywHw-Cok

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

सांसद से रिश्तेदारी भारी पड़ी डॉक्टर को

सांसद से रिश्तेदारी भारी पड़ी डॉक्टर को 


छत्तीसगढ़ बीजेपी में चल रहे उठापटक के बीच अब जो खबर आ रही है वह बेहद ही चौंकाने वाला इसलिए है क्योंकि अब बीजेपी की लड़ाई राजनीति से इतर जाकर शुरू होने की बात कही जा रही है, और अब आयकर विभाग के द्वारा मारे गये छापे को भी बीजेपी के अंदरूनी राजनीति से जोड़ा जा रहा है।

छत्तीसगढ़ की राजनीति में बीजेपी के क़द्दावर माने जाने वाले रायपुर के सांसद के अपमान और उपेच्छा को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच अब यह क़िस्सा भी ज़ोर पकड़ने लगा है कि पिछले दिनों जिस तरह से उनके भाई योगेश अग्रवाल को राईस मिल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था , उसके बाद अब उनके एक और रिश्तेदार भी बीजेपी के निशाने पर आ गये है।

पिछले दिनों देवेंद्र नगर में डॉ सुनील खेमका के हॉस्पिटल में आयकर विभाग की छापेमारी को भी राजनीति से जोड़ा जा रहा है।

ज़मीन से लेकर अस्पताल और इलाज में लापरवाही के लिये चर्चित इस अस्पताल की कहानी कम चर्चित नहीं है और कहा जाता है कि विवादों में रहने के बावजूद बृजमोहन अग्रवाल से रिश्तेदारी की वजह से वे बचते रहे हैं।

लेकिन अब वे बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई के चलते निशाने पर हैं ।पिछले दिनों आयकर विभाग ने छापेमारी कर जिस तरह आरोप लगाये हैं वह चौंकाने वाला है । इस कार्रवाई का नेतृत्व मुख्य आयकर आयुक्त (CCIT) अपर्णा करन और प्रधान आयकर आयुक्त (PCIT) प्रदीप हेडाऊ के निर्देशन में किया गया। संयुक्त आयुक्त बीरेंद्र कुमार और उप आयुक्त राहुल मिश्रा के नेतृत्व में 26 सदस्यीय टीम ने 48 घंटे तक अस्पताल के वित्तीय दस्तावेजों की गहन जांच की।

एक वरिष्ठ आयकर अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि डॉ. सुनील खेमका ने पूछताछ के दौरान कर गड़बड़ी स्वीकार की। आयकर विभाग ने उन्हें तत्काल 11 करोड़ रुपये का अग्रिम कर जमा करने के निर्देश दिए हैं, जबकि शेष राशि पर ब्याज और अतिरिक्त दंड की गणना कर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

रविवार, 2 मार्च 2025

प्रेम रावत ने रचा इतिहास, हैरी पॉटर की लेखिका का रिकॉर्ड तोड़ा

प्रेम रावत ने भारत में रचा इतिहास, हैरी पॉटर की लेखिका जे.के. रोलिंग का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 1,33,234 प्रतिभागियों के साथ गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड स्थापित किया।




अंतर्राष्ट्रीय लेखक प्रेम रावत और भारतीय लेखक विपुल रिखी ने एक साथ सबसे बड़े ‘एक से अधिक लेखक पुस्तक वाचन’ का नया गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में राज विद्या केंद्र द्वारा आयोजित इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में 1,33,234 लोगों की विशाल समूह को संबोधित किया। यह संख्या जे.के. रोलिंग और कनाडा के दो लेखकों द्वारा वर्ष 2000 में बनाए गए 20,264 लोगों के पिछले रिकॉर्ड से लगभग 1,13,000 अधिक है।

प्रेम रावत, जो न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक हैं और ""स्वयं की आवाज (Hear Yourself)" जैसी चर्चित पुस्तक लिख चुके हैं, ने अपनी नई पुस्तक "श्वास : जीवन के प्रति जागरूक हों(Breath: Wake Up to Life)" के अंश पढ़े। यह पुस्तक अंग्रेजी में पैन मैकमिलन (Pan Macmillan) and  और हिंदी में हार्पर कॉलिन्स (HarperCollins) इंडिया द्वारा प्रकाशित की गई है। उन्होंनें अपनी पुस्तक से पढ़ कर सुनाया कि: 

“श्वास आपके अंदर आती है और आप जीवित रहते हैं।  जो शक्ति पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त  है, वही श्वास के रूप में आपके अंदर आती है और आपको जीवन देती है। जो अविनाशी है, अनंत है उसको महसूस करें। और जब आप उससे जुड़ जातें हैं, उस पल यह श्वास अनंत हो जाती है। अंदर की ओर मुड़िए, इस श्वास को महसूस कीजिए। यही सबसे अविश्वसनीय चमत्कार है। जिस आनंद को आप खोज रहे हैं, वह बाहर नहीं, बल्कि आपके अंदर मौजूद  है।”  

इस आयोजन में विपुल रिखी ने भी अपनी पुस्तक "Drunk on Love (ड्रंक ऑन लव) कबीर की रचनाओं की काव्यात्मक व्याख्या”, के अंश पढ़े। यह पुस्तक भी हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित की गई है। उन्होंने कबीर के इस दोहे का अनुवाद सुनाया 

‘स्वांस स्वांस में नाम ले विरथा स्वांस मत खोये, ना जाने इस स्वांस का फिर आवन होये ना होये’ हर साँस में उसके नाम को याद करो, एक भी साँस व्यर्थ न जाने दो। कौन जानता है कि अगला पल आएगा या नहीं, अगली साँस मिलेगी या नहीं।

 

यह प्रेम रावत जी का तीसरा गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड है। इससे पहले, उन्होंने 2023 में दो रिकॉर्ड बनाए थे – ‘एक लेखक पुस्तक वाचन’ में सबसे बड़ी दर्शक संख्या, जिसमें 1,14,704 लोग शामिल हुए थे, और सबसे बड़े ‘व्याख्यान (लेक्चर)’ में भाग लेने वाली दर्शक संख्या, जिसमें 3,75,603 लोग उपस्थित थे। यह नया रिकॉर्ड उनकी प्रेरणादायक शांति और आशा के संदेश की विश्वविख्यात लोकप्रियता को दर्शाता है, जिससे भारत और दुनिया भर में लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।

"इस ऐतिहासिक आयोजन की इतनी बड़ी और शानदार प्रतिक्रिया देखकर हम बेहद उत्साहित हैं।"  राज विद्या केंद्र और अंतरराष्ट्रीय संगठन "वर्ड्स ऑफ पीस ग्लोबल (Words of Peace Global)" के प्रवक्ता लोहित शर्मा ने कहा। "यह कार्यक्रम दर्शाता है कि प्रेम रावत का संदेश लोगों को शांति की ओर प्रेरित करने में कितना प्रभावशाली है, जो आज की दुनिया के लिए बहुत जरूरी है।"

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

आश्रम में रात को बुलाई महिला को लेकर गाँव वालों ने जब हंगामा मचाया, तब हुई कार्रवाई

 आश्रम में रात को बुलाई महिला को लेकर गाँव वालों ने जब हंगामा मचाया, तब हुई कार्रवाई 


छत्तीसगढ़  के बलरामपुर ज़िले  से आई खबर ने एक बार फिर एजुकेशन विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बालक बालिका आश्रमों  की ज़िम्मेदारी सँभालने वालों की कारगुज़ारियों से एजुकेशन विभाग का शर्मसार होने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।

ताज़ा मामला  पहाड़ी कोरवा आश्रम  कोठली का है । और ग्रामीणों के हंगामे के बाद मामले की लीपापोती की भी खबर है।

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के कलेक्टर ने आश्रम में रंगरेलियां मनाने वाले आश्रम के अधीक्षक को पद से हटा दिया है। साथ ही रात रुकने वाली शिक्षिका को निलंबित कर दिया है। दोनों पहाड़ी कोरवा बालक आश्रम में बिना किसी सूचना के रात रुके थे। जिसे ग्रामीणों ने रंगे हाथों पकड़ा था।मामला सामने आने के बाद आक्रोशित लोगों ने दोनों को घेर लिया था।

दरअसल, पहाड़ी कोरवा आश्रम कोठली के अधीक्षक रंजीत कुमार ने बिना किसी सूचना के प्राथमिक शाला की शिक्षिका को रात में हॉस्टल में ठहराया था। जिसे वहां के छात्रों ने  रंगे हाथों पकड़े था। मामले की जानकारी मिलने के बाद आक्रोशित ग्रामीणों ने दोनों को आश्रम के अंदर ही घेर लिया। फिर मामले की शिकायत बीईओ को दी गई। 

ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने 13 फ़रवरी की रात में फोन के माध्यम से सम्बंधित अफसरों को मामले की सूचना दी। जिसमें कहा गया कि, आश्रम अधीक्षक रंजीत कुमार आश्रम में महिला लेकर आए हैं। जो अधीक्षक रंजीत कुमार के साथ अवैधानिक रूप से शासकीय पहाड़ी कोरवा आश्रम में रुकी है। जिसे ग्रामीणों ने आश्रम के अन्दर घेर कर रखा है। जिसके बाद अधिकारी तुरंत पुलिस बल के साथ घटना स्थल पर पहुंचे। पूरे मामले की जांच में सेजल मिंज को सिविल सेवा आचरण नियम की जानकारी होने के बाद भी लापरवाही करना पाया गया।

मामले की जांच के बाद बलरामपुर के कलेक्टर ने बड़ी कार्यवाही करते हुए शिक्षिका को निलंबित कर दिया है। साथ ही हॉस्टल अधीक्षक को भी पद से हटा दिया गया है। बीईओ ने इसे अमर्यादित और अशोभनीय के साथ-साथ अत्यंत गंभीर और अनुशासनहीनता बताते हुए प्रतिवेदन दिया था। पदीय दायित्व के विपरीत गंभीर कदाचार करने के कारण छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियम के तहत कार्यवाही की गई है।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

जो सही हो उसे ही चुनो तो जीवन में आनंद और शांति आएगी-प्रेम रावत

जो सही हो उसे ही चुनो तो जीवन में आनंद और शांति आएगी-प्रेम रावत 


 चेतना के आइंस्टीन के रूप में पूरी दुनिया में विख्यात प्रेम रावत को सुनने जब नया रायपुर में लोग टूट पड़े। श्री रावत ने कहा कि जीवन में शांति और आनंद आपके भीतर है बस आपको सही रास्ते का चुनाव करना है, लेकिन मनुष्य सही रास्ते की बजाय पसंदीदा रास्ता चुनता है। इसलिए शांति और आनंद कहीं खो जाता है, ऐसे में सही रास्ते का चुनाव ही व्यक्ति के जीवन को सार्थक बनाता है, रास्ता हमे ही चुनना है, और यह निर्णय कोई और नहीं आपको लेना है। इसलिए जो कुछ भी करो सोच समझ कर करो।

 

प्रेम रावत जी ने अपने सम्बोधन की शुरुआत में कहा कि रायपुर का यह कार्यक्रम सुनने और समझने का एक बहुत सुंदर अवसर है। उन्होंने समझाया कि संसार का हर व्यक्ति - चाहे वह कोई भी हो, कहीं भी रहता हो, वह तीन कानूनों से बंधा हुआ है - एक दिन हम इस संसार में आये थे, अभी हम जीवित हैं और एक दिन हमें इस संसार से जाना होगा।

 

उन्होंने आगे समझाया कि एक गंगा प्रयागराज में स्थित है, जहाँ पहुँचने के लिए सबको वहाँ तक जाना पड़ता है। लेकिन एक गंगा ऐसी भी है, जो हमारे अंदर की गंगा है। इस अंदर की गंगा में डुबकी लगाने के लिए, हमें कहीं जाने की जरूरत नहीं है, सिर्फ अपने अंदर जाने की जरूरत है।

 

प्रेम रावत जी ने समझाया कि हमारे सामने दो रास्ते होते हैं - पहला श्रेय - जो सही है उसे चुनना। और दूसरा प्रेय - जो अच्छा लगे उसे चुनना। उन्होंने समझाया कि मनुष्य सही क्या है उसे नहीं चुनता। वह उस रास्ते को चुनता है जो उसे पसंद आता है, फिर चाहे वह सही न भी हो और इस लिए संसार की यह हालत हो गयी है।

 

उन्होंने मनुष्य जीवन में स्वाँस के महत्व को समझाते हुए कहा कि "यह जो स्वाँस आ रहा है, जा रहा है, यह भगवान की कृपा है। और जब तक यह आ रहा है, जा रहा है तुम जीवित हो। तुम इस बात का निर्णय ले सकते हो कि तुम्हारी जिंदगी में क्या होना चाहिए। जब तक तुम जीवित हो अपने जीवन में यह निर्णय ले सकते हो कि मैं उस आनंद का अनुभव करना चाहता हूँ, जो मेरे अंदर है। अगर तुमने यह निर्णय ले लिया कि तुम उस आनंद का अनुभव करना चाहते हो, तब मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"

 

उन्होंने अपने सम्बोधन के अंत में कहा कि "इस जीवन में जो भी होता है, वह तुम्हारी मर्ज़ी से होता है। इसलिए जो कुछ भी करो, सोच समझ कर करो। तुम अपना जीवन आनंद से भर सकते हो। सबके अंदर वह शांति और आनंद है जिसका सब अनुभव कर सकते हैं।"

प्रेम रावत

एक अंतरराष्ट्रीय वक्ता,

न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक,

एजुकेटर और ग्लोबल पीस एंबेसडर

 

1970 के दशक में एक बाल प्रतिभा और युवा आइकन के रूप में शुरुआत करने वाले प्रेम रावत ने लोगों को स्पष्टता, प्रेरणा और जीवन के प्रति गहरी समझ दी है। 

एक विश्व शांतिदूत की भूमिका के रूप में उन्होंने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया है। आज उनका  संदेश 110 से अधिक देशों में सुना जाता है, जहाँ वे हर व्यक्ति को आशा और शांति का संदेश देकर आंतरिक सुख और शांति का व्यावहारिक मार्ग दिखा रहे हैं।

उनके कार्यों को दुनिया भर में सराहना मिली है, जिसमें (1) एक लेखक के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में सबसे अधिक श्रोताओं की उपस्थिति दर्ज़ करने के लिए (114,704 लोग "स्वयं की आवाज" के पढ़ने में) और (2) एक सम्बोधन में सबसे बड़ी दर्शको की संख्या (375,603 लोग) के लिए दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड शामिल हैं। ये दोनों रिकॉर्ड 2023 में स्थापित किए गए। उन्हें 20 से अधिक प्रमुख शहरों की सम्मान चाबियां और कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें 2012 का प्रतिष्ठित ‘एशिया पैसिफिक ब्रांड लॉरिएट लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ शामिल है। इससे पहले यह अवॉर्ड  नोबेल पीस प्राइज विजेता नेल्सन मंडेला और स्टीव जॉब्स को प्रदान किया गया है।

एक लेखक होने के अलावा, प्रेम रावत "द प्रेम रावत फाउंडेशन" (TPRF) के संस्थापक भी हैं। यह संस्था भोजन, पानी और शांति जैसी बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने का कार्य करती है। इसकी "जन भोजन" पहल भारत, नेपाल, घाना और दक्षिण अफ्रीका में प्रतिदिन जरूरतमंद बच्चों और बीमार वयस्कों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती है। उनके व्याख्यानों पर आधारित "पीस एजुकेशन प्रोग्राम" 1,400 से अधिक शैक्षिक एवं अन्य संस्थानों में दिखाया जाता है, जिससे 5 लाख से अधिक लोगों को प्रभावित किया है। यह कार्यक्रम 1,000 से अधिक जेलों में भी चल रहा है, जिसके प्रभाव से कैदियों में दोबारा अपराध करने की संभावना कम पायी गई है।

वर्ष 2023 में  प्रेम रावत ने टीवी, प्रिंट और रेडियो सहित विभिन्न मीडिया माध्यमों से 91.6 करोड़ लोगों तक अपना संदेश पहुँचाया। उनका पॉडकास्ट चैनल " लाइफ एसेंशियल्स ( Life’s Essentials)" 110 से अधिक देशों में सुना जाता है। उनकी किताबें "स्वयं की आवाज़" और " शांति संभव है (Peace is Possible)" दुनिया भर में सराही गई हैं। प्रेम रावत केवल एक वक्ता या लेखक ही नहीं, बल्कि एक आविष्कारक, संगीतकार, कलाकार, फोटोग्राफर और कुशल जेट व हेलीकॉप्टर पायलट भी हैं, जिनके पास 15,000 घंटे के उड़ान समय का अनुभव है। वे विवाहित हैं और उनके चार बच्चे और चार पोते-पोतियाँ हैं।

प्रेम रावत जी के कार्यों को सरकारों, गैर-लाभकारी संगठनों, व्यापारिक संस्थानों और दुनिया भर के नागरिक संगठनों द्वारा स्वीकार किया गया है। उन्होंने ब्रिटेन से लेकर न्यूजीलैंड तक की संसदों में और हार्वर्ड व ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में व्याख्यान दिए हैं। 2011 में, प्रेम रावत यूरोपीय संघ (EU) के एक विशेष कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे, जहाँ उन्होंने "शांति की प्रतिज्ञा (Pledge to Peace )“ पर हस्ताक्षर किये और उन्हें इसका एंबेसडर घोषित किया गया ।




शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

18 साल की नौकरी में बीस बार सज़ा

 18 साल की नौकरी में बीस बार सज़ा  



सरकारी कर्मचारियों को लेकर आम धारणा अच्छी नहीं है तो इसकी वजह कई कर्मचारियों की करतूत है, और ऐसे में जो मामला सामने आया है वह हैरान कर देने वाला है 

18 साल की नौकरी में लगभग 20 बार किसी को दंडित किया जाए यह आम बात नहीं है। 20 बार अलग-अलग दंड के बाद अब सीधे बर्खास्‍तगी की कार्रवाई कर दी गई है।

यह मामला छत्‍तीसगढ़ सक्‍ती जिला का है। जिस सरकारी कर्मचारी का यह मामला है उसका नाम है विजय सिंह सिदार। विजय सिंह सक्‍ती जिला पुलिस बल में आरक्षक है। बर्खास्‍तगी से पहले वह सक्‍ती पुलिस लाइन में पदस्‍थ था। लगभग 20 बार अलग-अलग दंड मिलने के बाद भी जब वह नहीं सुधरा तो अब एसपी ने बर्खास्‍तगती का ओश जारी कर दिया है।

विजय सिंह की भर्ती कबीरधाम जिला पुलिस बल में 2007  में हुई थी। कुछ साल की नौकरी के बाद उसका ट्रांसफर जांजगीर-चांपा जिला में हो गया। जब जांजगीर-चांपा जिला का विभाजन कर सक्‍ती जिला बना तो वह सक्‍ती जिला में आ गया। तब से वह सक्‍ती जिला में ही पदस्‍थ है।

दरअसल विजय सिंह पर आरोप है कि वह अपनी नौकरी को लेकर गंभीर नहीं था। बार- बार बिना बताए ड्यूटी से गायब हो जाता था। इसी अनुशासनहीनता के कारण उसे बार-बार दंड मिला इसके बावजूद वह नहीं सुधरा। इस बार वह बिना छुट्टी स्‍वीकृत कराए 28 मार्च 2023 को गायब हो गया। 441 दिन बाद 10 जून 2024  को विजय सिंह फिर लाइन में आमद दिया। इस बीच उसकी शिकायत एसपी तक पहुंच चुकी थी।

एसपी अंकिता शर्मा ने विजय सिंह के खिलाफ विभागीय जांच बैठा दिया। विभागीय जांच में विजय सिंह के खिलाफ अनुशासनहीनता और कर्तव्‍य में घोर लापरवाही की बात साबित हुई। इसके आधार पर एसपी ने विजय सिंह को सेवा से बाहर करने का आदेश जारी कर दिया है।


रविवार, 26 जनवरी 2025

भारतीय संविधान में महिलाओं के 10 कानूनी अधिकार ( Women's Rights)


 भारतीय संविधान में महिलाओं के 10 कानूनी अधिकार ( Women's Rights)


सोशल कंडीशनिंग के कारण हमारे समाज में रहने वाले लोगों का महिलाओं के प्रति पक्षपाती नजरिया रहता है। लिंगवाद (Sexism) और पितृसत्ता (Patriarchy) अक्सर लोगों के फैसले को प्रभावित करती है।


भारत में हर मिनट महिलाओं के खिलाफ अपराध होते हैं। महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, चाहे वह अपने घरों में हों, सार्वजनिक स्थानों पर हों या कार्यस्थल पर हों। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या को देखते हुए, यह उचित है कि महिलाएं उन कानूनों के बारे में जागरूक हों जो उनकी सुरक्षा के लिए मौजूद हैं।


1. कार्यस्थल पर उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार - 

RIGHT AGAINST WORKPLACE HARASSMENT: ) अधिनियम, 2013:- 

यह अधिनियम महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम से पूर्व कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य[8] में दिशा निर्देश दिए थे। माननीय न्यायालय ने यौन उत्पीड़न को नए रूप में परिभाषित किया है जिसमे शारीरिक संपर्क, लैंगिक अनुकूलता की मांग या अनुरोध, लैंगिक अत्युक्त टिप्पणियाँ करना, अश्लील साहित्य दिखाना या कोई लैंगिक प्रकृति का कोई अन्य अवांछनीय शारीरिक मौखिक या अमौखिक आचरण करना शामिल किया गया।


2. महिलाओं का अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986:-


इस अधिनियम के तहत विभिन्न ऐसे प्रावधान है, जिनमे महिलाओ के अश्लील चित्रण को व्यापक अर्थ देने के साथ इस अपराध में शामिल व्यक्तियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विज्ञापन, प्रकाशन, लेखन एवं पेंटिंग या किसी अन्य रूप में महिलाओं के अश्लील चित्रण या महिलाओं के वस्तुकरण को रोकना है।


3.  घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार –


भारत में महिलाओं द्वारा उत्पीड़न में सबसे अधिक मामले घरेलू हिंसा के रहते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए गए 4.05 लाख मामलों में से 1.26 लाख सिर्फ घरेलू हिंसा के मामले थे। जीवन के सभी क्षेत्रों की महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है। महिलाओं के घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005. Protection of Women from Domestic Violence Act 2005 में बनाया गया। माता-पिता, भाइयों, पति या लिव-इन पार्टनर द्वारा पीड़ित की गयीं महिलाओं को इस अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाता है।


4. गुमनामी का अधिकार-


उन महिलाओं की पहचान की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण है जो जीवित हैं या उत्पीड़न या यौन हमले की शिकार हैं, यह अधिकार उन्हें एक विचाराधीन मामले में जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष गुमनाम रूप से अपना बयान दर्ज करने की भी अनुमति देता है। नाम न छापने का अधिकार भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा- 228 (ए) के तहत आता है।


5. मैटरनिटी लाभ का अधिकार-


गर्भवती महिलाओं के लिए मैटरनिटी लाभों को किसी एक विशेषाधिकार के रूप में नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि वे मैटरनिटी लाभ अधिनियम, 1961 के तहत आते हैं। अधिनियम प्रत्येक वर्किंग महिला को अपने और अपने बच्चे की देखभाल के लिए काम से फुल पेड लीव का अधिकार देता है। कोई भी संगठन जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं, इस अधिनियम का पालन करने के लिए बाध्य है।


6. गिरफ्तारी से सुरक्षा का अधिकार -


भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा-46 के अनुसार, किसी भी महिला को सुबह 6 बजे से पहले और शाम 6 बजे के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है, भले ही पुलिस के पास गिरफ्तारी वारंट हो। इतना ही नहीं, एक महिला को पूछताछ के लिए थाने जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 160 के तहत महिलाएं यह मांग कर सकती हैं कि किसी कांस्टेबल, परिवार के सदस्यों या दोस्तों की मौजूदगी में उनके पर पूछताछ की जाए।


7. समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976-


यह कानून सैलरी या रेम्यूनरेशन के मामले में होने वाले भेदभाव को रोकता है। यह पुरुष और महिला श्रमिकों को समान मुआवजे मिलने पर आवाज़ बुलंद करता है। महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए इन कानूनों को जानना आवश्यक है। अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने पर ही आप अपने साथ घर, कार्यस्थल या समाज में होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ सकते हैं।


8. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006-


इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर फॉर वीमेन के अनुसार, लगभग 47 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है। वर्तमान में, भारत बाल विवाह के मामले में दुनिया में 13 वें स्थान पर है। चूंकि बाल विवाह सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपरा में डूबा हुआ है, इसलिए इसे समाप्त करना कठिन रहा है। बाल विवाह निषेध अधिनियम को 2007 में प्रभावी बनाया गया था। इस कानून के अनुसार दुल्हन की उम्र 18 वर्ष से कम हो या लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम हो। कम उम्र की लड़कियों की शादी करने की कोशिश करने वाले माता-पिता इस कानून के तहत कार्रवाई के अधीन हैं।


9. दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम 1961–


इस अधिनियम के अनुसार विवाह के समय वर या वधू और उनके परिवार को दहेज लेना या देना दंडनीय है। दूल्हे और उसके परिवार द्वारा अक्सर दुल्हन और उसके परिवार से दहेज मांगा जाता है। इस प्रणाली ने मजबूत जड़ें जमा ली हैं क्योंकि शादी के बाद महिलाएं अपने जीवनसाथी और ससुराल वालों के साथ चली जाती हैं। जब शादी के बाद भी दहेज की मांग लड़की के परिवारों द्वारा पूरी नहीं की जाती है, तो कई महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है, पीटा जाता है और यहां तक कि जला दिया जाता है।


10. फ्री लीगल एड (मुफ़्त क़ानूनी सहायता) -


भारत में महिलाओं को फ्री लीगल एड का अधिकार है और इसके लिए किसी महिला की आमदनी कितनी है या फिर मामला कितना बड़ा या छोटा है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। महिलाएं किसी भी तरह के मामले के लिए फ्री लीगल एड की मांग कर सकती हैं। हमारे देश में महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मानव तस्करी से पीड़ित व्यक्ति, स्वतंत्रता सेनानी, प्राकृतिक आपदा से पीड़ित व्यक्ति और 18 साल से कम उम्र के बच्चों को भी फ्री लीगल एड का अधिकार है। सामान्य श्रेणी के लोगों के लिए इन्कम का दायरा रखा गया है। हाईकोर्ट के मामलों में जहां उनकी सालाना इन्कम 30 हज़ार रुपए से कम होनी चाहिए, वहीं सुप्रीम कोर्ट के मामलों में वह 50 हज़ार से कम हो।


•••••••••••••••••••


महिला हित में समय समय पर हुए कुछ अन्य प्रावधान -


•  भारतीय सेना में समान अवसर:- 

सचिव, रक्षा मंत्रालय बनाम बबीता पुनिया[9] ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा, महिलाओं को भारतीय सेना में समान अवसर प्रधान करे और शॉर्ट सर्विस कमीशन में महिलाओं को स्थायी कमीशन दें और उन्हें युद्ध के अलावा अन्य सभी सेवाओं में कमांड पोस्टिंग दें। माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय में माही यादव बनाम भारत संघ[10] जनहित याचिका में अधिवक्ता माही यादव ने देश के सभी सैनिक स्कूलों एवं मिलिट्री स्कूलों में छात्राएं को उनके लिंग के कारण उक्त स्कूलों में प्रवेश वर्जित होने का मुद्दा न्यायालय के समक्ष उठाया। जिसके उपरांत माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसी विषय में केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि शिक्षा का अधिकार छात्राएं को मौलिक अधिकार हैं। इन्ही के फलस्वरूप आज सैनिक स्कूलों में लड़को के साथ लड़कियों को भी प्रवेश दिया जाने लगा हैं।


•  विवाहित बेटी का अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी का अधिकार:- 

ADVERTISEMENT ADVERTISEMENT माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार बनामN. Apporva Shree[11] में फैसला सुनाया कि एक विवाहित बेटी अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी की हकदार है। न्यायालय  ने कहा कि यह धारणा कि एक बेटी अब शादी के बाद अपने पिता के घर का हिस्सा नहीं है और अपने पति के घर का एक विशेष हिस्सा बन जाती है, पुरानी मानसिकता को दर्शाता है। माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने शेफाली सांखला बनाम राजस्थान राज्य[12] में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के मद्देनज़र विवाहिता बेटी को नियुक्ति प्रदान की हैं।


•  मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 -

मातृत्व लाभ अधिनियम (1961) में संशोधन पारित किया गया है। इस अधिनियम ने महिला कर्मचारियों के लिए (जिनके दो से कम जीवित बच्चे हो) उपलब्ध सवैतनिक मातृत्व अवकाश की अवधि को मौजूदा 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया है। इसके अंतर्गत महिलाओं को घर से काम करने की सुविधा भी उपलब्ध हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका (हमसानंदिनी नंदूरी बनाम भारत संघ) पर सुनवाई की, जिसमें कहा गया है कि एक महिला जो क़ानूनी रूप से तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है 12 सप्ताह की अवधि के लिए मातृत्व अवकाश के लिए पात्र होगी। महिलाओं के मातृत्व के समय के दौरान उनके रोजगार की रक्षा करता है और उन्हें मातृत्व लाभ और कुछ अन्य लाभों का अधिकार देता है। 


 •  लिंग चयन का निषेध अधिनियम (1994):-


 गर्भाधान से पहले या बाद में लिंग चयन को प्रतिबंधित करता है और लिंग निर्धारण के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों के दुरुपयोग को रोकता है जिससे कन्या भ्रूण हत्या होती है। 


•  सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021:- 

जो वाणिज्यिक सरोगेसी को प्रतिबंधित करता है लेकिन परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है। यह अधिनियम ‘प्रगतिशील’ है और इसका उद्देश्य सरोगेट मदर के शोषण को रोकना है। 


•  मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971:- 

भारत में महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971 कुछ शर्तों पर मेडिकल डॉक्टरों (विशिष्ट स्पेशलाइजेशन वाले) द्वारा अबॉर्शन कराने की अनुमति देता है। अबॉर्शन अधिकारों को तीन कैटेगरी में बांटा गया है। जहां प्रेग्नेंसी के 0 हफ्ते से 20 हफ्ते के बीच अबॉर्शन कराने के लिए कुछ कंडीशन दी गई हैं। अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है, या फिर कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड या डिवाइस फेल हो जाने के कारण न चहते हुए भी महिला प्रेग्नेंट हो गई है, तो वह अपना अबॉर्शन करा सकती है।


इसके साथ ही अगर सोनोग्राफी की रिपोर्ट में यह बात सामने आए कि भ्रूण में किसी तरह की शारीरिक या मानसिक विकलांगता हो सकती है, तो भी महिला को एबॉर्शन कराने का हक़ है।


अब तक हमारे देश में विवाहित महिलाओं को ही एबॉर्शन का हक़ था, पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ मामलों में अविवाहित लड़कियों को भी यह अधिकार मिल गया है।


•  नए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम 2021-

इस को व्यापक देखभाल के लिये सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु चिकित्सीय, उपचारात्मक, मानवीय या सामाजिक आधार पर सुरक्षित और वैध गर्भपात सेवाओं का विस्तार करने हेतु लाया गया है। एयर इंडिया बनाम नरगेश मीर्ज़ा[13] में, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के लिए काम करने वाली एयर होस्टेस ने रोजगार नियमों की संवैधानिकता को चुनौती दी है जो पहली गर्भावस्था पर रोजगार समाप्ति के लिए प्रदान करते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस नियामक आवश्यकता को मनमाना और अनुचित बताया, और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना । इसके बजाय, न्यायालय ने एक संशोधन का समर्थन किया कि वास्तव में उनकी तीसरी गर्भावस्था पर दो जीवित बच्चों के साथ एयरहोस्टेस की सेवानिवृत्ति की आवश्यकता होगी और कहा कि ऐसा संशोधन महिलाओं के स्वास्थ्य और राष्ट्रीय परिवार नियोजन योजना के हित में होगा।


•  महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए मुआवजा:- 

बलात्कार मानव जाति के खिलाफ सबसे जघन्य अपराधों में से एक है, क्योंकि किसी भी अन्य अपराध में अपने आप में सभी लागतें शामिल नहीं होती हैं जैसे लेनदेन लागत + सामाजिक लागत + मनोवैज्ञानिक लागत। बोधिसत्व गौतम बनाम सुभ्रा चक्रवर्ती में, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे दोहराया। “बलात्कार केवल एक महिला (पीड़ित) के व्यक्ति के खिलाफ अपराध नहीं है, यह पूरे समाज के खिलाफ अपराध है। यह एक महिला के पूरे मनोविज्ञान को नष्ट कर देता है और उसे गहरे भावनात्मक संकट में डाल देता है।  इसलिए, बलात्कार सबसे घृणित अपराध है। यह बुनियादी मानवाधिकारों के खिलाफ अपराध है और इसका उल्लंघन भी है है, अर्थात् जीवन का अधिकार, जो अनुच्छेद 21 में निहित है।” महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित कानून में अपर्याप्तता को दूर करने के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 अधिनियमित किया गया था, जिसके कारण निर्भया फंड (Nirbhya Fund) का निर्माण हुआ। इसके बाद बनी एक समिति ने महिला पीड़ितों/यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों की उत्तरजीवियों के लिए मुआवजा योजना – 2018 को अंतिम रूप दिया। 

योजना के अनुसार, सामूहिक बलात्कार की पीड़िता को न्यूनतम 5 लाख रुपये और अधिकतम 10 लाख रुपये तक का मुआवजा मिलेगा। इसी तरह, बलात्कार और अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न के मामले में पीड़िता को न्यूनतम 4 लाख रुपये और अधिकतम 7 लाख रुपये मिलेंगे। एसिड अटैक के पीड़ितों को चेहरे की विकृति के मामले में न्यूनतम 7 लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा, जबकि ऊपरी सीमा 8 लाख रुपये होगी। अदालत ने तब उक्त योजना को पूरे भारत में लागू होने के लिए स्वीकार कर लिया, जो कि देश का कानून है।


निष्कर्ष – भारत में महिलाएं अब हर एक क्षेत्र में , चाहे वो शिक्षा, रक्षा, खेल, राजनीति, मीडिया, कला एवं संस्कृति, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में भाग लेती हैं। भारतीय महिलाओं को पुरुष प्रधान समाज, वर्ग और धर्म के उत्पीड़न के तहत विकसित होने के लिए बेहद कठिन समय मिला है, लेकिन अब चुप्पी तोड़ने का समय है। हमारी मानसिकता और पितृसत्तात्मक विचारों को बदलने की जरूरत है, जिन्होंने सदियों से भारतीय मानसिकता को अपनी चपेट में लिया है ताकि महिलाओं के लिए एक सुरक्षित समाज मिल सके। उन्हें भी अपनी प्रतिभा और विकास का समुचित अवसर मिल सके।


(Copied गूगल पर तमाम स्रोतों से)

thankings-roopam gangwar

#roopnotes 

#repost #women #womenrights