अब हाईटेक का जमाना है। घर बैठे वेबसाइट पर दुनियाभर की खबरें देखी व पढ़ी जा सकती है इसके बाद भी अखबारों में प्रतिस्पर्धा कम नहीं हुई है दरअसल इस देश में अभी भी वेबसाईट पर खबरें पढ़ने वाले गिनती के हैं ऐसे में गला काट स्पर्धा ने अखबार को भी अपने चंगुल में ले रखा है।
छत्तीसगढ़ में अखबारों की प्रतिद्वंद्विता सड़कों तक भी पहुंची थी राय बनने के पहले एक-दूसरे के बंडल चुराने से लेकर जलाने तक की घटना हो चुकी है और जब भी कोई एक अखबार अपना प्रसार संख्या बढ़ाने तिकड़म करता है बाकी अखबारों में भी धुकधुकी शुरु हो जाती है। ऐसा ही कुछ इन दिनों फिर शुरु हो गया है कोई दो-तीन महिने के अखबार के साथ कुछ फ्री दे रहा है तो कोई स्क्रेच कूपन दे रहा है। उपहार योजना के नाम पर लाटरी खिलाई जा रही है। कुल मिलाकर उसकी स्थिति लेमन चूस जैसे हो गई है।
हालांकि छत्तीसगढ क़े पाठक काफी सजग है और वे अखबारों के ऐसे प्रलोभन में कम ही आते हैं लेकिन जो आ सकते हैं उन्हें जिस तरह से प्रलोभन दिया जा रहा है वह पत्रकारिता के लिए चुनौती भी है। सिर्फ प्रलोभन देकर विज्ञापन के रुप में पैसा कमाने की कोशिश से पत्रकारिता जहां कलंकित हो रही है वही खबरों के साथ समझौतों ने इसकी विश्वसनियता पर भी सवाल खड़े किए हैं। हालांकि यह शुरुआत राय बनने के पहले से ही हो गई है लेकिन इससे कम पूंजी के साथ पत्रकारिता करने वालों के रास्ते कठिन हो जाएंगे।
और अंत में...
लुक ने नए तेवर दिखाना क्या शुरु किया जिद् करों ने घर-घर स्क्रेच कार्ड भेजना शुरु कर दिया। देखा-देखी अन्य अखबारों में भी नई तरकीबें बनाना शुरु किया। ऐसे ही एक मामले में एक अखबार में बैठक हुई बैठक में सिटी रिपोर्टर भी बुलाए गए एक रिपोर्टर ने सरकार के खिलाफ खोजी खबर की बात की ही थी कि रिपोर्टरों को बैठक से भगा दिया गया।
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