मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

महंगाई पर राजनीती

छत्तीसगढ ही नहीं पूरे देशभर के भाजपाईयों ने महंगाई के खिलाफ दिल्ली में जुट गए। उनकी इस कार्रवाई से महंगाई पर कितना लगाम लग पाया यह तो वही जाने लेकिन नए नवेले अध्यक्ष नीतिन गडकरी की वजह से रैली में जरूर व्यवधान आ गया। उद्योगपति से भाजपा के प्रमुख पद पर पहुंचे नीतिन गडकरी के लिए गर्मी की चिलचिलाती धूप में कुछ करने का पहला मौका था लेकिन उनकी किस्मत दगा दे गई। वैसे भी महंगाई को लेकर कांग्रेस और भाजपा केवल राजनीति कर रही है। उन्हें इस बात की कतई चिंता नहीं है कि महंगाई पर लगाम कसे।
यदि छत्तीसगढ़ की रमन सरकार महंगाई पर इतनी चिंतित है तो वह छत्तीसगढ़ के लोगों का कुछ तो भला कर ही सकती है। महंगाई बढ़ने की मूल वजह को तलाशने की बजाय इस पर डॉ. रमन सिंह सरकार की राजनीति अंधेरगर्दी से कम नहीं है। क्या भाजपा सरकार यह बात भूल गई है कि यहां के अकूत संपदा के चलते इस देश का पहला टैक्स फ्री राय बनाने की चर्चा हो चुकी है। लेकिन शासन में आते ही अंधाधुंध भ्रष्टाचार ने इस राय को भी देश के दूसरे रायों की तरह ही संक्रमण दौर पर खड़ा कर दिया है।
वास्तव में महंगाई बढ़ने का आर्थिक सिध्दांत सच है कि मांग के अनुरूप पूर्ति नहीं होने की वजह से महंगाई बढ़ रही है लेकिन क्या सरकारों ने कभी चिंता की कि मांग इतनी क्यों बढ़ने लगी। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में तो कम से कम कहा जा सकता है कि काले धन ने मांग और पूर्ति के सिध्दांत को डगमगा दिया है। छत्तीसगढ सरकार चाहे तो कुछ नियम कानून बनाकर राय में बढती महंगाई को कंट्रोल कर सकती है।
1. कृषि जमीनों के दूसरे किसी भी उपयोग पर प्रतिबंध लगा दे।
2. भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों और अधिकारियों की संपत्ति राजसात कर ले।
3. नई राजधानी के नाम पर फूंके जा रहे करोड़ों-अरबों रुपए को आम लोगों के फायदे के लिए लगाये।
4. सरकारी भवनों व बंगलाें, आवासों में हो रहे बिजली के खर्चों पर कटौती करें।
5. अधिकारियों व मंत्रियों के फिजूलखर्ची पर रोक लगाये।
6. पहले की तरह राशन दुकानों से सामग्री बेचे।
7. कालाबाजारी करने वालों को कड़ी सजा दिलवाये उनकी संपत्ति राजसात करें।
इसके अलावा भी कई उपाय है जो सरकारी स्तर पर किए जा सकते हैं।

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