नए ठेकेदारों को हटाने शर्ते, सालों से घटिया सामग्री सप्लाई
सचिव से लेकर मंत्री तक कमीशनखोरी की चर्चा
वैसे तो छत्तीसगढ सरकार के मंत्रियों व सचिवों पर भ्रष्टाचार के आरोप नए नहीं है लेकिन मत्स्यपालन विभाग में गरीबों को नाव व जाल देने के नाम पर जिस तरह से विभाग के अधिकारियों की मदद से ठेकेदार रिंग बनाकर घटिया सामग्री सप्लाई कर रहे हैं वह अंयंत्र देखने को नहीं मिलेगा। ताजा मामला मुरैना से आए ठेकेदार को हटाने के कुचक्र का है और कहा जाता है कि करोड़ों रुपए के इस टेंडर को हासिल करने मंत्री से लेकर सचिव तक कमीशनखोरी हुई है।
जानकारी के अनुसार सरकार ने गरीब मछुआरों को जाल व नाव देने बड़ी राशि अनुदान में देती है और जब से यह योजना शुरु हुई है तब से तीन ठेकेदारों ने रिंग बनाकर काम लेना शुरु किया है। सूत्रों का दावा है कि इस काम में करोड़ों रुपए की हेराफेरी की जाती है और यह सब संचालक के मिलीभगत से होता है। बताया जाता है कि इस बार भी गरीबों को जाल बांटने के लिए शासन ने लंबी चौड़ी अनुदान राशि स्वीकृत की है। इसी के तहत सभी जिलों में मछुआरों को जाल वितरित करना है और इसके लिए मत्स्य पालन विभाग ने पिछले दिनों निविदा का प्रकाशन किया।
बताया जाता है कि सालों से अपना मोनोपल्ली चलाने वाले भी निविदा के लिए पहुंचे लेकिन अचानक मुरैना की एक पार्टी के आगमन ने उनके होश तो उड़ाये ही वे निविदा प्रक्रिया में भाग नहीं लिए। हालांकि चर्चा इस बात की भी है कि निविदा प्रक्रिया से हटने मुरैना की पार्टी 5 लाख का ऑफर भी दिया गया। इसके बाद भी जब मुरैना वाले ने निविदा भरा तो ये लोग बगैर निविदा डाले लौट आए। दरअसल मनमाने कमीशनखोरी के चक्कर में बाजार दर से कई गुना यादा में जाल या नाव सप्लाई की जाती है ऐसे में किसी अनजान पार्टी की मौजूदगी से काम नहीं मिलने का स्पष्ट संकेत था।
बताया जाता है कि नियमानुसार निविदा प्रक्रिया में एक से यादा फर्म होनी चाहिए इसलिए मुरैना के फर्म के अलावा किसी ने जब हिस्सा नहीं लिया तो निविदा निरस्त हो गई। सूत्रों के मुताबिक पुन: निविदा निकाली गई लेकिन षड़यंत्रपूर्वक इसमें दो साल शासकीय सप्लाई सहित कुछ ऐसी शर्ते जोड़ दी गई जिससे मुरैना का फर्म हिस्सा न ले सके। इसकी जानकारी होने पर मुरैना के फर्म ने सचिव डी.एस. मिश्रा से शिकायत की तब दो साल की जगह एक साल शासकीय सप्लाई जोड़ दिया गया।
बताया जाता है कि पिछले सालों में नाव व जाल की सप्लाई में घटिया सामग्री का उपयोग होने से हितग्राही परेशान है और शिकायत करने वालों से कह दिया गया है कि मुफ्त में मिल रही सामग्री की शिकायत की गई तो अगली दफे यह भी नहीं मिलेगा इसलिए शिकायत करने से लोग डरते हैं। वैसे अब तक सलूजा मार्केटिंग रायपुर, फिशरमेन इटारसी और कुमार बनारस की फर्मे ही हिस्सा लेती रही है। इधर यह भी चर्चा है कि मार्केट दर से अधिक कीमत पर माल सप्लाई के एवज में सचिव से लेकर मंडी स्तर तक कमीशन पहुंचाई जाती है। इस मामले में विभागीय मंत्री चंद्रशेखर साहू से संपर्क की कोशिश की गई लेकिन उपलब्ध नहीं थे।
जय हो छत्तीसगढ़ महतारी की । जय हो कर्मा माता की ।
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