मंगलवार, 2 नवंबर 2010

खनिज के ‘खा’

 लगता है छत्तीसगढ़ सरकार ने खनिज मामले में तय कर लिया है कि खदानों को लीज में देने की बजाय अवैध उत्खनन से पैसा कमाया जाए। तभी तो यहां लीज देने की प्रक्रिया इतना जटिल कर दिया है कि सालों से लीज देने का आवेदन लंबित है। यही नहीं आए दिन खनिज को लेकर नई-नई नीतियां बनाई जाती है ताकि खनिज की चोरी चलता रहे अधिकारियों की जेब गरम होते रहे। चूंकि यह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पास है इसलिए भी अधिकारियों की दादागिरी चरम पर है।
छत्तीसगढ़ में जिस तरह से लूट मची है उसमें खनिज विभाग के अधिकारी भी पीछे नहीं है। खनिज चोरी की बढ़ती घटना से चिंतित नजर आने वाले अधिकारियों की एफआईआर दर्ज कराने की घोषणा भी टांय-टांय फिस्स हो चुका है। एफआईआर कराने की बात तो दूर नई राजधानी जैसे प्रतिबंधित क्षेत्र से भी खनिज चोरी को वह नहीं रोक पाई है।
ज्ञात हो कि नई राजधानी क्षेत्र व उससे लगे गांवों में मुरुम व गिट्टी उत्खनन पर प्रतिबंध है लेकिन आज भी सैकड़ों ट्रके मुरुम व गिट्टी शहर में बेधडक़ परिवहन किया जा रहा है। खनिज नाका तो अवैध उत्खनन को रोकने की बजाय वसूली व कमीशनखोरी का अड्डा बन चुका है। यही नहीं दुर्ग जिले के नंदनी अहिवारा क्षेत्र से भी प्रतिदिन सैकड़ों ट्रकें मुरुम व गिट्टी लेकर रायपुर आ रही है। चूंकि इन दोनों ही क्षेत्रों से आने वाले मुरुम-गिट्टी की कीमत अत्यंत कम है इसलिए भी सडक़ निर्माण से लेकर भवन निर्माण में इसका बेतहाशा उपयोग हो रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि कुम्हारी बीटीओ नाके में 100 रुपए टैक्स वसूलने के बाद भी रायपुर में सस्ते में कैसे आ रहा है यह जांच का विषय है।
इधर उड़ीसा व महासमुंद में खदान चलाने वाले एक व्यापारी का कहना है कि छत्तीसगढ़ में वही काम कर सकता है जो अवैध काम करेगा हमारे जैसे नियम में काम करने वालों के लिए जगह नहीं है। उन्होंने खदान लीज पर देने की प्रक्रिया को भी घुमावदार बताते हुए यहां तक कहा कि वे यहां की खदान को सिर्फ इसलिए चालू नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनसे बेवजह पैसे मांगे जाते हैं। अवैध उत्खनन करने वालों से सांठगांठ की वजह से ही लीज देने की प्रक्रिया को जटिल किया गया है और लीज लेने का आवेदन देने वालों को आफिस का चक्कर लगवाया जा रहा है।
चर्चा तो यह है कि सैकड़ों एकड़ जमीन लीज पर लेने वालों के लिए पूरा अमला लग जाता है और निजी वन जमीनों तक को लीज पर दे दिया जाता है। इसका उदाहरण पलारी के पास स्थित गांव रिंगनी तथा चुआं, मालूकोना, देवरानी जेठानी नामक गांव तक को लीज पर दे दिया गया है और यह सब मंत्री से लेकर अधिकारियों तक से सांठगांठ कर की जाती है।

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