गुरुवार, 16 सितंबर 2010

नवभारत का दबाव या सूचना कानून की अनदेखी...

 छत्तीसगढ में किस तरह से सूचना के अधिकार कानून की धाियां उड़ाई जा रही है। बड़े लोगों के दबाव अफसरों पर किस कदर हावी है और नियम कानून की धाियां खुले आम उड़ाई जा रही है।
ताता मामला नवभारत के जमीन आबंटन से जुड़ा है। बताया जाता है कि नियमानुसार पट्टा मिलने के बाद ही निर्माण किया जा सकता है लेकिन नवभारत ने सिर्फ अग्रिम आधिपत्य पर न केवल भवन बना लिया बल्कि पट्टे की शर्तों का उल्लंघन करते हुए भवन के एक हिस्से को किराए से भी दे दिया। जानकारी के अनुसार 85-86 में नवभारत को पट्टा देने का निर्णय लिया गया था। लेकिन उसने सालों बितने के बाद भी करोड़ों रुपए नहीं पटाए। निगम से लेकर नजूल के अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और नवभारत ने अपने पहुंच के चलते भवन तक बना दिया।
दुखद स्थिति तो यह है कि इस दौरान नजूल से लेकर निगम ने सैकड़ों दफे अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान चलाया लेकिन नवभारत पर किसी की नजर नहीं गई। जबकि आम लोगों तक में नवभारत के इस करतूत की चर्चा होती रही। नवभारत का दबाव किस कदर हावी है यह सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब से जाना जा सकता है। इस संबंध में जब हमें पता चला कि नवभारत के मामले में प्रशासनिक रुप से जबरदस्त घपलेबाजी चल रही है और अभी भी नवभारत को पट्टा नहीं मिला है तब इसके लिए सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाया गया।
सूत्रों के मुताबिक इस आवेदन से नजूल से लेकर शासन स्तर पर हड़कम्प मच गया और इस कानून के तहत सीधी-सीधी जानकारी देने की बजाय सूचना अधिकारी ने एक लाईन में यह जवाब दे दिया कि यह मामला सचिव राजस्व एवं आपदा प्रबंधक विभाग के पास मंत्रालय रायपुर में है। बताया जाता है कि सूचना के अधिकार कानून के तहत आम लोगों को जानकारी नहीं देने या फिर घुमाफिराकर जवाब देने का यह इकलौता मामला नहीं है अब तक दर्जनों के खिलाफ सिर्फ जुमाने की ही कार्रवाई की गई है। जबकि पूरे प्रदेश में इस कानून की जमकर धाियां उड़ाई जा रही है। बताया जाता है कि जब भी किसी रसूखवाले के संबंध में जानकारी मांगी जाती है लीपापोती का खेल खेला जाता है। हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक नवभारत के मामले में भी इसी तरह का खेल खेला गया है और अवैधानिक कृत्य के खिलाफ कार्रवाई की बजाय सरकार के स्तर पर लीपापोती की जा रही है।

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