नक्सलियों के निशाने पर अभी और भी वीआईपी है? यह खबर न केवल सरकार के लिए चेतावनी है बल्कि नक्सलियों द्वारा किये जा रहे दबाव की राजनीति का एक अहम हिस्सा हैं। आजादी के सात दशक में विकास का ढिंढोरा पिटने की कोशिश में लगी सरकारे भले ही यह दावा करें कि उसने विकास में हर संभव काम किया है पूरी तरह गलत हैं। सात दशक में हमने गांव में रहने वालों को लोकतंत्र की परिभाषा नहीं समझा पाये,बिजली तो छोड़ दिजीए पानी,शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधा से वंचित रखा और जिसने भी इस मांग को लेकर आंदोलन किया उसे पीटकर जेल में बंद कर दिया और सत्ता के लिए दारू और पैसे बांटते रहे। क्या यही विकास हैं।
छत्तीसगढ़ की उपेक्षा की वजह से ही राज्य की मांग उठी थी, लेकिन राज्य बनने के बाद भी उपेक्षा जारी हैं। भ्रष्टाचार में गले तक फंसी सरकार के पास संतुलित विकास की कोई योजना ही नहीं हैं। सत्ता में बने रहने की राजनीति के तहत मुफ्त में चावल से लेकर अन्य चीजे बांटी गई लेकिन लोगों की मुल जरूरतों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। और अब जब नक्सली एक कलेक्टर को उठा ले गये तो सरकार का पूरा अमला विकास विरोधी का तमगा देने पर आमदा हैं।
सात साल के शासन में छत्तीसगढ़ का सात हाल हो चुका है। उद्योगों को खेती की जमीन दी जा रही है और अपनों को सरकारी जमीन व खदानों का बंदरबांर किया जा रहा हैं। कोयले की दलाली में फंसी सरकार की करतूत की वजह से ही कलेक्टर के अपहरण मामले में लोगों का गुस्सा नक्सलियों से ज्यादा सरकार के प्रति हैं।
नक्सलियों की करतूत नि:संदेह ब्लेकमेलर की है और इसकी मत्र्सना जितनी भी की जाए कम है लेकिन सरकार क्या कर रही हैं। क्या उसे नहीं मालुम है कि ग्राम सुराज केवल और केवल एक नौटंकी है। जिसमें और अच्छा करने और सरकार के घर तक पहुंचने का दावा तो किया जाता है लेकिन वास्तविकता इनसे कोषों दूर हैं। सरकार का इसी सोच का फायदा उठाकर नक्सली दूरस्त अंचलों में आम लोगों के नजदीक जा पहुंचे है लेकिन सरकार को सिर्फ सत्ता से मतलब हैं। क्योंकि विकास से लोग जागरूक होंगे और जागरूक लोग कभी भी सरकार की करतूतों पर सड़क पर आ सकते हैं। यह कोई भी सरकार नहीं चाहती।
यही वजह है कि सरकारें किसी की भी रही सबने अपने जेब गरम कर उतना ही काम किया जितने में उनका सत्ता कायम रहे।
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