उत्तर प्रदेश में कन्नौज की सीट पर डिम्पल यादव की निर्विरोध जीत को लोकतंत्र का काला दिन कहा जाये तो गलत नहीं होगा। डिम्पल यादव के निर्विरोध के पीछे का सच पूरा देश देखता रहा। तमाम राजनैतिक दलों को जिस तरह से सपा सरकार ने घुटने टेकने मजबूर किया यह डिंपल के लिए भले ही ऐतिहासिक क्षण हो पर इसे देश के लिए गंभीर खतरा माना जाना चाहिए। आज डिंपल के लिए राजनैतिक दलों ने घुटने टेके कल किसी और के दबंगई के आगे घुटने टेकने पड़ेंगे। वैसे भी लोकतंत्र के मंदिर में अपनी ताकत के बल पर पहुंचने वालों की कमी नहीं है लेकिन डिंपल का पहुंचना कुछ अलग ही मायने रखता है।
यूपी में सत्ता संभालने जिस तरह की खबरें आ रही है वह कतई ठीक नहीं है। सपा की दादागिरी चरम पर है और इस दादागिरी के बीच बाकी सबका मैदान छोडऩे का अर्थ क्या निकाला जाना चाहिए।
हम यहां निर्विरोध निर्वाचन के अलावा डिम्पल के लोकसभा तक पहुंचने के गलत तरीके के अलावा मुलायम सिंह के उस बयान पर भी चर्चा करना चाहेंगे कि लोकसभा में महिला बिल पेश करते समय मुलायम सिंह ने क्या कुछ नहीं कहा था। महिला बिल का पुरजारे विरोध करते समय मुलायम सिंह ने औरतो की नुमाईस और सीटी बजाने तक की बात कहीं थी लेकिन जब कन्नौज उपचुनाव में उन्होंने अपनी बहु डिम्पल यादव को टिकिट दी तब यह सवाल भी उठना लाजिमी है कि क्या महिला आरक्षण के मुद्दे को लेकर दो तरह की सोच रखने वाले मुलायम सिंह अब किस मुंह से कहेंगे कि लोकसभा में सिटिंया बजेंगी?
राजनीति के पल-पल बदलते तेवर के बीच जिस तरह स बसपा कांग्रेस और भाजपा ने कन्नौज में किया है उसका खामियाजा उसे भुगतना होगा?
yes, it is a black day and degerous for democracy
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