सोमवार, 21 जनवरी 2013

शराब से लेकर सट्टा का जोर...


नगर निगम मुख्यालय में न तो शराबखोरी नई बात है और न ही जुआं सट्टा । हर अधिकारी को मालूम है कि बेसमेंट से लेकर छत तक शराबियों के अपने-अपने अड्डे हैं । ऐसे में कमिश्रर को इसकी जानकारी नहीं है या महापौर को इसकी खबर नहीं होगी कहना कठिन है । यह तो सीए बंगाली के लोगो ने महिला कर्मचारी से बदसलूकी नहीं की होती तो कोई इसे संज्ञान में ही नहीं लेता । आखिर आडिर के काम में शराब और बिरयानी परोसे जाने का कतलब ही साफ है कि यहां के कई अधिकारी अपने काले-पीले कारनामें को सफेद करने में लगे है । हर विभाग में यही हो रहा है । पिछले महापौर के कार्यकल के दौरान भी हंगामा हुआ था लेकिन मामला दबा दिया गया ।
नगर निगम भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है जहां कई पार्षदों से लेकर अधिकारियों की शामें शराबखोरी में रंगीन होती है । और यह सब इतने खुलेआम चलता है कि इसकी गूंज सड़कों तक सुनाई देती है ।
निगम मुख्यालय हो या जोन यहां तक कि निगम के स्कूलों का भी यही हाल है । छूट्टी होने के पहले ही इंतजाम अली पहुंच जाते है और फिर इससे महफूज जगह भी क्या होगी । दावा तो इस बात का भी हो रहा हे कि यहां के कई कर्मचारी खुले आम सट्टा खेलते हैं और यदि परीक्षा दे रहे ब"ाों की तरह यहां के कर्मचारियों की जेबों की जांच हुई तो बोरी भर सट्टा पट्टी जब्त हो सकता है । नगर निगम के कर्मचारियों की ताकत का अंदाजा यहां के अधिकारियों को भी हे इसलिए यहां अकास्मिक निरीक्षण जैसी बात ही नहीं होती । जनप्रतिनिधि भी इन कर्मचारियों के साथ खड़े होते हैं ऐसे में यदि दिन में भी यहां शराब पीकर काम करते कोई कर्मचारी दिख जाये तब भी कार्रवाई नहीं होती ।
महापौर किरणमयी नायक ने तो शराब-बिरयानी कांड के बाद सारा ठीकरा कमिश्रर के सिर फोड़ दिया । उन्होंने कह दिया कि यदि कमिश्रर लगातार मानिटरिंग करते रहते तो यह घटना नहीं होती केवल आदेश निकालने से कुछ नहीं होता । लेकिन सवाल यह भी है कि नौकरशाह पर नकेल कसने की जिम्मेदारी शहर की जनता के महापौर को दिया है वे क्यों सश्प्राईज चैकिंग क्यों नहीं करती ।
आम आदमी निगम से कितना त्रस्त है यह किसी से छिपा नहीं है । सफाई कर्मी तक शराब के नशे में सुबह-सुबह दिख जाते हैं । मुख्यालय या जोन पहुंचने वालों को खासकर महिलाओं को कितनी दिक्कत होती है यह भी किसी से नहीं छिपा नहीं है ।
स्वे'छा चारिता की हदें पार हो चुकी है और पार्षदों का काम ही दूसरा हो चुका है । कई पार्षद तो अपने वार्डो को सुधारने की बजाय कमाई में Óयादा ध्यान है । ठेकेदारों से काम कराने की बजाय कमिशन का खेल चल रहा है । और जब जनप्रतिनिधि ही कमिशन खोरी में लग जाये तो कर्मचारियों की स्वे'छाचारिता तो बढ़ेगी ही ।
मूंदी
मुंदी आंख से
शहर के चचिते अवैध निर्माण से चंदा वसूलने गये एक पार्षद को जैसे ही पता चला कि उनके नाम का पैसा कोई ले गया है तो वह पहले तो आग बगुला हो गया लेकिन पैसा ले जाये वाले का नाम सुनते ही गिड़गिड़ाने लगा कि आप कुछ न कहना मैं ही बात कर लुंगा ।

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