सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

संगठन पर सत्ता कट न जाए पत्ता


मेरी मर्जी के आगे सब बेबस!
विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। पार्टी विद डिफरेंट का नारा लगाने वाली भाजपा के छत्तीसगढ़ इकाई में वहीं सब कुछ हो रहा है जिसके लिए वे नेहरू गांधी परिवार और कांग्रेस को कोसते रहे हैं। भ्रष्ट्राचार से लेकर टिकिट वितरण में मनमानी का यह आलम है कि पारी के कई नेता किनारे कर दिए गए हैं। तो कार्यकर्ता घर बैठने लगे हैं। कोयले की कालिख पूते चेहरे से लेकर नार्को सीडी का दाग और शराब ठेकेदार के द्वारा चुनाव प्रचार सब कुछ साफ दिख रहा है लेकिन जब मेरी मर्जी चले तो किसी की नहीं चलती।
छत्तीसगढ़ में हैट्रिक की तैयारी में जुटी भाजपा में जिस पैमाने पर बगावत के झंडे बुलंद हुए है वैसा कमी नहीं हुआ है। करूणा शुक्ला को मनाने की बजाय मैं नहीं मनाउंगा जैसे शब्द भी किसी ने नहीं सुना होगा और न ही भाजपा के बड़े नेता इस पैमाने पर कभी एक साथ नाराज ही हुए हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा में मचे इस महाभारत में धृतराष्ट्र कौन है, भीष्म कौन है और दुर्योधन कौन है! यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने यह मौका कैसे आने दिया और यह सब के पीछे वजह की तलाश क्यों नहीं की गई।
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ भाजपा में कुर्सी की लड़ाई तो पहले ही कार्यकाल से ही शुरु हो गई थी। ननकीराम कवंर, रमेश बैस, रामविचार नेताम और बृजमोहन अग्रेवाल की निगाह मुख्यमंत्री की कुर्सी में रही है लेकिन कहा जाता है कि रमन सिंह के ताकतवर होने की वजह से असंतुष्टों को तवज्जों नहीं मिली।
दूसरी पारी में रमन ङ्क्षसह इतने ताकतवर हो गए और यही से भाजपा की अंदरूनी राजनीति में उबाल आना शुरू हो गया है। असंतुष्टों की फेहरिश्त में नंदकुमार साय, शिवप्रताप ङ्क्षसह से लेकर कई नाम जुडऩे लगे। लेकिन रमन ङ्क्षसह के ताकत की वजह से गलत कामों का भी विरोध होना बंद हो गया है।
बताया जाता है कि भटगांव कोल ब्लाक आबंटन की कालिख से रमेश बैस, करूणा शुक्ला ने जरूर अवाज उठाई लेकिन उन्हें भी खामोश कर दिया गया।
इसके बाद शराब ठेकेदार बल्देव सिंह भाटिया और पार्टी को बदनाम करने वाले प्रदीप गांधी को लेकर भी सवाल उठाये जाने गले। यहां तक कि असंतुष्टों ने एक दो नहीं बल्कि 5-6 पर्चे के माध्यम से डॉ रमन सिंह और उनके ...को लेकर हमला बोला लेकिन इन लोगों से चर्चा की जरुरत ही नहीं सझा गया।
ऐसे में झीरम घाटी कांड और नार्को सीडी के मामले को लेकर भी असंतुष्टों की आवाज दबा दी गई।
बताया जाता है कि टिकट वितरण को लेकर तो डा.रमन सिंह ने साफ कर दिया था कि हैट्रिक उन्हें लगानी है इसलिए केवल उन्हें ही टिकिट दी जायेगी जिन्हें वे जीतने योग्य प्रत्याशी समझते है। राजनाथ सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने और ठाकुर लांबी के प्रभाव के आगे यहां चल रहे गड़बड़साले को  कई लोगों ने नजर अंदाज दिया और इसका परिणाम यह है कि छत्तीसगढ़ भाजपा में बगावत शुरू हो चुका है। हालांकि करूणा शुल्का, गणेशराम भगत को छोड़ कोई बड़ा नाम सामने नहीं आया है लेकिन जिस तरह से बस्तर से लेकर अंबिकापुर और खुद मुख्यमंत्री के जिले राजनांदगांव में बगावत हुए है उसकी वजह मेरी मर्जी को ही बताया जा रहा है।
बहरहाल भाजपा में लड़ाई तेज हो गई है ऐसे में चुनाव परिणाम जो भी है हमारा असर तो साफ दिखेगा।
पूनम-अवधेश को फिर टिकिट...
पिछले चुनाव में पूनम चंद्राकर और अवधेश चंदेल की टिकट काट दी गई थी। कहा जाता है कि रमन को सत्ता से बेदखल करने के अभियान में शामिल पूनम की टिकिट रमन सिंह ने ही कटवाई थी लेकिन इस बार हैट्रिक का सपना पूरा करने पूनम चंद्रकार को फिर टिकट दी गई।
पप्पू भाटिया और प्रदीप गांधी परिवार...
डॉ. रमन सिंह की प्रदेश के सबसे बड़े शराब ठेकेदार पप्पू उर्फ बलदेव सिंह भाटिया और संसद में घूस कांड की वजह से सदस्यता खोने वाले प्रदीप गांधी के नजदीकी को लेकर भाजपा नेताओं में जबरदस्त आक्रोश है। भाजपाई दबे जुबान में कहने लगे हैं कि इन दोनों की वजह  से भाजपा की छवि पर असर पड़ रहा है। राजनांदगांव जिले में तो इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
हारने वालों को टिकिट
पिछला चुनाव हारने वाले कई नेताओं को सिर्फ इसलिए टिकिट दी गई क्योंकि वे मुखिया के करीब है, जबकि अजय चंद्राकर से लेकर कई ऐसा नेता है जिसकी बदनामी की वजह से कार्यकर्ताओं मेें आक्रोश है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें