मंगलवार, 24 मार्च 2020

जिनसे लोकतंत्र को खतरा बयाया उन्हीं से जा मिले गोगोई


दो हजार अठ्ठारह की जनवरी में जब जस्टिज रंजन गोगोई ने प्रेस कांफ्रेस लेकर जिस सत्ता को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया था और आज जबप वे सेवानिवृत्ति के बाद उन्हीं सत्ता के साथ खड़ा हो जाते हैं तो इस परिस्थिति को कोई कैसे देखेगा? सवाल यह नहीं है कि इस देश में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है सवाल यह भी नहीं है कि इससे पहले जब कांग्रेस की सत्ता भी यही करते रही है। सवाल है कि कांग्रेस ने यदि कोई गलत किया तो क्या वर्तमान सत्ता को भी गलत करना चाहिए।
देश के राष्ट्रपति ने जैसे ही पूर्व जस्टिज रंजन गोगोई का नाम राज्यसभा के लिए प्रेषित किया वैसे ही पूरे देश में यह बहस छिड़ गई कि क्या यह सही फैसला है। बहस इस बास की भी होने लगी कि क्या जिसे लोकतंत्र के लिए उन्होंने खतरा बताने के लिए प्रेस कांफ्रेंस तक ले डाली थी वह सत्ता आज उन्हें अनुकूल कैसे हो गई। इस बहस में यह सवाल भी उठकर सामने आयें है कि तब उनके फैसले न्याय के अनुरूप थे या सत्ता के अनुरूप थे। राफेल से लेकर उनके कितने ही फैसले को लेकर सवाल गहराने लगे हैं तब संवैधानिक संस्थानों की साख कहां रह जायेगी।
रंजन गोगाई को लेकर उठ रहे इन सवालों का जवाब रंगनाथ मिश्रा से लेकर हिदायतुल्ला तक दिया जा रहा है लेकिन इस फैसले ने लोकतंत्र की चिंता तो बढ़ा रही है।

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