सोमवार, 16 मार्च 2020

देश का बैकिंग सेक्टर आईसी यू में !



पीएमसी और यश बैंक के हालात के लिए भले ही मोदी सरकार जिम्मेदारी से बच रही है लेकिन हकीकत यह है कि मोदी सरकार की नीतियों के चलते देशभर में बैकिंग सेक्टर आईसीयू में जाते दिख रही है। यहां तक की एसबीआई की हालत भी खराब होने लगी है उसके शेयर में 20 फीसदी तक गिरावट हुई है और इसकी वजह बड़े व खास औद्योगिक घरानों का आठ लाख हजार करोड़ रुपया सरकार द्वारा राईट अप यानी माफ करना है जबकि बैंकों में एनपीए दस हजार करोड़ के पास पहुंच गया है।
देश की डांवाडोल होती अर्थ व्यवस्था को लेकर भले ही सरकार चिंतित नहीं हो लेकिन हालत दिनों दिन खराब होने लगी है और यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में इसके गंभीर परिणाम आयेंगे। सूत्रों की माने तो पीएमसी और यश बैंक की बदतर हालत के लिए मोदी सरकार जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। सार्वजनिक क्षेत्रों की संस्थानों को एक के बाद एक बेचना और आरबीआई के रिजर्व फंड से लाखों करोड़ों रुपये निकालने का अर्थ है कि सरकार के पास फंड की कमी होते जा रही है और सरकार की नीतियों के चलते अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है।
2014 में मनमोहन सिंह की सरकार की जब विदाई हुई तब बैंकों में एनपीए की स्थिति लगभग ढाई लाख करोड़ रुपए थी जो बढ़कर अब लगभग दस लाख करोड़ रुपए हो गई है। सत्ता परिवर्तन के दौरान मनमोहन सिंह के कार्यकाल में बैकों में एनपीए को लेकर आम सभाओं में चिंता जताने वालों ने  सत्ता हासिल करते ही किस तरह से काम किया यह आसानी से समझा जा सकता है। सरकार ने बैंकों के एनपीए घटाने में कोई रूचि नहीं दिखाई।
एनपीए का मतलब साफ है कि बैकों और सरकारों ने अपने कर्जदारों से वसूली की बजाय उसे बट्टा खाते में डाल दिया यानी बैंकों के इतने रुपये डूब गए जिसकी वसूली नहीं की जानी है और ये रकम स्वाभाविक तौर पर जनता के पैसे है। जब एनपीए की यह स्थिति है तो फिर बैंकों की हालत खराब होना तय है।
यस बैंक के डूबने को लेकर आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने जो आंकड़े दिये है वह कम चौकाने वाले नहीं है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि बैकों से कर्ज उन्हीं उद्योगपतियों को दिया जाता है जो राजनैतिक दलों को चंदा देते है। चूंकि बैक जो पैसा लोन देती है वह जनता का पैसा होता है ऐसे में कर्ज लेने वाली कंपनी डूब भी जाये तो इसका नुकसान न उद्योगपतियों को होना है और न ही सरकार में बैठे राजनैतिक दलों के नेताओं को ही इससे कोई मतलब है।
हैरानी की बात तो यह है कि यस बैंक 2017 से आरबीआई की निगरानी में होने के बावजूद उसने सरकार के कुछ खास माने जाने वाले उद्योगों को एक लाख करोड़ कर्जा दे दिया। जिसमें अंबानी ग्रुप, एस्सले ग्रुप, रेडियस डेवलेपर्स समेत कई कंपनी है और हैरानी की बात तो यह है कि इन कंपनियों ने भारतीय जनता पार्टी को करोड़ों रुपया चंदा दिया। एस्सले ग्रुप ने तो चालीस करोड़ दिया जबकि रेडियस ने पचास करोड़ चंदा दिया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या चंदा के एवज में सरकार ने इन कंपनियों को न केवल लोन दिलवाया बल्कि राइट अप में भी मदद की।

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