(एक)
सूरज साफ़ चमक रहा है
अपनी ही रौ में
रात का वक़्त नहीं है यह,
फिर भी कुछ लोग अपने
अंधत्व का दोष
थोप रहें हैं अंधेरे पर!
राजा अपने में मग्न है
किसान मज़दूर परेशान
जनमानस हलकान
ठिठुरता ठंड है
सत्ता का दभ है
मुखौटे पर मुखौटा है
असली , बदरंग है
(दो)
राजधानी की तो सीमा है
सत्ता की ताक़त असीमित है
किसानो की हड़ताल है
अंधेरे का आग़ाज़ है
चैनल है , अख़बार है
लेकिन गीत दरबार है
ट्रोल आर्मी का साथ है
सच यहाँ बेकार है
ये क्या हो रहा है
प्रहरी क्यों सो रहा है
(तीन)
विजय मद में मदमस्त
ये कौन चीख़ रहा है
मन की बात वह
किसे सुना रहा है
कभी वह हँसता है
बनावटी रोता है
हर जीत के बाद
अपनी ही पीठ ठोकता है
अचानक विजय रथ के
सामने कोई आता है
सारथी भी अब
ज़ोर से चिल्लाता है
दूर करो इसे
ये विरोधी है
सिर्फ़ धर्म का नहीं
देश का विरोधी है
पीछे पीछे भागते क़लमकार
अपनी जादुई भाषा बिखेरते है
सत्ता के पैसों से नोच देते हैं
विरोधियों के चेहरे
सच दूर चला जाता है
सत्ता इतराता है
जय जय की चीत्कार है
तुम्हारी ही जयकार है
(अंत)
सार्वजनिक उपक्रम बिके
रेल बिके , प्लेन बिके
विरोधियों का पाप भी बिक रहा
नोटबंदी से लॉकडाउन
कृषि बिल का ये क़ानून
हर फ़ैसले पर मौत
का साया है
कोई नहीं सुनता
कोई ध्यान नहीं देता
अजब ग़ज़ब फ़ैसले पर
कोई कान नहीं देता
झूठ की सत्ता है
सूरज की चमक पर
अंधत्व छाया है ।
( किसान आंदोलन को समर्पित )
गोदी मीडिया की ताकत पर बहुत खूब क्या करें कोई एक समय था जब कहते थे जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो और अब जब अखबार मुकाबिल है तो क्या निकाले
जवाब देंहटाएंकौशल भैया आप लिखते बहुत खूब हो बार-बार पढ़ने का मन होता है और पढ़ते भी हैं आप बस लिखते रहो
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