गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

जन की बात-6

 

विभिन्न प्रदेशों में रिकार्ड मौतें, देश में कोरोना ने नया रिकार्ड बनाया और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन में देश को लॉकडाउन को अंतिम विकल्प बताना क्या यह संकेत नहीं है कि बंगाल का चुनाव तो निपट जाने दो।

जब भी इस देश को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संबोधित किया है अजीब सा सन्नाटा पसरा है, इस बार तो मरघट सी शांति रही। ये ठीक है कि कुछ लोगों को केवल धार्मिक स्थल और श्मशान में ही शांति मिलती है लेकिन उनका क्या जो घर परिवार में, समाज में, सुख-शांति से रहते हैं। हमने इसी जगह पर कितनी बार लिखा है कि चुनाव में मुद्दा नागरिकों के मूल-भूत सुविधा होनी चाहिए, जाति-धर्म से उपर उठकर व्यवस्था पर वोट डालना होगा, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, बेरोजगारी, अपराध, भ्रष्टाचार पर वोट हो लेकिन न किसी सत्ता ने इसे स्वीकार किया न ही किसी धार्मिक और जाति से बंधे कुंठित लोगों ने ही माना।

तब, जब आज महामारी की इस भीषण त्रासदी से लोग प्रभावित हो रहे है तो भी सत्ता उन्हें धर्म और जाति में ही उलझाने में लगी है। हमने बार-बार कहा है कि सत्ता का एक ही चरित्र हो गया है वह अपनी रईसी और सत्ता बरकरार रखने के लिए फूट डालो राज करो की नीति का ही इस्तेमाल करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस संबोधन से रही-सही उम्मीद भी न टूटी हो तो शायद कोविड के ट्रिपल म्यूटेंट की प्रतीक्षा का इंतजार कर लें। क्योंकि सत्ता कभी भी अपना दोष नहीं देखती, वह निर्दोष होती है? दोष तो बेबस जनता की आखों में है जो खुद तो कुछ करती नहीं सारा दोष सत्ता पर मढ़ देती है?

सोशल मीडिया में मोदी विरोधी अपना भड़ास निकाल कर जनता को ही दोषी ठहरा रहे हैं कि उन्हें तो मंदिर चाहिए था, वे अस्पताल या स्कूल की मांग कब की थी, सत्ता से लेकर पूरी मीडिया भी इस दूसरी लहर के लिए जनता को ही दोषी ठहरा रही है। जिस देश में आज भी लोग स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में, दो जून की रोटी की आपाधापी और परिवार पालने के संकट से मर रहे हो वहां सत्ता और मीडिया का कहना कि जनता लापरवाह है वह घर में बैठे तो फिर उनकी बुद्धि पर सवाल उठना ही चाहिए?

क्या सत्ता की ताकत है कि वह अपने देश के लोगों को इस महामारी में भी बिठा के खिला सके, और मुफ्त में ईलाज कर सके? जब यह ताकत ही नहीं है, और वे खुद देश के संस्थानों को एक-एक कर बेच खा रहे है तो फिर जनता कैसे घर में बैठकर जी सकती है? यह सवाल क्या मीडिया को नहीं उठाना चाहिए? यह देश का दुर्भाग्य है कि हमने उन्हें सत्ता सौंपी है जो यह भी नहीं कह पा रहा है कि जनता घर में रहे, हम भोजन और चिकित्सा की व्यवस्था मुफ्त कर रहे है? कोरोना से बचने के लिए घर में ही रहने की वकालत करने वाली सत्ता में है इतनी हिम्मत कि अपने देशवासियों या प्रदेशवासियों को यह दे सके। नहीं है, उसे तो अपनी रईसी बरकरार रखी है, वे सुविधा को लेकर जो भी फैसले लेंगे अपने लिए लेंग।

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