शनिवार, 24 अप्रैल 2021

जन की बात-8

 

समस्या जड़ में हो, और हम ईलाज पत्तों में, तनों में ढूंढने की कोशिश करते रहेंगे तो क्या होगा? क्या इस देश में आपदा पहली बार आई है? इससे पहले भी आपदा आई है लेकिन इतना जन आक्रोश इससे पहले कभी नहीं था, न ही इतने बिलखते लोग न लाशों से पटती श्मशान, कब्रिस्तान?

जब पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी रही, लोगों की नौकरी जा रही थी, लोग मर रहे थे तब भी इस आपदा को इस देश ने मिल बांटकर अपने भीतर घुसने नहीं दिया था, दरअसल नेतृत्व की सूझबूझ हम सबकों एक किये हुए था और एकता की ताकत के आगे कोई विपदा टिक नहीं सकती। लेकिन पिछले वर्षों में नेतृत्व ने क्या किया, इस देश के भाईचारे की ताकत को सत्ता के लालच में सबसे पहले तोड़ा, वे भूल गये कि हम आजाद भी इसलिए हुए क्योंकि हिन्दू मुस्लिम सभी ने एक साथ आंदोलन किया था, अपना बलिदान दिया था, वरना हमारे राजाओं ने तो पहले ही मुगलों को सत्ता सौंप दी थी।

कोरोना के इस विपदा के लिए नमस्ते ट्रम्प, मध्यप्रदेश की सत्ता का मोह और अब कुंभ और बंगाल-असम चुनाव की सत्ता के मोह को दोहराने का कोई अर्थ नहीं है। बिलखते लोग, टपकती लाशों पर ठहाका की बात भी बेमानी होने लगा है क्योंकि जिन्हें धर्म देश समाज से प्यारा सत्ता हो गया उनसे कितनी भी तरह की उम्मीद ही बेमानी है। लोकतंत्र को वे समझते है या जीते हैं परिवार चलाने के चिंतन को समझते हैं या परिवार को जीते हैं। क्योकि लोकतंत्र की पहली इकाई परिवार है। प्रभु राम जब दंडकारण्य पहुंचे और कई ग्रामों को राक्षसों की गुलामी से मुक्त करने लगे तो उनके समक्ष भी यह सवाल आया कि आखिर कोई समाज सामूहिकता से कैसे रह सकता है। तब प्रभु राम ने लोगों को परिवार बुद्धि से चलने का मार्ग बताया था। उन्होंने कहा था कि एक परिवार में माता-पिता आजीविका उपार्जित करते हैं, या केवल पिता धनार्जन करता है, किन्तु सबसे अधिक व्यय बच्चों पर किया जाता है। यदि एक व्यक्ति रुगण हो जाये तो उसके हिस्से का कार्य भी कर देते हैं। पिता समर्थ है तो बाहर का काम कर अजीविका अर्जित करता है, घर में जो कठिन कार्य है, जिसे पत्नी व बच्चे नहीं कर सकते, वह भी करता है और यथा आवश्यकता अपने परिवार की रक्षा भी करता है। क्योंकि वह समर्थ है और अपने को परिवार का अंग मानता है। यदि किसी दुर्घटनावश पति बीमार या पंगु हो जाये तो पत्नी बाहर का काम कर धर्नाजन भी करती है, पति की सेवा भी करती है, बच्चों को भी देखती है और घर का काम, खाना-पकाना भी करती है। यही नहीं कमजोर बच्चों को विशेष संरक्षण व ज्यादा दुलार भी मिलता है। 

यही स्थिति देश और समाज की है। जिस तरह से परिवार में एक व्यक्ति का स्वार्थ परिवार को बिखेर देता है उसी तरह से देश व समाज में भी ऐसे स्वार्थी लोगों से मुसिबत आ जाती है। प्रभु राम ने इसका उपाय भी बताया है कि ऐसे लोगों का बहिष्कार किया जाना चाहिए क्योंकि फिर उसकी प्रवृत्ति राक्षसी होने लगी है। जरा देर रुक कर सोचिए? क्या यह सब नहीं हो रहा है? परिवार का दर्द, बच्चों का जो दर्द जानता है वही जनता का दर्द समझ सकता है।

इस देश में भी सभी जाति और धर्म के लोग बसे हुए है। प्रभु राम ने उनमें कोई विभेद नहीं किया, सबको सत्य और न्याय के एक तराजू में तौला लेकिन जो लोग राम के नाम पर सत्ता हासिल कर रहे है वे क्या कर रहे हैं। अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते तो है लेकिन धर्म के मार्ग पर क्या कोई चल पा रहा है। धर्म ग्रन्थ में  ऐसे कितने ही उदाहरण है जब विपदा का प्रतिकार में सबका एका रहा। आज भी इस देश में कोरोना से लडऩे की जो कहानी आ रही है, क्या वह उन कुंठित धर्मावंलियों को उनकी कुंठा से बाहर निकलने का मार्ग नहीं दिखाता। मंदिर-मस्जिद सहित कितने ही जगह कोरेन्टाईन सेंटर खुल गये, सिख समाज, जैन समाज लंगर चला रहा, मुस्लिम युवक जान बचाने अपनी जान दांव पर लगाा रहे, एक मुस्लिम युवक ने तो अपनी बाईस लाख की कार तक बेच दी। सब तरफ सब मिलजुलकर कर कार्य कर रहे हैं। लेकिन सत्ता अब भी अपनी गलती मानने तैयार नहीं है, वह तो मीटिंग के प्रसारण से भी इसलिए डर रही है ताकि उनकी पोल न खुल जाये।

कैसे लोकतंत्र और कैसी सत्ता के साये में हम जी रहे है। जब जनहित की मीटिंग है तो इसके प्रसारण से क्या आपत्ति होनी चाहिए। क्या इस तरह की हर मीटिंग का  प्रसारण नहीं होना चाहिए ताकि जनता यह जो जान सके कि उसके जनसेवक उनके लिए ईमानदारी से काम कर रहे हैं? इससे सत्ता का भ्रम दूर होगा लेकिन जब सत्ता बेईमान हो तो वह ऐसे किसी प्रसारण के लिए कैसे तैयार होगी?

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