रविवार, 15 सितंबर 2024

दादा की शहादत पर भारी पोते की गाली...

 दादा की शहादत पर भारी पोते की गाली...


पता नहीं भाजपा  में जाते ही कोई देशद्रोही का तमगा बाँटने लगता है तो कोई हिन्दुत्व का। लेकिन इस दौर में यही  सब हो रहा है, दुनिया देख रही है कि भारत की राजनीति में हिन्दू वोटरों के ध्रुवीकरण का  कैसा विभत्स खेल चल रहा है।

परेशानी यह नहीं है कि देश की तरक्की किस विचारधारा से होगी। परेशानी तो यह है कि मोदी सत्त्रा की आलोचना आख़िर  उनकी पार्टी को बर्दाश्त क्यों नहीं है, क्या मंहगाई, बेरोजगारी, नफरत, लूट, दरकती सड्‌के, टपकती छत, महँगी  शिक्षा पर बात नहीं होनी चाहिए।


नॉन बायोलोजिकल क्रियेचर पर स्पेस टेक्नालाजी पर बहस क्या सत्ता  का ही अधिकार है।


ऐसे में रवनीत सिंह बिट्‌टू का राहुल गांधी को देश का नम्बर वन आंतकी घोषित करने के क्या मायने है। जिस परिवार से रवनीत सिंह बिट्‌टू आते  है क्या वे सभी आतंकी थे? उनके दादा बेअंत सिंह ने तो कांग्रेस से मुख्यमंत्री रहते शहादत दी थी। तब क्या वे भूल गये हैं कि राहुल या कांग्रेस को आतंकी  कहने का मतलब क्या है?

खबर के मुताबिक़ केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता रवनीत सिंह बिट्टू ने कांग्रेस लीडर राहुल गांधी को आतंकवादी बताया है। नेता प्रतिपक्ष पर निशाना साधते हुए बिट्टू ने कहा, ‘राहुल गांधी ने सिखों को बांटने का प्रयास किया है। सिख किसी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं है, मगर चिंगारी लगाने की कोशिश हो रही है। राहुल गांधी देश के नंबर वन टेररिस्ट हैं।’ भाजपा नेता ने कहा कि वे लोग जो हर वक्त मारने की बात करते हैं, जहाजों-ट्रेनों को उड़ाने की बात करते हैं... वे राहुल गांधी के समर्थन में आ गए हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा लीजिए। मेरे ख्याल से अगर किसी को पकड़ने के लिए इनाम होना चाहिए तो वो राहुल गांधी हैं। उन्होंने राहुल गांधी को देश का सबसे बड़ा दुश्मन भी बताया।

रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा, 'राहुल गांधी भारतीय नहीं हैं, उन्होंने अपना ज्यादातर समय बाहर बिताया है। उन्हें अपने देश से ज्यादा प्यार नहीं है, क्योंकि वह विदेश जाकर हर बात को गलत तरीके से कहते हैं। जो लोग मोस्ट वांटेड हैं, अलगाववादी हैं, बम, बंदूक और गोले बनाने में माहिर हैं, उन्होंने राहुल गांधी के बयानों की सराहना की है।' मंत्री ने कहा कि कांग्रेस केवल इधर-उधर की बातें करती है। जबकि राहुल गांधी पहली बार संसद में विपक्ष के नेता बने हैं। वे कभी सिख की असुरक्षा की बात करते हैं तो कभी समाज के बिखराव की बात करते हैं। उनका ऐसा व्यवहार माफ करने लायक नहीं है।

रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा कि राहुल गांधी में गंभीरता नहीं है। राहुल गांधी हो या उनके पार्टी के अन्य नेता, सभी देश को तोड़ने में लगे हुए हैं। कांग्रेस को देश की सुरक्षा और करोड़ों जनता के हितों की चिंता बिल्कुल नहीं है। सिर्फ वोट के लिए कांग्रेस समाज में अशांति फैलाने में लगी हुई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को मैंने काफी नजदीक से देखा है, परखा है। कांग्रेस के टिकट पर तीन बार सांसद रहा हूं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और भाजपा के मूल मंत्रों से प्रभावित होकर भाजपा की सदस्यता ली। पीएम मोदी के नेतृत्व वाले केंद्र सरकार में शामिल होकर रेल के क्षेत्र में देशवासियों की सेवा कर रहा हूं। 

राहुल गांधी ने वाशिंगटन डीसी में भारतीय अमेरिकियों की सभा को बीते सोमवार को संबोधित किया था। इस दौरा उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कुछ धर्मों, भाषाओं और समुदायों को अन्य की तुलना में कमतर मानता है। उन्होंने कहा था कि भारत में राजनीति के लिए नहीं, बल्कि इसी बात की लड़ाई लड़ी जा रही है। कांग्रेस नेता ने कहा था, ‘लड़ाई इस बात की है कि क्या एक सिख को भारत में पगड़ी या कड़ा पहनने का अधिकार है या नहीं। या एक सिख के रूप में वह गुरुद्वारे जा सकते हैं या नहीं। लड़ाई इसी बात के लिए है और यह सिर्फ उनके लिए ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लिए है।’ 

अमेरिका क्यों ताकतवर है...

 अमेरिका क्यों ताकतवर है...


यह बेहद कठिन सवाल है लेकिन इसका जवाब इन दिनों कुछ ऐसे दिया जा रहा है कि अमेरिका के लोग बेहद सजग है

उन्हें जैसे ही पता चला कि उनका राष्ट्र‌पति सठिया गया है, उस पर उम्र हावी होने लगी है वे आयँ-बायं-सायं बोलने लगा है।

तत्काल राष्ट्रपति जो बाइडन की पार्टी ने राष्ट्र‌पति के निर्णय लेने के अधिकारों को सीमित करते हुए बड़े और कड़े फैसले के लिए केद्रीय केबिनेट को अधिकृत कर दिया। इतना ही नहीं जो बाइडन को बीच चुनाव में उम्मीदवारी से हटा कर उप राष्ट्रपति कमला हैरिस को उम्मीदवार बना दिया।

क्योंकि अमेरिकन जानते है कि देश बतौलेबाजी से नहीं चलता...!

आदिवासी समाज ने नहीं उठाया शव...

आदिवासी समाज ने नहीं उठाया शव...

तेज होते आन्दोलन से सत्ता की नींद उड़ी 

 हत्या कर लाश दपनाकर पानी टंकी का निर्माण 


सीतापुर में आदिवासी युवक की हत्या करके उसकी लाश दफनाकर पानी टंकी का निर्माण करवाने वाले आरोपी ठेकेदार अभिषेक पाण्डेय को पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है। तो दूसरी तरफ मृतक संदीप लकड़ा के शव को लेने से इंकार करते हुए उसके परिजनों ने धरना देना शुरू  कर दिया है।) मृतक के परिजनों को दो करोड़ मुआवजा और आरोपी की गिरफ्तारी की मोग के चलते संदीप का शव 10 दिनों से मर्क्युरी में रखा हुआ  है तो अब मृतक के परिजनों के समर्थन में आदिवासी समाज के साथ कांग्रेस भी खड़ी हो गई है।

दृश्यप फिल्म की तर्ज पर हुए इस हत्याकांड को लेकर कोग्रेस के दिग्गज नेता भी धरना स्थल पहुंचने लगे है जिसमें पूर्व उपमुख्यमंत्री ती एस सिंहदेव, पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के अलावा कांग्रेस  व गोडवान पार्टी के नेता शामिल है।

सीतापुर में राजमिस्त्री की हत्या व फिर दृश्यम मूवी की तर्ज पर उसके शव को ओवरहेड टैंक के नीचे दफन करने के मामले ने अब और तूल पकड़ लिया है। सर्व आदिवासी समाज ने सीएम के नाम लिखे एक पत्र में मुख्य आरोपी ठेकेदार अभिषेक पांडेय, उसके सहयोगी प्रत्यूष पांडेय व गौरी तिवारी के खिलाफ नामजद अपराध दर्ज कर तीनों को फांसी की सजा देने की मांग की है। वहीं उसके परिजन को 2 करोड़ रुपए का मुआवजा व शासकीय नौकरी देने की भी मांग की है।


सीएम के नाम लिखे गए पत्र में सर्व आदिवासी समाज ने कहा है संदीप का शव 75 दिन बाद मिला है। उन्होंने एसपी, एसडीओपी, थाना प्रभारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर जांच कराने तथा तीनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की मांग की है। उन्होंने मृतक संदीप लकड़ा (Sandeep murder case) की पत्नी सलीमा लकड़ा को शासकीय नौकरी देने की मांग की है।

उन्होंने कहा है कि मुख्य आरोपी अभिषेक पांडेय के निजी खाते से आहरित करोड़ों रुपए का उपयोग इस प्रकरण को दबाने में इस्तेमाल किया गया है। इसकी जांच कर संबंधितों के ऊपर एफआईआर दर्ज किया जाए

अमरजीत भगत के मुताबिक परिजनों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि जब तक मुख्य आरोपी गिरफ्तार नहीं होता पार्थिव शरीर को नहीं लेंगे. जबकि पुलिस प्रशासन अब तक मुख्य आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सका है.ऐसे में शव को इसी तरह से कब तक रखा जाएगा.इसलिए प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए.

सीतापुर के बेलजोरा निवासी राजमिस्त्री संदीप लकड़ा की नृशंस हत्या व शव दफन करने वाला मुख्य आरोपी ठेकेदार अभिषेक पांडेय अब तक गिरफ्तार  नहीं हुआ है। इसे लेकर आदिवासी समाज में आक्रोश है। वे सीतापुर रेस्ट हाउस के सामने 3 दिन से अनिश्चितकालीन आंदोलन पर बैठे हैं। वहीं परिजनों ने अब तक संदीप का शव का अंतिम संस्कार नहीं किया है। उनका कहना है कि जब तक मुख्य आरोपी नहीं पकड़ा जाता, वे शव नहीं लेंगे। इसी बीच सीतापुर थाने के टीआई जॉन प्रदीप लकड़ा व एक एसआई को हटा दिया गया है।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

टिकिट तो दे दी ही अब बुर्का भी बाँटेगी बीजेपी

 टिकिट तो दे दी ही अब बुर्का भी बाँटेगी बीजेपी


लोकसभा चुनाव में २४० सीट आने से घबराई बीजेपी ने हरियाणा और कश्मीर के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को टिकिट दे दिया है तो अब महाराष्ट्र में वह बुर्का बाँटने आमदा है।

लोगों को कपड़े से पहचान लेने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस रुख से वे तमाम लोग क्या करेंगे जो हिजाब और बुर्के लेकर पूरे देश में हंगामा खड़‌ा कर रहे थे। बुल्डोजर का निशाना बनाकर हिन्दुत्व की दुहाई दे रहे थे, इसका तो पता नहीं चला है लेकिन लोकसभा चुनाव में अपनी भद पिटवा चुकी भाज़पा का मुसलमानों के शरण में जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है।


दरअसल लोकसभा के चुनाव में महाराष्ट्र में न केवल भाजपा बल्कि इंडिया गठबंधन की ऐसी बुरी हार की किसी ने कल्पना नहीं की थी, इसलिए अब जब महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव होने है, तो सत्ता जाते देख भाजपा के सहयोगी दलों की नींद उड़ी हुई है, हालांकि पासमांदा मुसलमानों को रिझाने की कोशिश तो पहले भी हुई थी लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार ने भाजपा के सह‌योगियों के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया है।


और यही वजह है कि मुंबई के कई इलाकों में मुस्लिम महिलाओं को रिझाने बुर्का वितरण समारोह किया जा रहा है।

यदि ऐसा ही पोस्टर कांग्रेस या इंडिया गठबंधन का कोई दल लगा देता तो तमाम तरह के हिन्दुवादी संगठन बिलबिलाने लगते लेकिन इस बार न केवल ऐसे पोस्टर शिंदे गुट ने लगाया है बल्कि शिंदे गुट के विधायक यामिनी यशवंत जाधव ने तो बुर्का वितरण समारोह का आयोजन शुरु कर दिया उपर से इस पर पत्रकारों के सवाल पर उनरी प्रतिक्रिया है वे तो यह सब नहीं मानती, उनके लिए उनेक क्षेत्र के लोग ही महत्वपूर्ण है।

अब देखना है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीख आते आते और भी क्या कुछ होने वाला है। लेकिन अब उन बेचारों का भी सोचिये जिनकी ऐसी बेइज्जती इन दिनों रोज हो रही है। 

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

और ऐसे हो जाते हैं आकाश विजयवर्गीय बरी…

 और ऐसे हो जाते हैं आकाश विजयवर्गीय बरी…


भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय को न्यायालय ने बरी कर दिया। क्या उसे न्यायालय ने सिर्फ इसलिए बरी कर दिया क्योंकि वह मध्यप्रदेश भाजपा के कद्‌दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र थे। लेकिन कानून के आँख में तो पट्टी बंधी होती है फिर वह यह कैसे देख सकता है कि आकाश कौन है?

लेकिन पुलिस के आँख में तो पट्टी नहीं बंधी और न ही मार खाने वाले निगम अधिकारी धीरेन्द्र बायस के आंखों में ही पट्टी बंधी थी तब क्या इन लोगों ने भी अपनी आंखों में पट्टी बांध ली थी?

आकाश विजयवर्गीय खुले आम निगम अधिकारी धीरेन्द्र को क्रिकेट के बल्ले से पीट रहा था , और इस पिटाई का वायरल विडियों पूरे देश ने देखा । लेकिन पुलिस गवाह और सबूत नहीं जुटा पाई, वायरल विडियों का सत्यापन नहीं कराया, गवाह मुकर गये ।लेकिन सबसे बड़ी बात जिस अधिकारी धीरेंद्र की पिटाई हुई उसने पिटाई से इंकार तो नहीं किया लेकिन उसने भी आकाश को नहीं देखा।


है न गजब का कमाल, राजस्थान में काला हिरण ने खुद गोली मारी थी , याद आया कुछ, अरे वही सलमान ख़ान वाला मामला। राजस्थान की इस घटना का मतलब, देश ने जाना था, अब आकाश के बल्ले ने उस अधिकारी को बाल समझकर खुद पिटने लगा था।

समझ रहे हैं आप... सत्ता और पैसे की धमक ...!

बुधवार, 11 सितंबर 2024

भाजपा का उजाला चार बीबी वाला...

 भाजपा का उजाला 

चार बीबी वाला...


जो किस भाजपा लव जिहाद और चार बीबी के मुद्दे को लेकर पूरे देश में हिन्दुओं का वोट हासिल करता हो, उसी भाजपा में यदि चार दो हिंदू औरतों के साथ चार बीबी वाला नत्थे खान पठान सालो से कद्‌द‌ावर नेता बना बैठा हो तब इसका मतलब क्या है।

यदि नत्थे खान पठान का होटल में गिलास की चुस्कियों के साथ एक महिला के अंतरंग वीडियो जारी नहीं होता तो न तो भाजपा उन्हें पद से हटाती और न ही भाजपा की इस करतूत का देश को पता ही चलता।

दरअसल पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी से चालीस साल से जुड़े कद्‌दावर नेता नत्थे ख़ान का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे गिलास से चुस्कियाँ लगाते एक महिला के साथ अश्लिलता  करते दिखाई दे रहे है। कहा जाता है कि यह विडियो खुद नत्थे ख़ान ने बनाकर वाट्‌सअप ग्रुप में डाला था। और कहा जाता है कि जब 'नशा टूटा तो उन्होंने विडियों डिलिट कर भी दिया लेकिन डिलिट करने में इतना देर हो गया कि विडियों देश भर में फैल गया। 

विडियो वायरल होते ही राजस्थान बीजेपी में भी हड़कम्प मच गया और नत्थे ख़ान को पार्टी  के सभी पदों से हटाने की घोषणा भी कर ही लेकिन अभी भी नत्थे खान को पार्टी से हटाया गया है या नहीं कहना मुश्किल है क्योंकि भाजपा में अभी भी इस तरह के लोगों की फ़ेहरिस्त है।

इधर नत्थे ख़ान  ने विडियों बयान जारी कर   बताया है कि जिस महिला के साथ विडियों है वह महिला उनकी चौथी पत्नी है जिससे 6 साल पहले शादी हुई है । यानी 64 के उम्र वाले नत्थे ख़ान ने 58 के उम्र में चौथी शादी की है।

नत्थे खान की यह चौथी बीबी है जिसमें से दो बीबी हिन्दू है।

एक देश-एक बीबी, लव जेहाद जैसे नारा लगाने वाली भाजपा में यदि नत्थे ख़ान सालों से है और राजस्थान भाजपा के कद्‌दावर नेता माने जाते है तो अब यह कहा ही जा सकता है कि भाजपा को चाल चेहरा सौर चरित्र की बात नहीं करनी चाहिए।

मंगलवार, 10 सितंबर 2024

उपमुख्यमंत्री साव ने बना ही ली रिकार्ड...

 उपमुख्यमंत्री साव ने बना ही ली रिकार्ड...


पहली बार विधायक बनते ही उपमुख्यमंत्री बने अरुण साव के नाम नई सरकार में एक ऐसा रिकार्ड जुड़ गया है जो अब पांच साल तो नहीं टूटने वाला  है। संघ से सांसद और फिर प्रदेश अध्यक्ष बनकर सर‌कार बनाने के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी से वंचित रहने वाले अरुण साव पर वैसे तो आठ माह में जिस तरह के आरोप लगे हैं वह किसी भी नेता के लिए परेशानी का सबब हो सकता है लेकिन इस सबसे बेपर‌वाह उनकी कार्य शैली में कोई बदलाव नहीं होना आश्चर्य का विषय माना जा रहा है।

नगरिय निकायों में संविदा कर्मियों की भर्ती को लेकर आरोपों के बीच उन पर जल जीवन मिशन योजना का बँटाधार करने का आरोप भी लगने लगा है। धमतरी - बलोदा बाजार सहित कई जिलों में अनियमितता उजागर होने के बावजूद इंजीनियरों और ठेकेदारों को बचाने और अनकी करतू‌तों का मामला तो विधानसभा में भी गर्म रहा। 

इधर उनके अमेरिका प्रेम को लेकर भी जबरदस्त चर्चा रहा । अमेरिका जाने वीजा क्लीयर कराने के चक्कर में वे तीन दिन दिल्ली में जमे रहे और जब वीजा क्लीयर नहीं हुआ तो थक हारकर लौट आये थे ।

लेकिन अब वीजा क्लीयर होते ही वे फिर जिस तेज़ी से दिल्ली कूच कर गये, उसे लेकर भी कम चर्चा नहीं है । 

वे इस दौरान जाने अनजाने में अनोखा रिकार्ड भी बना गये और यह रिकार्ड है नई सरकार में विदेश जाने वाले पहले मंत्री बन जाने का रिकॉर्ड…।

सोमवार, 9 सितंबर 2024

अब इंदौर में रेप के आरोप में भाजपाई फँसे…

 अब इंदौर में रेप के आरोप में भाजपाई फँसे…

युवती को एफ़आईआर के लिए कोर्ट जाना पड़ा


गुजरात के राजकोट में छात्रा से बलालार करने वाले भाजपाईयों को गिरफ़्तार  करने से पुलिए किस तरह बचती रही यह मामला अभी लोगों के जेहन से उतरा भी नहीं है कि अब मध्यप्रदेश के इंदौर से खबर आ गई कि सामूहिक बलात्कार के आरोपियों के खिलाफ पुलिस में एफ़आईआर कराने युवती को न्यायालय जाना पड़ा तब कहीं जाकर पुलिस ने सामूहिक बलात्कार के आरोपियों के खिलाफ एफ‌आईआर दर्ज की। इस मामले का मुख्य आरोपी भाजपा नेता है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने बताया कि 34 साल की महिला की शिकायत पर शहजाद मडावरा, सलीम बारी निवासी श्रीनगर कांकड, सलीम तेली पुत्र ईद मोहम्मद निवासी खजराना, इरफान अली निवासी रसलपुर देवास और नजर पठान पर गैंगरेप की धाराओं में कार्रवाई की है।

पीड़िता के मुताबिक घटना 11 जून 2024 की है। वह कनाड़िया में किराये से फ्लैट देखने जा रही थी। तभी एक थार गाड़ी से सामने से आई स्कूटी के यहां रोक दी। इस कार से इरफान अली उतरा। वह मुझे जबरदस्ती कार में बैठाने लगा। कहा कि तुझे सलीम भाईजान से 10 से 12 लाख रुपए दिलवा देता हूं।मैंने काफी विरोध किया तो कार की पीछे की सीट पर सलीम तेली निकला। उसने कहा सड़क पर ही इसे कपड़े उतार दो। फिर एक मिनट में गाड़ी में बैठ जाएगी। इसके बाद सलीम बारिक नाम का लड़का उतरा और मुझे खींचकर जबरदस्ती गाड़ी में बैठा दिया। उसी समय सफेद रंग की दूसरी कार से शहजाद उतरा। उसने भी अपशब्द कहे।

इसके बाद सभी पीड़िता को कार में बैठाकर अपहरण किया और अरविंदो अस्पताल के यहां गोदाम में ले गए। यहां कमरे में टीवी चालू कर सभी शराब पीने लगे।

तभी स लीम ने बेल्ट निकाला और मुजरा करने को कहा। करीब आधे घंटे बाद सभी ने अननैचुरल सेक्स को लेकर दबाव बनाने लगे। मना किया तो नजर पठान ने बेल्ट से बुरी तरह से मारा। फिर सभी एक के बाद एक बेल्ट से मारने लगे। सभी ने नशा किया और पीड़िता के साथ रेप किया।

पीड़िता ने एफआईआर में लिखवाया कि मैं चिल्लाई तो टीवी पर चल रही अश्लील फिल्म की आवाज तेज कर दी। सलीम तेली ने अननैचुरल सेक्स के लिए मजबूर किया। मेरे साथ शैतानों जैसी हरकत की। कुछ देर बाद मुझे नजर पठान मुझे एक्टिवा पर बैठाकर एमआर10 ब्रिज के यहां छोड़कर भाग गया।

यहां से मैं अपनी बहन के यहां पर मूसाखेड़ी चली गई। पीड़िता ने बताया कि वह इनके खिलाफ शिकायत करने थाने पहुंची। कनाड़िया पुलिस ने भी उसकी सुनवाई नहीं की। आरोपियों को पता चला तो उन्होंने मुझे काफी डराया। सोमवार रात कनाड़िया पुलिस ने पांचों आरोपियों पर केस दर्ज किया है।

देवास में भाजपा का पार्षद रह चुका इरफान गैंगरेप का एक आरोपी इरफान भाजपा का पार्षद रह चुका है। वह स्थानीय भाजपा विधायक का करीबी भी बताया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक इरफान आरोपी सलीम सहित अपने अन्य दोस्तों के साथ कुछ दिन पहले गोवा घूमने गया था।

रविवार, 8 सितंबर 2024

मोदी की मनमानी पीएम-श्री का पुलिंदा...



 मोदी की मनमानी 

पीएम-श्री का पुलिंदा...



प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई  शिक्षा नीति  को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं शिक्षण सस्थानों में संघ के विचार धारा के साथ-साथ इतिहास के महत्वपूर्ण कालों को विलोपित करने जैसे आरोपों  के बीच नाम थोपने का विवाद है। भाजपाई राज्य तो इस शिक्षा नीति को बगैर चु-चपड़ के स्वीकार कर दिया है।और केंद्र से पैसा लेने पुराने स्कूलों को इस योजना में शामिल कर मोदी का फ़ोटो भी लगा रहे हैं।

नई शिक्षा नीति के तहत पीएम-श्री स्कूल का मॉडल तैयार किया गया है जिसमें केंद्र सरकार 60 फीसदी हिस्सा तभी देगा जब राज्य सरकार 40 फीसदी  हिस्सा देगा।

यानी राज्यों के चालीस फीसदी हिस्सा के बाद भी स्कूल पीएम श्री इसलिए कहलायेगा क्योंकि केन्द्र 60 फीसदी हिस्सा दे रहा है। और केंद्र तभी पैसा देगा जब राज्य पीएम श्री नाम रखेगा। मोदी का फ़ोटो लगाएगा।

इसे लेकर विवाद के चलते कई राज्यों को पैसा नहीं मिल रहा है लेकिन राज्यों के पास फंड की कमी है और स्कूलों को सुविधा सम्पन्न करना है तो केंद्र की बात यानी मोदी  की तस्वीर लगानी ही होगी।

छत्तीसगढ़ में तो पुराने स्कूलों को ही पीएमश्री योजना में शामिल कर पैसे लिये जा रहे है, अन्य भाजपा शासित  राज्यों में भी यही हाल है। यानी नया कोई पीएमश्री स्कूल  नहीं होगा, पुराने स्कूलों को ही नाम बदलकर पीएम श्री कर दिया जायेगा।वह भी सिर्फ ६० फ़ीसदी हिस्सेदारी के साथ।

पंजाब तो पहले ही क़र्ज़ में लदा है इसलिए वह पुराने स्कूलों को इस योजना में लाकर   राजी हो गया, दिल्ली की मजबूरी किसी से छिपी नहीं है । वह ऐसा राज्य है जहां की चुनी हुई सरकार पूरी तरह से केन्द्र पर निर्भर है हालिए वह तैयार हो गई। तो बाक़ी  राज्य भी मजबूरी में तैयार हो गये हैं ।


लेकिन अभी तक तमिलनाडू और बंगाल तैयार नहीं हुए है। वे प्रधानमंत्री मोदी का फोटो सिर्फ 60 फीसदी अंशदान में तैयार नहीं है। लेकिन कोई अपने फोटो के बगैर पैसा न दे तो इसे आप क्या कहेंगे। 

यदि नाम का केंद्र को इतना ही शौक है तो पूरा पैसा दें। राज्यों से 40 फीसदी राशि क्यों लिया जा रहा है ।


शनिवार, 7 सितंबर 2024

थम नहीं रहा भाजपाईयों का रेप कांड...

 बंगाल पर बवाल, राजकोट पर चुप्पी... 

थम नहीं रहा भाजपाईयों का रेप कांड...



कलकत्ता में जूनियर डाक्टर  के साथ बलात्कार के बाद हत्या का आरोपी गिरफ्तार हो गया, सीबीआई जांच शुरु हो गई, विधानसभा में कड़े कानून भी बन गये लेकिन बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है लेकिन दूसरी तरफ राजकोट में एक छात्रा के साथ हुई बलालार के मामले में बीजेपी शायद इस लिए चुप है क्योंकि बलालार करने वाले भाजपाई है और उन्हें ४० दिनों बाद भी पुलिस गिरफ्तार करने से बचती रही और कोर्ट के द्वारा जमानत खारिज करने के बाद आरोपी ने ख़ुद सरेंडर किया।

जबकि एक अन्य मामले में हिमाचल प्रदेश के भाजपा विधायक हंसराज के खिलाफ बलाकार की शिकायत लिखाने वाली युवती ने यह कहते हुए शिकायत वापस ले ली कि उसने बहकावे में शिकायत की थी। बाकि आप समझदार है कि कैसे वृजभूषण शरन सिंह के खिलाफ पास्को एक्ट हट गया था। दोनों ही मामलो को लेकर जो मीडिया रिपार्ट आई है उससे बीजेपी में हड़कंप मचा हुआ है लेकिन दोनों ही राज्यों में सरकार होने और आरोपियों के पार्टी से जुड़े होने के बाद यह सवाल सोशल मीडिया में तेजी से उठ रहा है कि आखिर भाज़पा के नेताओं पर इतने आरोप  क्यों. ? भाजपा के 12 सांसदों के नामो के अलावा बृजभूषण शरण सिंह, राम-रहीम को संरक्षण के  अलावा बलात्कारियों के स्वागत सत्कार की तस्वीरें एक बार फिर वायरल हो रही है। राजकोट और हिमाचल की खबरें कुछ इस प्रकार है

एक 21 साल की युवती के रेप के आरोप में 40 दिनों से फरार BJP कार्यकर्ता विजय रादड़िया ने आत्मसमर्पण कर दिया है. उसे जेल भेज दिया गया है). विजय, राजकोट के एक गांव में स्थित शैक्षणिक संस्थान का ट्रस्टी है. पीड़िता उसी शैक्षणिक संस्थान में पढ़ती थी. कोर्ट के आदेश के बाद विजय को 9 सितंबर तक पुलिस हिरासत में रखा जाएगा

विजय की पत्नी दक्षा राजकोट ज़िला पंचायत की सदस्य हैं. उन्होंने इस मामले में अपने पति की गिरफ़्तारी पर रोक लगाने की मांगी की थी. लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. इसी के दो दिन बाद ये गिरफ़्तारी हुई है. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, युवती ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और आरोप लगाया कि जून 2023 में शैक्षणिक परिसर में 2 लोगों ने उसका रेप किया. इसके बाद विजय और गांव के पूर्व सरपंच मधु थधानी के ख़िलाफ़ 25 जुलाई को मामला दर्ज किया गया.

युवती ने बताया कि वो संस्थान में ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रही थी और कैंपस के एक हॉस्टल में भी काम कर रही थी. मधु थधानी और विजय रादड़िया की संस्थान के तत्कालीन मैनेजिंग ट्रस्टी से दोस्ती थी. इसीलिए वो अक्सर कैंपस में आया करते थे. FIR के मुताबिक़, जून 2023 से मधु और विजय ने कथित तौर पर उसे 'आंख मारना और मुस्कुराना' शुरू कर दिया. लगभग 15 दिन बाद मधु ने उसे फ़ोनकिया।

इसके बाद दोनों व्यक्ति कथित तौर पर उसके कमरे में गए, उसे धमकाया और बारी-बारी से उसके साथ रेप किया. FIR में युवती ने ये भी आरोप लगाया कि मधु ने कहा कि संस्थान के तत्कालीन मैनेजिंग ट्रस्टी को सब कुछ पता था. मधु यधानी ने इसके बाद भी उसका यौन उत्पीड़न किया. मई, 2024 में वो आगे की पढ़ाई के लिए सूरत चली गई. लेकिन मधु ने फिर भी उससे दो बार मुलाक़ात की, आख़िरी बार 12 जुलाई को.इस दौरान भी मधु यधानी ने उसका यौन उत्पीड़न किया और उसे धमकाया. उससे शादी करने के लिए कहा और चेतावनी दी कि वो उसे किसी और आदमी से सगाई नहीं करने देगा. मधु पेशे से किसान और बिल्डर है. मधु को 2 अगस्त, 2024 को गिरफ़्तार किया गया था. वो फिलहाल न्यायिक हिरासत में है।

इस बीच, विजय रादड़िया फरार हो गया था. उसने 26 जुलाई को राजकोट डिस्ट्रिक्ट एंट सेशल कोर्ट में अग्रिम ज़मानत की अर्जी दी थी. याचिका का विरोध करते हुए राजकोट ग्रामीण पुलिस ने अपने हलफ़नामे में कहा,आरोपी याचिकाकर्ता की पत्नी राजकोट ज़िला पंचायत की सदस्य हैं. वो ख़ुद राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है और इसलिए अग्रिम ज़मानत नहीं दी जानी चाहिए. क्योंकि अगर उसे अग्रिम ज़मानत दी जाती है, तो वो गवाहों को प्रभावित करने और सज़ा से बचने की कोशिश करेगा.

इसी पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 3 सितंबर को विजय रादड़िया की ज़मानत याचिका खारिज कर दी. फिर 5 सितंबर को उसने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया. उसे गिरफ़्तार किया गया और 6 सितंबर को कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने उसे 9 सितंबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है.

BJP की प्रतिक्रिया

इस बीच, राजकोट के BJP नेताओं का कहना है कि मामले के बारे में पार्टी हाईकमान को बताया जाएगा. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, BJP की राजकोट ज़िला इकाई के महासचिव हरेश हेरभा ने कहा,

चूंकि वो हमारे कार्यकर्ता हैं, इसलिए हम इस मामले की रिपोर्ट पार्टी हाईकमान को देंगे. आगे की कार्रवाई के लिए उनसे मार्गदर्शन मांगेंगे.

वहीं, शैक्षणिक संस्थान के मौजूदा मैनेजिंग ट्रस्टी ने कहा कि वो जांच में पूरा सहयोग कर रहे हैं. विक्टिम को न्याय दिलाने के लिए पूरी शक्ति से काम किया जा रहा है. परिसर में 200 CCTV कैमरे लगे हैं और बाहरी लोगों को परिसर में एंट्री की अनुमति नहीं है. पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है

BJP विधायक पर पार्टी कार्यकर्ता की बेटी से नग्न तस्वीरें मांगने का आरोप, FIR के बाद पलट क्यों गई युवती?

हंसराज, हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले के चुराह से तीसरी बार के विधायक हैं. वो हिमाचल प्रदेश विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष और BJP की राज्य इकाई के वर्तमान उपाध्यक्ष भी हैं. उनके ख़िलाफ़ 9 अगस्त को चंबा के महिला पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज किया।

बाद में युवती ने कहा कि 'मानसिक तनाव' में और किसी के 'बहकावे' में आकर शिकायत दर्ज कराई है. 

हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के BJP विधायक हंस राज (BJP MLA Hans Raj) के ख़िलाफ़ एक 20 साल की युवती की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया है. FIR के मुताबिक़, हंस राज ने कथित तौर पर युवती को अश्लील मैसेज भेजे, नग्न तस्वीरें मांगी और धमकाया. बताया गया कि युवती एक BJP कार्यकर्ता की बेटी है. हालांकि, बाद में युवती ने फ़ेसबुक पर लाइव आकर बताया कि उसने 'मानसिक तनाव' में और किसी के 'बहकावे' में आकर शिकायत दर्ज कराई है.

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

न निलंबन, न एफ़आईआर-कड़ी कार्रवाई का प्रचार

 बच्ची का आंसू पोछने सत्त्रा व खेल...

न निलंबन, न एफ़आईआर-कड़ी कार्रवाई का प्रचार 


आलीवारा की छात्रा को जिन्दगी भर जेल की हवा खिलाने की धमकी देने वाले जिला शिक्षा अधिकारी अभय जायसवाल को लोक शिक्षण संचालनालय में सहायक संचालक के पद पर बिठा दिया गया।

इस आदेश को सरकार और उससे जुड़े लोग मुख्यमंत्री के कड़े तेवर के रूप में प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं लेकिन यही सरकार जब न्यायालय में ट्रांसफर को सजा से इंकार करती है तब सवाल यही है कि क्या अभय जायसवाल को सरकार ने कोई सजा दी ?

सिर्फ कुर्सी बदला गया, सजा तो उसे मिली ही नहीं । लेकिन सत्ता का अपना चरित्र है और दलाल मिडिया' का अपना चरित्र।

दो दिन पहले अलिवारा स्कूल के छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में शिक्षकों की कमी दूर करने की मांग को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी से मिलने पहुंचे थे जहाँ शिक्षा अधिकारी अभय जायसवाल ने बच्चों को जिन्दगी भर जेल की हवा खिलाने की धमकी देते हैं। सहमी बच्चियां इस धमकी से डरीसहमी बच्चियाँ  शिक्षा अधिकारी के कक्ष से रोते-बिलखते बाहर निकलती है तो उस पर पत्रकारों की नजर पड़‌ जाती है और पत्रकारो ने जब रोने की वजह पूछी तो बच्चियों ने सब कुछ साफ-साफ बता दिया कि किस तरह से अभय जायसवाल ने उन्हें जेल की हवा खिलाने की धमकी दे रहे हैं।

इस धमकी का वीडियो जब वायरल हुआ तो प्रशासन के हाथ-पांव फूल गये, लेकिन अभय जायसवाल के खिलाक कार्रवाई करने की बजाय उनका तबादला कर यह प्रचारित किया गया कि बच्ची के आंसू देख मुख्यमंत्री ने कड़े तेवर दिखाते हुए जिला शिक्षा अधिकारी को हटा दिया।

जबकि कड़ा तेवर तो तब माना जाता जब अभय जायसवाल को निलंबित किया जाता और एफ़ आई आर की जाती।

लेकिन सूत्रों  का कहना है कि लेन देन कर शिक्षा अधिकारी बनने-बनाने का खेल जब चलता हो तो फिर हटाने की प्रक्रिया को ही कड़ी कार्रवाई के रूप में प्रचारित किया जाता है। और इस मामले में भी यही हुआ। सच तो यह है कि जन आक्रोश से बचने का यह तरीक़ा है।


गुरुवार, 5 सितंबर 2024

सांप पालने का परिणाम...

 सांप पालने का परिणाम...


आप अपने घर साँप पालकर यह उम्मीद या आशा नहीं कर सकते कि वह आपको नहीं सिर्फ आपके पड़‌ोसी को ही काटेगा।

इसी तरह की बात 2011 में पाकिस्तान से हिलेरी क्लिंटन ने कही थी, तो पंचतंत्र की कहानी में आचार्य विष्णु शर्मा ने भी एक कहानी के माध्‌यम से कहा था कि सांप और बिच्छू को पालकर लम्बे समय तक इन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता ।

लेकिन २०११ की बात को पाकिस्तान ने अनसुना कर दिया और आज पूरी दुनिया में न केवल पाकिस्तान आतंकवाद के पोषक के रूप में बदनाम है बल्कि उसकी समूची अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई है , बरबादी के कगार पर पहुंच गया है पाकिस्तान , तो इसकी बड़ी वजह उनका आतंकवाद के रूप में सांप को पालना ही है।

लेकिन भारत में भी पंचतंत्र की कहानियों को अनसुना करना शुरु कर दिया है तो उसका परिणाम धीरे-धीरे ही सही सामने आने लगा है। ताजा परिणाम तो आर्यन मिश्रा की गोरक्षकों के द्वारा की गई हत्या है जिस पर ने दुखी मन से आर्यन के पिता से कहा है कि देश के प्रधानमंची नरेद्र मोदी ने हत्या करने की छूट दे रखी है।

लेकिन इन सांपों ने इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को उत्तरप्रदेश में भी डसा था। गौरक्षक के नाम पर गुण्डागर्दी और हत्या की फेहरिश्त है, सड़क से संसद तक हंगामा तो हो रहा है लेकिन यदि इनको पालने वाला ख़ुद सत्ता हो तो फिर पंचतंत्र की सीख का क्या मतलब रह जाता है।

बजरंग दल के नाम पर सड़‌कों में क्या कुछ नहीं हो रहा है तो विश्वहिन्दू परिषद के नाम पर मंदिरों में।

लेकिन एक बात जान लेना या समझ लेना जरूरी है कि इस देश में कानून का राज है और कानून के राज में न बुलडोजर के लिए जगह है और न ही मॉब लिंचिंग के लिए। और जो लोग धर्म की आड़ में पट्टी बांधे ऐसे अपराधों का समर्थन कर रहे है, वे अपने आर्यन या सुबोध के लिए तैयार रहें।


और कितनी बे-इज्जती…

 और कितनी बे-इज्जती…


गोस्वामी तुलामी दास ने कहा है कि आवत ही हर्षय नहीं 

नैनन नही सनेह, 

तुलसी तहां न जाइए

कंचन बरसे नेह ।

इतनी सी बात यदि स्वार्थ में अंधा हो चुके व्यक्ति को समझ में नहीं आता तो क्या ऐसा व्यक्ति खुद अपनी बेईज्जती के लिए जिम्मेदार नहीं है?

यह सवाल इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति में आदिवासी नेता नंद कुमार साय के भाजपा प्रवेश को लेकर उठ रहा है तो यकीन मानिये कि अब भी ऐसे लोग हैं जो मान-सम्मान के नाम पर धन-दौलत और कुर्सी को लात मारने का माद्दा रखते हैं।

दरअसल नंद कुमार साय ने विधानसभा चुनाव से पहले उस भाजपा को लतिया दिया था जिस भाजपा ने उन्हें मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य का अध्यक्ष बनाया था, विधायक से लेकर सांसद तक बनवाया था तो केन्द्र में भी सर आंखों पर बिठाया था। राज्य बनने के बाद एकात्म परिसर में बृजमोहन अग्रवाल के समर्थकों की गुण्डईं के बाद भी नेता प्रतिपक्ष बनाया था। यानी भाजपा ने 'नंद कुमार साय - लखीराम की गाय' जैसे नारों का  परवाह नहीं कर कई महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया था । लेकिन सत्त्रा जाते ही नंद‌कुमार साय ने भूपेश बघेल के प्रभामंडल में आकर पार्टी छोड़ दी।

मजेदार बात तो यह है कि कांग्रेस के हारते ही वे कांग्रेस भी इस आशा से छोड़े होंगे कि उन्हें भाजपा सिर माथे पर बिठा लेगी लेकिन सत्ता अब उन्हीं विष्णुदेव साय और पवन साय के हाथ में हैं जिन्होंने नंदकुमार को कांग्रेस में नहीं जाने के लिए मनाने घर तक गये थे ।

ऐसे में पिछले दरवाजे यानी मिस कॉल के जरिये भाजपा की सद‌स्यता हासिल करने की कोशिश पर यदि बवाल मचा है या चर्चा चल रही है तो इसकी वजह नंद कुमार की करतूत ही जिम्मेदार है।

कहा जाता है कि एक उम्र के पड़ाव में आकर यदि आद‌मी अपनी इज्जत का ध्यान न रखे तो छिछालेदर होना तय है।

कहते भी है कि आद‌मी अपनी बेइज्जती के लिए स्वयं जिम्मेदार होता है। अच्छा खासा पेंशन तो मिल ही रहा होगा तो फिर भी कोई अपनी बेइज्जती कराए तो इसे क्या कहा जाये ?

मंगलवार, 3 सितंबर 2024

पवन नहीं यह झोंका है...

 पवन नहीं यह झोंका है...


रिमोट से चलने वाली सरकार के रूप में बदनाम हो चुने साय सरकार कब तक मंत्रिमंडल का विस्तार करेगी, निगम-मंडल में नियुक्ति कौन करेगा के सवालों के बीच पवन साय अचानक भाजपा के संगठन मंत्री पारी नेताकों में सबसे ताकतवर शख्स नजर आने लगे है तो इसकी कई वजह है।

वैसे तो भाजपा में संगठन मंत्री की ताकत क्या होती है यह किसी से छिपा नहीं है, सारंग बंधु से लेकर सौदान सिंह और अब पवन साय की ताकत का अहसास पार्टी के नेताकों को भी है, लेकिन कहा जाता है कि सत्ता आने के बाद भी ताकतवर होने का ऐसा उदाहरण बहुत कम देखने को मिलता है कि लालबत्ती के लिए भी भीड़ मुख्यमंत्री से ज्यादा संगठन मंत्री जुटा ले। हालांकि कुछ लोग नीतिन नबीन और जामवाल के पास भी पहुंच रहे हैं लेकिन जब सब कुछ तय करने का ईशारा संगठन मंत्री की ओर किया जाए तो फिर क्यों न पवन साय को ही सत्ता केन्द्र मानकर भीड़ बढ़े।

और शायद यही वजह है कि बिल्डर्स से लेकर भ्रष्टाचारी हो या आपराधिक छवि वाले नेता ही क्यों न हो, सत्ता केन्द्र को ही खुश करने में लगे हैं।

ऐसे में यदि मंत्रालय में भी भाई साहब ! वाली संस्कृति का ही प्रभाव बढ़ रहा हो तो फिर अफसरों के काम काज पर इसका असर पड़‌ना तय है।

ऐसे में लालबत्ती की चाह में चक्कर पर चक्कर लगा रहे नेता अब पवन साय को खुश करने में लगे हैं लेकिन पवन साय को जानने वाले कहते हैं कि वे भी सायं सायं  में माहिर है।

सायं साये में माहिर तो सौदान सिंह भी थे लेकिन इतनी भीड़ वे भी नहीं खींच पाये थे, और चर्चा इसी बात की है कि जब इतनी भीड़ नहीं खींच पाने के बाद भी सौदान सिंह इतना खींच गये तो फिर भीड़ वाले कितना खींच रहे हैं। और शायद यही वजह है कि भाजपाई राजनीति में इन दिनों यह नारा जोरों से उछाला जा रहा है—-

  पवन नहीं यह झोंका है

 लालबत्ती का धोखा है...।

सोमवार, 2 सितंबर 2024

गजब पार्टनरशीप राजनीति में भी…

 गजब पार्टनरशीप 

राजनीति में भी…


ये अलग बात है कि गैर परिवार वाले याने जो परिवार नहीं चला पाते वे राजनीति में परिवार बाद का विरोध करते नहीं थकते, लेकिन इस राजनीति में शामिल लोग मौका मिलते ही अपनी संतानों को राजनै‌तिक लाभ दिलाने में कोई कसर भी नहीं छोड़ते ।

लेकिन छत्तीसगढ़ की राजनीति में पार्टनरशीप का खेल भी गजब है। कारोबार से लेकर राजनीति तक पार्टनरशीप का  ऐसा उदाहरण बहुत कम देखने को मिलेगा। बाक़ी और किस किस मामले में पार्टनरशीप चल रही है इसका खुलासा बाक़ी है।

रियल स्टेट के कारोबार में पार्टनरशीप के बाद अब रिटेल के क्षेत्र में पार्टनरी करने वाले राजीव अग्रवाल और छगनलाल मुंदडा को लेकर इन दिनों पार्टी के भीतर यदि खूब चर्चा चल रही है तो इसकी वजह साय सरकार की वह प्रतिक्षारत लालबत्ती की सूची है जिसमें एक पार्टनर का नाम धड़ल्ले से वायरल हो रहा है,। रमन सरवार में एक पार्टनर छ‌गन‌लाल मुंदड़ा को लालबत्ती भी मिल चुका है। उसे सीएसआईडीसी वा चेयरमेन बनाया गया था। इस बार वायरल सूची के 18 वे नम्बर में इसी पद पर राजीव आवाल का नाम है। भाजपाई चर्चा की बात करें तो दोनों के राजनैतिक जीवन में भी पार्टनर शीप का जबरदस्त समानता देखने को मिल रहा है। यानी दोनों पार्षद चुनाव लड़ चुके हैं। मुंदड़ा एक बार तो राजीव अग्रवाल दो बार । 

लेकिन वार्ड मेबर का चुनाव नहीं जीत पाने वाले इन दोनों पार्टरों का संगठन में भी प्रभाव कम नहीं है। दोनों ही पार्टनर भारतीम जनता पार्टी का रायपुर शहर का जिलाध्यक्ष भी बन चुके है।

दोनों ही विधानसभा का टिकिट मांगते रहे लेकिन मिला नहीं।

लालबत्ती वाले मामले में जो पार्टनरी की कमी अधूरी रह गई है क्या वह भी पूरा होने जा रहा है क्योंकि वायरल सूची तो यही बता रहा है।

दरअसल इस पार्टनरी में अभी छगन भारी पड़ गये है, लालबत्ती के मामले में। ऐसे में वायरल सूची ही असली हुई तो यह भी एक रिकार्ड ही होगा।

रविवार, 1 सितंबर 2024

जलवा बरकरार है मोहन सेठ का...

 जलवा बरकरार है मोहन सेठ का... 

दबाव में दूसरे पक्ष पर भी एफआईआर लेकिन गिर‌फ्तारी नहीं....


लेन देन के विवाद में कटोरा तालाब चौक में घंरे-दो घंटे तक अपनी गुंडई से धमा चौकड़ी मचाने और गुजरने वालों को दहशत में डालने वाले भाजपाईयों को पकड़‌ने में पुलिस के हाथ पांव फूलने लगे हैं। भारी दबाव में दूसरा पक्ष सचिन मेधानी की रिपोर्ट पर भी एक आई आर तो दर्ज कर ली गई लेकिन सप्ताह बीत जाने के बाद भी किसी भी पक्ष से गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। कहा जाता है कि दोनों ही गुट के लोग रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल के करीबी है।

ज्ञात हो कि लेन देने के विवाद के चलते 27 अगस्त को नेताजी होटल वाले राहुल चंदनानी और नाज का व्यवसाय करने वाले सचिन मेधानी गुट आपस में भीड़ गये थे । दोनों ही गुट के बीच लेन देने का विवाद हाथा पाई में तब्दिल हो चौक हो गया और कटोरा तालाब चौक पर मारपीट और गाली गलौच के साथ धमाचौकड़ी की जाने लगी। लोगों का राह चलना मुश्किल हो गया। अश्लील गाली गलौच के चलते राह चलती महिलाएं शर्मसार होने लगी और लोग  इधर उधर भागने लगे। यह सब धमाचौकडी तब शांत हुआ जब एक जुट वहां से चला गया।

इसके बाद पुलिस ने राहुल चंदनानी की रिपोर्ट पर सचिन मेघनी सहित उनके आधा दर्जन साथियों के खिलाफ रिपोर्ट तो लिख ली लेकिन सचिन मेघानी से सिर्फ आवेदन लिया गया। इसके  बाद दोनों के बीच ‌समझौता कराने का खेल शुरु हुआ। इधर सचिन के आवदेन पर जब दबाव बढ़ा तो पुलिस को एफ़आईआर करनी पड़ी ।

सूत्रों की माने तो इस मामले को लेकर बीजेपी के क़द्दावर नेता के दबाव के चलते पुलिस किसी की भी गिरफ्तारी नहीं कर रही है। जबकि इस घटना के चलते कटोरा तालाब चौक जैसे व्यस्ततम चौक में न केवल चक्काजाम जैसे हालात थे लोगों में दहशत का भी माहौल था।

सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि राजनैतिक द‌बाव के चलते पुलिम गिरफ्तार नहीं कर रही है। कहा जाता है सचिन मेघानी और राहुल चंदनानी दोनों ही रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल के करीबी है और इसमें से सचिन मेघानी को तो भाजपा ने पार्षद चुनाव भी लड़‌वाया है।

बहरहाल इस घटना को लेकर जो चर्चा चल रही है उसके मुताबिक़ भले ही बीजेपी ने बृजमोहन अग्रवाल को राज्य की राजनीति से किनारे कर दिया हो लेकिन उनके जलवे का असर अब भी शासन प्रशासन में बरकरार है और इसका प्रचार ख़ुद मोहन समर्थक शान से कर रहे हैं।

शनिवार, 31 अगस्त 2024

लौट के बुद्धू घर को आये...

 लौट के बुद्धू घर को आये...


एक सामान्य आदमी के लिए विदेश जाने का मोह क्या होता है इसका तो पता नहीं, लेकिन सरकारी खर्चे में विदेश यात्रा के मोह से बच पाना हर किसी के बस में नहीं है। कई नेता तो सरकारी खर्च में विदेश जाने का फर्जी उपाय भी कर लेते हैं, कुछ सफल हो जाते हैं तो कुछ….!

ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार के उपमुख्यमंत्री अरुण साव का विदेश जाने के सपने का टूटना कितना गजब है यह बताने की इसलिए जरूरत नहीं है कि रिमोट पर चलने वाली सरकार के काम काज सुपर सीएम देख रहे हैं और अपने से कम होशियार या अनुभवहीन लोगों की फौज, कब किसकी बेइज्जती करवा दे, कहा नहीं जा सकता ।

लेकिन अमेरिका जाने के लिए मरे जा रहे की तर्ज पर दिल्ली में लगभग सप्ताह भर से डेरा डालने के बावजूद यदि ख़ाली हाथ लौट के आना बड़े तो इससे दुर्भाग्यजनक बात शायद दूसरी नहीं हो सकती। कहते हैं कि संघियों का अमेरिका के प्रति मोह नया नहीं है, संघ के प्रचारक से प्रधानमंत्री बने नरेद्र मोदी ने तो प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका जाने के लिए किसी ने सरकारी बुलावे का इंतजार तक नहीं कर सके थे।

ऐसे में यदि अरुण साव अपने अधिकारी कमलप्रीत के साथ वीजा लेने यदि दिल्ली में डेरा डाले थे तो क्या हुआ। 

वैसे भी भारी माकम बजट वाले जल जीवन मिशन में उनके रहते कौन सा भ्रष्टाचार रूक गया है, लेकिन वीजा नहीं मिलने को लेकर मंत्रालय से लेकर पार्टी नेताओ में चल रहे क़िस्से भी कम खतरनाक नहीं है, नवा बईला के चिक्कन सिंग से लेकर अनाड़ी का… सत्यानाश तक की कहावत। 

अब देखना है कि अनुभवहीनता के चलते इस घोर बेईज्जती का हिसाब किस-किस अधिकारियों से लिया जाना है। 

शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

दयाल दास की दुविधा…

 दयाल दास की दुविधा


बलौदा बाजार हिंसा में समाज की नाराजगी की परवाह नहीं कर विष्णु देव साय सरकार के लिए सीना ठोंक कर ढाल बनने वाले प्रदेश सरकार के मंत्री दयालदास बघेल इन दिनों भारी दुविधा में है, और कहा जा  रहा है कि इस दुविधा का असर भी अब दिखाई देने लगा है।

द‌याल दास की दुविधा क्या है यह हम बताये उससे पहले बता देते हैं कि रमन सरकार में दो दो बार मंत्री रह चुके द‌याल दास बघेल ने जब तीसरी पारी की शुरुआत की तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि समाज के गुरु को चुनावी पटखनी देने के बाद उन्हें विष्णुदेव सरकार पर आये मुसिबत के लिए समाज से भी नाराजगी मोल लेनी होगी।

हालांकि आरक्षित सीटों से लड़ने वाले भाजपाई यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि चुनावी जीत में अपने समाज से ज्यादा दूसरे समाज के वोट से ही वे चुनाव जीतते हैं इसलिए बलौदाबार हिंसा को लेकर समाज के बेगुनाहो की पुलिसिया प्रताड़ना पर भी चुप्पी रही।वैसे भी इस तरह की नाराजगी की परवाह भाजपा से जुड़े नेता नहीं करते।

लेकिन दुविधा यह नहीं है कि समाज के लोग नाराज होंगे तो क्या होगा, दुविधा तो यह है कि  क्षेत्र के लोगों को अब मिलने के लिए नया रायपुर तक आना होगा। 

ऐसे में सतनाम सदन कैसे और कब छोड़ा जाए या नहीं छोड़ा जाए। दरअसल नई राजधानी में मंत्रियों के लिए बंगला तैयार हो चुका है और द‌यालदास बघेल के नाम एक बंगला आबंटित भी किया जा चुका है। बंगले के रखरखाव पर खर्च भी हो रहा है ऐसे में उन पर सतनाम सदन छोड्‌ने का दबाव भी बढ़‌ने लगा है।

एक तरफ नये बंगले में जाने का मोह तो दुसरी तरफ जनता से कटने का डर ? अब इस दुविधा से मुक्ति का मार्ग कोई कैसे सुझा सकता है। क्योंकि वे यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि पार्टी का रवैया क्या होगा।

गुरुवार, 29 अगस्त 2024

मोदी का विकास , दरकता विश्वास

 मोदी का विकास

दरकता विश्वास


कंगना रानौत के मुताबिक इस देश को आजादी तब मिली जब नरेन्द्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने। और तब से जो विकास की नदियां इस देश में बहना शुरू हुआ है उसकी गाथा भी गजब है।

जीएसटी की विसंगतियां और पेट्रोल डीजल पर खून निचोड़ने वाला टैक्स, मित्र-प्रेम के चलते खाई बनती असमानता, इलेक्ट्रोलर बांड से वसूली, पीएम केवर फंड की लूट और नफरत के बाज़ार सज़ा कर वोट की फसल काटने के खेल के बीच विकास की चकाचौंध। 

क्या यह सब इस देश की सत्ता को तानाशाही के रास्ते नहीं ले जा रहा था। और उसकी पराकाष्ठा नान बायोलॉजिकल नहीं था।

लेकिन धर्म और स्वार्थ की पट्टी  बांधे लोग आज भी बेरोजगारी और मंहगाई के भीषण त्रासदी को नहीं समझ पा रहे हैं तो इसका परिणाम क्या भयावह नहीं होगा।

अपराध पर राजनैतिक  नफा नुक़सान का खेल नया नहीं है और राष्ट्रपति की भूमिका पर सवाल भी।

लेकिन यदि न खाऊंगा, न खाने दूँगा के जुमले में केवल विरोधियों को ही फंसाया जाए और ख़ुद वाशिंग मशीन बन जाये तो महाराष्ट्र के लोगों के लिए भगवान माने जाने वाले शिवाजी महाराज की प्रतिमा कहां टिक पायेगी। 

लेकिन दूसरों के पाप गिनाकर स्वयं के पाप को ढंकने की कोशिश को लोगों ने उज्जैन में भी देखा तो अयोध्या में, दिल्ली के प्रगति मैदान में देखा तो नये संसद भवन में टपकते पानी में भी ।

जो देख पा रहे हैं वे जाग चुके है और जिन्होंने धर्म और स्वार्थ की पट्टी बांध रखी है वे कंस और रावण की श्रेणी में स्वयं को खड़ा कर चुके हैं। क्योंकि राम और कृष्ण ही नहीं रावण और कंस भी हिन्दू थे।

कर्म का फल एक न एक दिन मिलता है। 

ऐसे में यदि 240 के संकेत समझ में न आये ।  हम बंटेगे तो कटेंगे और असम में क़ब्ज़ा नहीं करने दूंगा के नफ़रती बोल 440 का झटका जरूर देगा।

ऐसे में राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता का असर न केवल स्मृति ईरानी  के अलावा कई विरोधियों में दिखाई देगा तो मोदी की बिगड़ती छवि से संघ प्रमुख मोहन भागवत ही नहीं चीन और अमेरिका भी चिंतित होंगे।

बुधवार, 28 अगस्त 2024

दुविधा के दो घंटे मचता रहा हडकम्प...

 दुविधा के दो घंटे मचता रहा हडकम्प...

बिलासपुर कमिश्नरी प्रभारी के हवाले


छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण संभागों में से एक बिलासपुर संभाग अब प्रभारी कमिश्नर के हवाले कर दिया गया है। रायपुर के कमिश्नर महादेव कावरे के पास यह अतिरिक्त प्रभार आया है तो यह कावरे की काबिलियत है, वरना रिमोट से चलने के आरोप से जूझ  रहे विष्णुदेव साय सरकार के सामने यह स्थिति कभी पैदा नहीं होती।

कहा जाता है कि बिलासपुर के एक दबंग नेता ने जब विछले हफ्ते सीधे मुख्यमंत्री से मिलकर कहा था कि नीलम नामदेव एक्का नहीं चलेगा तभी से उसकी बिलासपुर से छुट्टी तय हो चुकी थी, अब लोग सोच रहे होंगे कि आखिर कमिश्नर इतना प्रभावशाली पद कब से हो गया कि जन नेता उसके रहने या नहीं रहने को लेकर चिंता करने लगे। लेकिन जो लोग जमीन के कारोबार में है उनके लिए कमिश्नर क्या मायने रखता है ये वहीं जानते हैं। आम आदमी के लिए भले ही कमिश्नर का कोई मतलब न हो।

तो इस तय छुट्टी के तहत हफ्ते भर में यह तय कर दिया गया कि नीलम की जगह जनक पाठक को बिठाया जाये। कहते हैं जनक पाठक के नाम पर बिलासपुर के इस नेता ने सहमति दे दी तो आदेश जारी करने का फरमान सुना दिया गया ।

लेकिन जैसे ही आदेश जारी हुआ, रायगढ़ में हड्‌कंप मच गया और धनधनाते मोबाईल की घंटियों के बीच फरमान आया। जनक पाठक यही अच्छा काम कर रहे हैं, उनके काम से धन-धान्य की कोई कमी नहीं हो रही है। पार्टी को हो नहीं पार्टी से जुड़े लोगों का भी मुनाफ़ा बढ़ रहा है। कमिश्नरी बिल्कुल भी नहीं भेजा जाये ।

सुपर सीएम की तर्ज पर आये इस फ़रमान से मंत्रालय में हड़कम्प मच गया । नीलम को  वापस भेजा नहीं जा सकता था, जनक को भेजना नहीं है तो बिलासपुर के राजस्व मामले को निपटराने में महादेव कावरे की काबिलियत पर किसी को शंका होनी नहीं चाहिए तो फैसला आ गया।

मंगलवार, 27 अगस्त 2024

प्रतिशोध की राजनीति का पारदर्शी रुप...

 प्रतिशोध की राजनीति का पारदर्शी रुप...


दिल्ली शराब घोटाले में गिरफ्तार भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को भी जमानत मिल गई। इससे पहले मनीष सिसोदिया की भी जमानत हो गई थी। और कहा जा है कि अरविन्द केजरीवाल भी जल्द जेल से बाहर आ जायेंगे। 

के. कविता ने जेल से बाहर आते ही कहा  'हम लड़ेंगे और ख़ुद को निर्दोष साबित करेंगे।

दिल्ली शराब घोटाला क्या आम आदमी पार्टी को समाप्त करने की राजनीति का केवल टूल है? क्या केजीवाल की राजनीति के आगे नरेंद्र मोदी की गढ़ी गई छवि का कोई मतलब नहीं है।

हालांकि इस पूरे मामले को समझना इतना आसान नहीं है क्योंकि प्रतिशोध की इस राजनीति ने साम दाम दंड भेद को  जिस कुचक के साथ चक्रव्यूह का रूप दिया है उससे कोई नहीं बव सकता।

दरअसल चक्रव्यूह रचने का एक ही मतलब है प्रतिद्वंदियों की हत्या।अर्जुन जानते थे चक्रव्यूह तोड़‌ना लेकिन अपने प्रिय पुत्र को भी नहीं बचा पाये।

दिल्ली शराब घोटाले को लेकर जो कहानी बनाई जा रही है उसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है - 

अचानक एक दिन पुलिस आपके दरवाजे पहुंचती है और आपको साल भर पहले हुई किसी लूट की घटना में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है। आप इंकार करते हैं लेकिन वह नहीं सुनती । आपके ज्यादा जिद करने पर वह उस सीसीटीवी फुटेज की ओर इशारा कर देती है कि देखिये इस रास्ते से आपका अक्सर आना जाना रहा है। और इसलिए लूट आपने ही की है। आपको अदालत में घसीट लिया जाता है।

अदालत में आत्मविश्वास से लबरेज पुलिम कहती है कि हमारे पास यह मानने का ठोस कारण है कि इस व्यक्ति ने ही लूट की है।

पुलिस आपके तार्किक रूप से सबूत दिखाने के सवाल पर कहती है , लूटने का सबूत नहीं है क्योंकि सबूत नष्ट कर दिया गया है लेकिन हम सबूत जुटा लेंगे।

कितने समय तक के सवाल पर पुलिस कहती है, जितना समय हमे चाहिए , हम समय सीमा कैसे बता सकते है।इन्हें जमानत नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि ये ब्यक्ति गवाह को प्रभावित कर सकता है। 

हालांकि ऐसा करने के लिए आपके पास साल भर का समय था। लेकिन पुलिस अपना कुतर्क जारी रखते हुए दोहराती है आप जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। जबकि आप पुलिस के जांच में सहयोग की बात करते हुए कहते भी है कि पुलिस के हर सवाल का जवाब तो दे रहा हूँ।

पुलिम झल्ला जाती है और कहती है कि बस !आप गुनाह कबूल कर लो।यही सहयोग चाहते हैं।

आप अदालत में चिखते हैं यह क्या बकवास है, मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं, कोई बरामद‌गी नही,अपराध स्थल का पता नहीं लेकिन जांच के नाम पर जेल में सड़ा‌या जा रहा है, जमानत नहीं दी जा रही है। जिस गवाह  की गवाही पर मुझे गिरफ्तार किया गया है वह पुलिस के सामने दर्जन भर गवाही दे चुका है और आखरी गवाही में मेरा नाम लिया है, जबकि वह गवाह खुद आरोपी है ।

अदालत इस बकवास को सुनने के बाद जमानत दे देता है।

हालांकि पुलिम यह सब पहले भी करते आई है लेकिन राजनैतिक प्रतिद्वंदिता में यह खेल हस दौर में जिस पैमाने पर हुआ है वह हैरान और परेशान करता है।

क्या यह कहानी किसी से मेल खाती है, एक बार ठिठक कर सोचियेगा…।

सोमवार, 26 अगस्त 2024

गये थे हरिभजन को वोटन लगे कपास…

 गये थे हरिभजन को

वोटन लगे कपास…


यह तो गये थे हरिभजन को वोटन लगे कपास की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना मुख्यमंत्री बनकर छत्तीसगढ़ को भ्रष्टाचार मुक्त करने का दावा करने वाले उपमुख्यमंत्री अरुण साव के विभाग में भ्रष्टाचार की नदियां नहीं बहती। और न ही बटोर लेने का खेल इस पैमाने पर होता। 

हालत यह है कि अब प्रभार वाद का नया खेल भी शुरू हो गया है सीनियर अफसरों को किनारे करके  जूनियरों को प्रभार देने के इस खेल में  लेन-देन की जो खबरें आ रही है वह हैरान कर देने वाला है तो जूनियर - सीनियर की लड़ाई ने कामकाज को भी बुरी तरह प्रभावित किया है।

कहा जाता है कि उपमुख्यमंत्री साव ने मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की कमी को अपने विभाग में धौंस जमाकर पूरी कर ली है। नगरीय निकायों में मनमाने ढंग से संविदा नियुक्ति के बाद जल संसाधन और पीएचई में प्रभारवाद का खेल कम चर्चा में नहीं है।

वैसे भी जल जीवन मिशन को कबाड़ा करने का आरोप तो विधानसभा तक में सुर्ख़ियाँ बिखेर चुका है और कहा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की हस महत्वाकांक्षी योजना का सबसे ज्यादा कबाड़ा तो धमतरी, बिलासपुर और महासमुंद जिले में निकल रहा है, जहाँ इंजिनियरों और ठेकेदारों की मिलीभगत से निकल रहा मलाई सीधे बंगले तक पहुंच रहा है।

सत्ता मिलते ही संघ का संस्कार किस तरह सिर चढ़ कर बोलता है यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन जो लोग अरुण साव के क्रियाकलापों को देख समझ रहे हैं वे भी हैरान है।

इधर जल जीवन मिशन के बजट के बंदर बाँट को लेकर खेल नया नहीं है। इस लंबे चौड़े बजट के चक्कर में भूपेश बघेल और रुद्र गुरु   की लड़ाई अभी लोग भूले नहीं है लेकिन साव के साथ अभी यह स्थति पैदा नहीं हुई है लेकिन यह स्थिति नहीं पैदा होगी कहना मुश्किल है।

कहा जाता है कि धमतरी, महासमुंद और बलौदाबाजार में चल रहे गोलमाल और  छोटे ठेकेदारों की करतूत को लेकर चर्चा अब मुख्यमंत्री तक जा पहुंचा है।

रविवार, 25 अगस्त 2024

ठन गई कौशिक और चंद्राकर के बीच...

 ठन गई कौशिक और चंद्राकर के बीच...


यह तो सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना भारतीय जनता पार्टी के इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच हस कदर जंग नहीं होती कि शिकायत मुख्यमंत्री तक जा पहुंचे।

दरअसल धरमलाल कौशिक और अजय चंद्राकर दोनों ही मंत्री बनने के कतार में है। रमन सिंह ने धमलाल कौशिक को विधानसभा का अध्यक्ष बनवा कर अजय चंद्राकर की कुर्मी वाद की राजनीति पर पहले ही डेंट लगा चुके है तो अजय चंद्राकर को भरोसा है कि लोकसभा वार मंत्री बनाने की रणनीति में वे महासमुद्र के खाली पड़े मंत्री पद पर आसीन हो जायेंगे। 

ऐसे में चर्चा है कि दोनों हो नेताओ का रूतबा किसी मंत्री से कम नहीं है। कौशिक का तो अपने क्षेत्र के लोगों से बातचीत का आडियों तक वायरल हो चुका है तो अजय चन्द्राकर की जुबान को लेकर भी चर्चा पहले से गरम है।

कहा जाता है कि दोनों के बीच चल रहे कुर्मीवाद के इस जंग के बीच अब नया मामला आ गया है। सप्लायर का…।

और सप्लायर भी ऐसा वैसा नहीं है, सप्लायर की करतूत से पूरा प्रदेश वाकिक है। 

चर्चा है कि सत्ता मिलते हीं अपने अपने सप्लायर को काम दिलाने के फेर में वैसे तो कई भाजपाई उलझे हुए हैं, लेकिन यहां तो मामला हसे छोड़कर किसी को भी काम देने का है।

अब जब विवाद मुख्ययमंत्री तक जा पहुंचा है तो इसका परिणाम क्या होगा कहना मुश्किल है क्योंकि वहाँ भी तो कई घाघ बैठे हैं और जब मामला परसेंटेज का हो तो फिर इस बात का मतलब कहाँ रह जाता है कि कौन कितना चूना लगाने में सक्षम है।

बहरहाल यह लड़‌ाई अब कुर्मी राजनीति में प्रभाव को लेकर मी चल रहा है ऐसे में राजस्व के साथ खेल खेल रहे टंकराम की कहानी एक अलग ही रूप ले रहा है।

शनिवार, 24 अगस्त 2024

ओपीएस - एनपीएस - यूपीएस के बाद क्या ...

 ओपीएस - एनपीएस - यूपीएस के बाद क्या ...


एक बार फिर सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन स्कीम लागू करने की घोषणा कर दी गई है। लेकिन ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग पर अड़े कर्मचारियों का ग़ुस्सा इससे शांत नहीं हो रहा  है, वे  इस नये पेशन स्कीम यानी यू पी एस को अपनाने तैयार नहीं हैं।

दरअसल ओपीएस का मामला इतना बड़ा हो गया कि वह चुनाव को प्रभावित करने लगा है और जब अब हरियाणा - जम्मूकश्मीर के बाद महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसमा का चुनाव है तो मोदी सरकार ने यूपीएस स्कीम लांच कर कर्मचारियों के ग़ुस्से पर पानी डालने की कोशिश कर रही है। लेकिन लगता है कि इससे बात नहीं बनने वाली है कर्मचारी संगठनों ने अपनी ओपीएस की माँग को दोहराते हुए नये सिरे से आन्दोलन की रूपरेखा बनाने की घोषणा कर दी है।

असल में एन पी एस को लागू करने का काम भारतीय जनता पार्टी की सरकार के पूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में शुरू किया गया था, इसलिए कर्मचारियों का ग़ुस्सा बीजेपी पर फूटने लगा है। और मोदी सरकार जानती है कि यदि कर्मचारियों को नहीं मनाया गया तो जैसे जैसे आन्दोलन तेज होगा, बीजेपी का चुनाव जीतना मुश्किल होता चला जायेगा।

इस स्कीम के लागू होते ही कर्मचारियों के पास विकल्प चुनने का अवसर तो बढ़ गया है लेकिन वोट की राजनीति के चलते जिस तरह से सरकार नई-नई पेंशन स्कीम ला रही है क्या आने वाले दिनों में कोई और स्कीम लाई जायेगी।

इस नई पेंशन स्कीम के तहत केंद्रीय कर्मचारियों के अंतिम वेतन के 40 से 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन की गारंटी होगी. आसान भाषा में कहें तो, यदि आपका 50,000 रुपये महीने के अंतिम वेतन पर रिटायर होते हैं तो, आपको 20 से 25 हजार रुपये प्रति महीने पेंशन के रूप में दिया जाएगा. हालांकि कुल सेवा का समय और पेंशन कोष से आपके द्वारा किसी भी प्रकार की निकासी का समायोजन किया जाएगा. इस पेंशन गारंटी को पूरा करने के लिए पेंशन कोष में किसी भी कमी को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के बजट से पूरा किया जाएगा. 

दावा किया जा रहा है कि अगर राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली को लागू किया जाता है तो 1 जनवरी साल 2004 से नेशनल पेंशन स्कीम में रजिस्ट्रर्ड कें 87 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारियों को इसका फायदा मिलेगा. वित्त मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, डीए दरों में बढ़ोतरी के साथ यह राशि बढ़ती रहती है. मंत्रालय ने कहा था कि ओपीएस वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं है क्योंकि यह अंशदायी नहीं है और सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता रहता है. 

सत्ता के नर‌पिशाचों की हवस...

 सत्ता के नर‌पिशाचों की हवस... 


दिल्ली की निर्भया से लेकर उत्तराखंड की अंकिता भंडारी,  कुछ भी तो नहीं बदला है। बल्कि कानून कड़े  करने की नौटंकी और राजनैतिक नफा-नुक़सान  वाला प्रदर्शन नया जुड़ गया है। 

ऐसे में छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में बलात्कारियों के साथ सत्ता का गठजोड़ एक वीभत्स चेहरा  के रूप सामने आकर छाती ठोंककर खड़ा होने लगा है। राजनैतिक दलों की बेशर्मी को उजागर करती घटनाएं क्या इस शांत प्रदेश को उद्देलित नहीं करती ।

ऐसा भी नहीं है कि रायगढ़ और कांकेर में हुए गैंगरेप पर जो मीडिया आज खामोश है, पहले भी ऐसा ही था । तब मीडिया ईट पर ईट बजा देता था और न तो  राजनैतिक दलों की और न ही उनके नेताओं की हिम्मत पड़ती कि वह किसी यौन शोषण के किसी छिछोरे  के साथ खड़ा  हो सके ।

लेकिन राज्य बनने के बाद सत्ता ने जिस तरह से मीडिया को अपने ईशारे पर नचाना शुरु किया है उसके बाद ऐसे छिछोरों के साथ न केवल नेता बल्कि समूची पार्टी खड़ी हो जाती है।

रायगढ़ के भाजपा जिलाध्यक्ष अग्रवाल की करतूत पर तो उसे हटाने की बजाय समू‌ची पार्टी का इस कदर संरक्षण में खड़ा रहा कि बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी गई।

कांकेर के बाहुचर्चित घटना के आरोपी को तो सांसद की रिकिट तक दे दी गई।

और औद्योगिक नगरी के विमला रेप कांड का कथित आरोपी सत्ता तक जा पहुंचा है तो फिर हिमशिखर गुप्ता से लेकर कितने ही नाम बरबस ही याद आ जाते हैं जो सत्ता और नेताओं के साये तले अपनी हवस के लिए नरपिशाच से कम नहीं है।

क्या एक बार फिर उन घटनाँओं को सामने लाया जाना चाहिए जिसने आदोलन की शक्ल लेकर समूचे छत्तीसगढ़ में हलचल मचा दी थी।

हमने तय किया है कि अब इतिहास के पन्नों को कुरेद कर उन नरपिशाचों की करतूत को लोगों तक लाने की जो शायद आम लोगों को यह से सोचने के लिए मजबूर कर दे कि राजनीति में हवस के नरपिशाचों के लिए कोई जगह नहीं है और राजनैतिक दल भी ऐसे लोगों से ही दूरी बना लें।

याद कीजिए 80 के दशक की नह श्वेता हत्याकांड जिसने समूचे छत्तीसगढ़ में अपने विरोध प्रदर्शन से हलचल मचा दी थी, और पुलिस की वह भूमिका जिसने आनन फानन में किसी को भी पकड़ लेने की पटकथा लिखी थी । इस घटना में शामिल डाक्टरी की पढ़ाई करने वालों को बचाने की भी चर्चा रही। क्या है यह श्वेता रेप हत्याकांड, पूरे मामले को  एक बार किए आपकी आँखों के सामने लाने की कोशिश होगी। विमला रेप कांड हो या हो या कांकेर रायगढ़ हो या छत्तीसगढ़ के किसी भी हिस्से का रेप कांड  सिलसिलेवार प्रस्तुत करने की कोशिश होगी।

किस किस पाटी के कौन कौन से नेता या फिर संभ्रात परिवारों के रईसज़ादे ? सब कुछ आपने सामने लाने की कोशिश... (शीघ्र ही)

गुरुवार, 22 अगस्त 2024

हमने मारी औरतें…

 हमने मारी औरतें....


पिछले दस दिनों से देश का प्रायः हर राज्य औरतों के बलात्कार की घटना से स्तब्ध है । लगातार हो रही अपराधों में सबसे विभत्स अपराध को लेकर बहस भी हो रही है कि इस बढ़ते अपराध लिए कौन दोषी है, इसका कारण  क्या है।जबकि ऐसे अपराधों पर सज़ा के कानून भी कड़े बना दिये गए है फिर भी अपराध पर अंकुश क्यों नहीं लग रहा है।

हर रोज 87 बलात्कार ! क्या किसी  सभ्य समाज को विचलित नहीं करते। चर्चा में कहा जा रहा है मोबाईल और बाजारवाद ही इसका प्रमुख कारण है लेकिन कलकत्ता जैसे महानगर से लेकर सुदूर बस्तर जैसे इलाके में हो रही घटनाओं की असली वजह से कौन भाग रहा है।

सबके अपने अपने विचार और सुझाव है लेकिन किसी ने राजनैतिक दलो पर ऊँगली उठाने की हिम्मत नहीं की जो इन घटनाओं के बढ़ने में सबसे बड़े दोषी के रूप में दिखाई दे रहे हैं।

राजनीति का अपराधीकरण को लेकर अब कोई बहस भी नहीं कहना चाहता। तब बलात्कारियों के लिए संरक्षक बन चुके इन संगठित गिरोह पर उंगली उठाना आसान भी नहीं है।

बेटी बचाओ - बेटी पढ़‌ाओ के नारे जितने सुन्दर लगते है, नारा लगाने वालों की करतूत उतनी ही भयावह हो चली है। बेशर्मी की पराकाष्ठा तक पहुंच चुके लोग अब बलात्कार को भी राजनैतिक नफ़ा-नुक़सान के तराजू से तौलने लगे हैं।

शायद यही वजह है कि कल तक जो राजनैतिक दल बलात्कारियों को टिकिट देने से या पार्टी संगठन में बड़े पद देने से कतराती थी वे अब खुले आम बलात्कारियों के संरक्षक बने हुए है।

जैसी राजा-वैसी प्रजा कहना बेहद कठोर हो जायेगा लेकिन सन्च तो यही है कि बलात्कार के आरोपियों को टिकिट देकर, या पद देने के बाद भी लोगों की खामोशी से राजनैतिक दलों के हौसले इतने बुलंद हो गये कि इन दलों  ने बलात्कारियों का पक्ष लेना, स्वागत करना और रिहाई का इंतजाम करने जैसे फैसले बेशर्मी से करने लगे।

कांकेर में कल हुए गैंगरेप के बाद किसी ने सोशल मीडिया में अपना गुस्सा उतारते हुए लिख मारा कि जब यौन शोषण के आरोप के बाद बीजेपी  ने सांसद की टिकिट दे दी और जनता ने जीता दिया तो फिर झेलो...।

ग़ुस्सा कितना जायज है? लेकिन कठुआ के बलात्कारियों का स्वागत करने की बेशर्मी पर चुप्पी  और बिल्किस बानों के बलात्कारियों की समय पूर्व रिहाई और  स्वागत  पर लोगों की ख़ामोशी क्या विचलित नहीं करता। या देश का गौरव बढ़ाने वाली महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह को सत्ता संरक्षण पर लोगों की चुप्पी ? क्या राजनैतिक दलों के हौसले बुलंद नहीं करता ?

राजनैतिक दलों के हौसले कितने बुलंद है, 'सत्ता का हौसला किस तरह उफान मारता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो बलात्कारी और छिछोरे राम-रहीम का हर चुनाव के पहले पैरोल पर रिहा हो जाना है। अब तक इस बलात्कारी को 12 बार से अधिक पैरोल मिल चुका है।

सत्ता के इस कृत्य पर किसने विरोध जताया। तब कदम, कदम पर राज्य दर राज्य आ  रहे बलात्कारियों के चेहरे और बढ़‌ती घटनाए क्या यह तय नहीं करती कि हम सबने मिलकर औरतों  को मारा है और रोज मार रहे हैं...।

बुधवार, 21 अगस्त 2024

चौधरी को छवि की चिंता...

 चौधरी को छवि की चिंता...


यह तो बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना अमित शाह जैसे कद्‌दावर नेता के खासमखास और प्रदेश सरकार के दमदार मंत्री ओपी चौधरी को अपनी छवि सुधारने के लिए इतनी कवायद नहीं करनी पड़ती।

कहा जा रहा है कि ३३ हजार शिक्षकों की भर्ती वाले मामले में विडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया में जिस तरह से ओपी चौधरी के ख़िलाफ़ बेरोजगारों ने मोर्चा खोला है उससे ओपी चौधरी अपनी छवि को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गए है, हालाँकि कलेक्टरी के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप भी उन पर कम नहीं है, लेकिन अमित शाह के वरदहस्त में सुपर सीएम की कथित पदवी से उत्साहित ओपी चौधरी ने जिए ताह से सत्ता और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत की थी वह उतनी ही तेजी से फिसलता जा रहा है।

और शायद यही वजह है कि उन्होंने अब अपनी छवि नये सिरे से गढ़ने की कवायद करने में  लग गये  हैं। दरअसल ओपी चौधरी यह बात भूल गये हैं कि एक बार छवि बिगड़ गई तो उसे सुधारना बड़ा टेढ़ा काम है लेकिन नौकरशाही का रुतबा उन्हें हार नहीं मानने दे रहा है, ऐसे में चर्चा  इस बात की भी है कि नेशनल प्रोपेगेंडा ग्रुप भोपाल वाले ने ठेका लिया कि वे हर हप्ते अपने सबसे बड़े पोर्टल में उनकी छवि सुधारेंगे तो दर्जन भर पोर्टल को भी छवि सुधारने की जिम्मेदारी तो दे दी गई लेकिन छवि है कि...!

राजीव गांधी को क्यों याद किया जाना चाहिए...

 राजीव गांधी को क्यों याद किया जाना चाहिए...


युवा प्रधानमंत्री, मिस्टर क्लीन के रूप में चर्चित रहे इंदिरा के बेटे राजीव गांधी की असमय मृत्यु ने देश को नई आधु‌निक सोच के साथ काम करने वाले को ही नहीं खोया था, बल्कि  उस  नये भारत की उम्मीद की नींव को भी धराशाही कर दिया था, जो विश्व में युवाओं ने जो सपने पाल रखे थे।

समूचा देश २० अगस्त को जब उन्हें याद कर रहा था तब मेरे ज़ेहन में रायपुर के उस छोटे से एयरपोर्ट में उनकी आमद  की धुंधली  तस्वीर में खो गया ।

हम रिपोर्टरों का समूह एक ही जगह पर खड़े थे और राजीव हम सबके बेहद नज़दीक। फोटोग्राफरों गोकूल सोनी - विनय शर्मा की सजग आँखें राजीव की एक एक हरकत पर

कैमरे को क्लीक कर रही थी तो तमाम कांग्रेसियों की नजर टकटकी लगाए राजीव को देख रही थी। हाथ हिलाते पत्रकारों के सामने से गुजरते हुए एक आवाज ने सबका ध्यान अपनी खीच लिया 

राजीव....

यही कहा था नेता शिवेन्द्र बहादूर सिंह ने। राजीव के लिए यह संबोधन जीतना सहज़ रहा होगा मौजूद लोगों के लिए उतना ही असहज । इस घटना की चर्चा अब भी होती है। राजीव और शिवेंद्र दून स्कूल के सहपाठी थे।

लेकिन वे जितने सहज और सरल थे उतने ही संवेदनशील और बेबाक ।

गांवों की बदहाली उन्हें भीतर तक सालती रही होगी इसलिए उन्होंने जब कहा कि केंद्र सरकार एक रुपये भेजतीं है वह गाँव तक पहुंचते पहुंचते 25 पैसे रह जाते है तब विपक्ष ने राजीव के इस कथन को कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार के रूप में प्रस्तुत प्रस्तुत करने लगे और आज भी गाहे-बगाहे कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार  के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। 

राजनैतिक चालबाज़ी से दूर 1984 के दंगों पर उनकी टिप्पणी को  भी विपक्ष  ने कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो....! लेकिन यह बात उन्होंने इंदिरा की जयंती समारोह में तब कही थी जब दंगे समाप्त हो चुके थे।

श्रीलंका में शांति  सेना भेजने की बात हो या उन पर हमला ।' कोई कैसे भूल सकता है।

इस देश को राजीव को क्यो याद कर नमन करना चाहिए यह बताने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि उनकी हत्या की खबर जब लोगों तक पहुंची तब तक शाम का अंधेरा गहरा चुका था, दोपहर की इस घटना की खबर जब प्रेस तक पहुंची तो रोजमर्रा के कामकाज ऊफान पर था।

खट् खट् करते टेली प्रिंटर से आई इस खबर को देखकर सहसा किसी को भरोसा नहीं हो रहा था । पर नियति ने अपनी इबादत लिख दिया था । तब मैं दैनिक स्वदेश में रिपोर्टर की हैसियत से काम कर रहा था।

फ़्रंट पेज प्रशांत शर्मा देखते थे। उन्होंने ही यह खबर पहले दी थी, और इसके बाद आनन फानन में बुलेटिन निकाला गया था ।

राजीन के इस असमय चले जाने को लेकर देश भर से शोक संवेदनाओ ने टेली प्रिंटर की स्पीड बड़ा दी थी और  छोड़ गई राजीव की वह यादें जिसके लिए यह देश उन्हें हमेशा याद रखेगा।

राजीव ने इस देश को क्या दिया इसका सबसे अच्छा जवाब यह है कि आज जो दूरसंचार, डिजिटल हेडिया, सोशल मीडिया जो  कुछ भी दिखाई दे रहा है, उसके पीछे का मूल विचार राजीव का ही था। उन्होंने दूरसंचार क्रांति लाई। सी डॉट  से लेकर एमटीएनएल जैसी  कंपनियां उन्ही की देन है।

90 के दशक में जब लोग बेरोजगारी से जूझ रहे थे तब लाखों लोगों को रोजगार देने वाला एसटीडी पीसीओ बूथ उनकी ही देन है। स्वरोजगार का वर्तमान मॉडल जनसेवा केंद्र की नींव भी राजीव की सोच है।भारत का युवा आईटी सेक्टर में जो झंडे गाड़ रहा है उसके पीछे एक छोटी उम्र के प्रधानमंत्री की बड़ी सोच है । राजीव गांधी ने देश में कंप्यूटर क्रांति लाने का काम किया राजीव विज्ञान और तकनीक की ताकत जानते थे उन्होंने सस्ते कंप्यूटर के लिए इंपोर्ट ड्यूटी कम कर दी थी . रेलवे में कम्प्यूटरों का इस्तेमाल करके टिकीटिंग भी शुरू करवाई. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 1970 में देश में पब्लिक डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत हो गई थी लेकिन आईबीएम के साथ देश मे कम्प्यूटर के व्यवसायिक उपयोग को गति राजीव के प्रयासों से ही मिली थी आज अगर भारत आईटी सेक्टर का सुपर पावर है तो उसकी एक वजह राजीव की सोच है।

राजीव गांधी को 21 वीं सदी के महान लोकतंत्र का सबसे बडा कैटेलिस्ट माना जाना चाहिए।  राजीव सरकार ने 1989 में संविधान के 61 वें संशोधन के जरिए वोट देने की उम्रसीमा 21 से घटाकर 18 वर्ष कर इस लोकतंत्र की जवान कर दिया, तो पंचायत राज अधिनियम लाकर ग्रामीण भारत को शहर के बराबर शक्तिशाली बनाया।

राजीव गांधी ने शिक्षा क्षेत्र में क्रांति की पहल करते हुए नवोदय विद्यालयों की शुरुआत की और गाँव के बच्चों को भी उत्कृष्ट शिक्षा मिले इसलिए गाँव -गाँव मे नवोदय विद्यालय खोलकर बच्चों को कक्षा 6 से 12 वीं तक की मुफ्त शिक्षा और हॉस्टल में रहने की सुविधा दी और आज नवोदय विद्यालय के विद्यार्थी पूरे देश विदेश मैं देश का झंडा ऊंचा कर रहे है

ये है इंदिरा के बेटे की सोच जिसकी वजह से उन्हें देश हमेशा याद रखेगा।

मंगलवार, 20 अगस्त 2024

अमित शाह का टेंशन और हिदुत्व का खेल...

 अमित शाह का टेंशन और हिदुत्व का खेल...


इधर देश में बलात्कारियों की करतू‌तों को लेकर हंगामा मचा हुआ है, मणिपुर जल रहा जम्मू तक में आकर आतंकवादी अपनी करतू‌तों को अंजाम दे रहे हैं लेकिन देश के गृह मंत्री अमित शाह को बंग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं की घटती संख्या को लेकर टेंशन है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिंदुओं की  कथित दुर्दशा और कम होती जनसंख्या का सच क्या है। क्या  यह पूरा खेल भारत में हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण का खेल है। 

क्या लोगों को सच से दूर रखकर एक ख़ास वर्ग के प्रति नफरत फैलाकर अपनी राजनीति साधाने का प्रयास हर चुनाव के पहले किया जाता है।

ये सच है कि 1941 की जनगणना के मुताबिक वेस्ट पाकिस्तान (वर्तमान) में 14 फीसदी हिदू थे और ईस्ट पाकिस्तान (बांग्लादेश) में 26 फीसदी हिन्दू थे।

ऐसे में पाकिस्तान और बाग्लादेश मैं वर्तमान में हितुओं की संख्या  को लेकर बवाल मचाया जाता है कि देखिये पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिदुओं को काट डाला गया।

बहरहाल पाकिस्तान और बाग्लादेश में हिंदुओं की संख्या घटने के तीन प्रमुख कारण है जिसमें से पहला कारण तो सिम्पल स्टेस्टिक्स है तो दूसरा कन्वर्जन जबकि तीसरा कारण

माइग्रेशन है। इन तीनों कारणों से पहले के कारण भी महत्वपूर्ण है जो हिंदुओं की आबादी कम होने की वजह है।

अब 1941 की जनसंध्या के आंकड़े से आगे आ जाइये 1947 में। और 1947 के विभाजन में 50 लाख हिन्दू और सिख वेस्ट पाकिस्तान से भारत आ गये तब 1951 की जन‌ग़णना में हिन्दुओं की संख्या दो फीसदी रह गई। तब से लेकर आजतक उनकी जनसंख्या प्रतिशत में लगभग उतनी है बल्कि 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

ईस्ट पाकिस्तान से भी बंटवारे के दौरान यानी 1947 में हिंदुओं की जनसंख्या  26 से गिरकर 22 फ़ीसदी हो गई।

लेकिन 1970 में पाकिस्तानी सरकार ने तमाम बंगालियों पर अत्याचार किये । मार्शल लॉ लगाया। दो करोड़ हिंदू शरणार्थी भारत की शरण में आ पहुंचे। मुसलमान कहां जाते इसलिए वे वही रहे, वे वहीं मरते रहे, अत्याचार सहते रहे।

अब 7 करोड़ की जनसंख्या में दो करोड़ यदि भारत आ गए तो हिसाब लगा लिजिए कि बांग्लादेश में हिन्दु‌ओं की संख्या कितनी घटी। तब से आज तक ओवर ऑल हिदुओं की संख्या 9-10 फीसदी बची है जो आज भी उतनी ही हैं।

इसी 9-10 फ़ीसदी आंकड़े को पकड़‌कर गृह मंत्री अमित शाह कलह मचाये हुए हैं।

जनसंख्या  घटने का एक और कारण कन्वर्जन को लेकर जो हल्ला मचाया जाता है वह कन्वर्जन प्रासिक्यूशन वहां भी वैसा है जैसे इंडिया में।

ईज्ज़त नौकरी, न्याय  अधिकार को लेकर कन्वर्जन इंडिया में क्या कम हुए है।

जहां तक धर्म के आधार पर विभाजन की बात है तो यह बिल्कुल गलत है लेकिन अमित शाह फिर द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को मुस्लिम लीग के साथ तालमेल बिठानेवाले सावरकर को सर आँखों पर क्यों  बिठाते हैं?

हैरानी की बात तो यह है कि सारा सच इंटरनेट पर मौजूद होने के बाद भी यदि लोग़ राष्ट्रवाद के नाम पर परोसे जा रहे झूठ  पर आखें बंद किये हुए है तो फिर गलत लोगों को राज करने से कोई कैसे रोक सकता है!

सोमवार, 19 अगस्त 2024

अंधा बाँटे रेवड़ी...

 अंधा बाँटे रेवड़ी...


यह तो अंधा बाँटे रेवड़ी... की कहावत को ही चरितार्थ करता है, वरना खेल विभाग के द्वारा  खेल अलंकरण और पुरस्कार को लेकर इतना गोल माल नहीं होता, कहा जाता है कि अपने लोगों को उपकृत करने में लगी छत्तीसगढ़ की डबल इंजन सरकार के खेल मंत्री टंकराम वर्मा की इस टंकार से खिलाड़ियों में ग़ुस्सा भर गया है और वे इसे लेकर प्रधानमंत्री तक शिकायत करने लगे है।

पीएगिरी से मंत्री तक के सफ़र में खेल मेत्री के कारनामें की चर्चा नया नहीं है, कहा जाता है कि जब वे पीएगिरी कर रहे थे तब भी अपनी लाला वाले रोल से चर्चित थे। चर्चित तो वे अपने गृह जिले में खेलों की बदहाली को लेकर भी है लेकिन इस बार चर्चा खेल अलंकाण और खेल पुरस्कार को लेकर है।

भूपेश सरकार के दौरान इसके लिए तरस रहे खिलाड़ियों व खेल संगठनों की उम्मीद पर पानी तब फिरने लगा जब पुरस्कारों की सूची जारी हुई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अवॉर्ड के लिए खेल विभाग ने एक ऐसे खेल संघ को पात्रता दे दी, जिसे विभागीय मान्यता 7 जुलाई 2024 को दी गई। यहां बात नॉन ओलंपिक गेम किक बॉक्सिंग की हो रही है। जिस वर्ष में उपलब्धि के लिए खिलाड़ियों से आवेदन आमंत्रित किए गए हैं, उस वर्ष में तो किक बॉक्सिंग को विभागीय मान्यता मिली थी या नहीं, इस पर भी अब प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है। इस खेल में कोरबा की श्रेया शुक्ला और कृष्णकुमार डडसेना को वर्ष 2021- 22 एवं वर्ष 2022-23 में शहीद कौशल यादव पुरस्कार की पात्रता खेल विभाग की पुरस्कार समिति ने दी है। इसे लेकर अब खिलाड़ियों में चर्चा शुरू हो गई। इतना ही नहीं सीनियर वर्ग के शहीद राजीव पांडेय पुरस्कार के लिए ओलंपिक खेलों की सूची में वुशू को शामिल करके वेटलिफ्टिंग के पदक विजेता खिलाड़ी को दरकिनार कर दिया गया। वुशू में राजनांदगांव के डी. पार्थ को इसकी पात्रता दी गई है। वहीं सीनियर नेशनल वेटलिफ्टिंग के पदक विजेता रायपुर के विजय कुमार को इस अवॉर्ड की पात्रता से अलग कर दिया गया है। इसे लेकर वुशू के सीनियर खिलाड़ी प्रतीक सिंह ने कहा कि डी. पार्थ का सीनियर वर्ग में कोई पदक नहीं है, वह जूनियर वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भाग लिया था। इधर वेटलिफ्टर विजय कुमार ने वुशू को ओलंपिक गेम कैसे माना जा रहा है।

वर्ष 2022-23 के शहीद राजीव पांडेय पुरस्कार नियम में सात खिलाड़ियों को पुरस्कृत करने का प्रावधान है। लेकिन खेल विभाग द्वारा जारी सूची में केवल 6 खिलाड़ियों को ही इसकी पात्रता दी गई। इसमें ओलंपिक गेम से 4 खिलाड़ियों को शामिल किया गया, लेकिन नॉन ओलंपिक व पैरास्पोर्ट्स से 1-1 खिलाड़ी नामित किये गये।

वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक में इसे केवल प्रदर्शन के लिए रखा गया था। मेडल टेली में इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है। 

एक खिलाड़ी को रस्साकशी में दो पुरस्कार खेल विभाग की जारी सूची में टग ऑफ वार (रस्साकशी) की खिलाड़ी रायपुर की नेहा यादव को वर्ष 2021-22 के शहीद कौशल यादव पुरस्कार के लिए नामित किया गया है।

यही खिलाड़ी वर्ष 2021-22 के मुख्यमंत्री ट्रॉफी पुरस्कार के लिए नामित 10 खिलाड़ियों

के दल में भी शामिल है। इस प्रकार एक खिलाड़ी को एक ही वर्ष में दो अलग-अलग

पुरस्कार की पात्रता कैसे दी गई, इस पर भी आपत्ति दर्ज कराई जा रही है।

राज्य के लिए पदक विजेता राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों और उन्हें इसके लिए तैयार करने वाले प्रशिक्षकों के अधिकारिक रूप से जारी कर दी।


रविवार, 18 अगस्त 2024

उठो द्रोपदी...

 उठो द्रोपदी...



पिछले एक सप्ताह से अचानक सोशल मीडिया में उठो द्रौपदी... शास्त्र उठा लो, अब गोविन्द न आयेंगे की गूंज तेज होने लगी।

लेकिन क्या द्रोपदी के शस्त्र उठाने को यह समाज बर्दाश्त कर पायेगा?

इस दौर में शस्त्र उठाने वाले द्रौपदी को छिनाल कहने से क्या वे चुकेंगे?

याद किजिए जब विनेश फोगाट, साक्षी मलिक ने छोटे-छोटे बच्चियों की छाती पर हाथ धरने वाले के खिलाए जब शस्त्र उठाया था, तब क्या उन्हें छिनाल कहने वाले वहीं लोग नहीं थे जो अब उठो द्रोपदी.. का राग अलाप रहे हैं।

किस तरह से पूरी सरकार छिछोरा बृजभू‌षण शरण सिंह को बचाने कूद पड़ी थी।

कुलदीप सेंगर, चिन्म्यानंद और बृजभूषण शरण सिंह जैसे छिछोरों को भगवान की तरह जब तक पूजा जाता रहेगा,  क्या कोई द्रोपदी शस्त्र उठा पायेगी?

शस्त्र तो उस द्रौपदी ने भी उठाने की हिम्मत नहीं कि क्योंकि राजा धृतराष्ट्र था और भीष्म-द्रोणाचार्य की भूमिका दुर्योधन - दुसाशन की जय करने की थी।

अपराजेय निवेश के स्वदेश लौटने के बाद हुए स्वागत देख जिनकी  छाती में अब भी साँप लोट रहे हैं, वे भी द्रोपदी को शस्त्र उठाने का हुंकार भर रहे हैं। 

इन शस्त्र उठाने की हुंकार भरने वाले क्या अपने राजनैतिक दलों में मौजूद छिछोरों को पार्टी से हटाने की मांग कर पायेंगे।

शस्त्र द्रोपदी को नहीं अर्जुन को उठाना होगा, तभी धृतराष्ट्र के संरक्षण द्रोपदी को जंघा में बिठाने का दुस्साहस बंद होगा।

एक प्रदर्शन इन राजनैतिक दलों में मौजूद छिछोरों को पार्टी से निकाले जाने के खिलाफ भी होना चाहिए ।

शनिवार, 17 अगस्त 2024

बुरी तरह फँस गये विधायक...

 बुरी तरह फँस गये विधायक...


पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सबसे करीबी विधायक देवेंद्र यादव को छत्तीसगढ़ की पुलिस ने गिरफ़्तार कर ही लिया। उनकी गिरफ्तारी की आशंका तो उसी दिन जाहिर कर दी गई थी, जब डबल इंजन सरकार के तीन-तीन मंत्रियों ने बतौदाबाजार हिंसाकांड  के बाद कांग्रेस के नेताओ की तस्वीर  जारी करते हुए हिंसा फैलाने का आरोप लगाया था।

सतनामी समाज के जैतखंभ को काटे जाने के विरोध में बलौदाबाजार में समाज के प्रदर्शन के दौरान इस तरह लोग बेकाबू हो गये कि एसपी दफ़्तर। , कलेक्ट्रोरेट परिसर को फूंक दिया था। इसके बाद सरकार ने आनन फानन में बलौदाबाजार के कलेक्टर और एसपी को हटा दिया लेकिन जब मामला तूल पक‌ड़ने लगा तो एसपी - कलेक्टर को निलंबित करना पड़ा।

इसके बाद पुलिस ने प्रद‌र्शन में उपस्थित सतनामी समाज के नेताओकी गिर‌फ्तारी शुरु कर दी तो सर‌कार पर यह आरोप भी लगने लगा कि वह निर्दोष लोगों को न केवल गिरफ्तार कर रही है बल्कि मारपीट और  प्रताडित भी कर रही है।

प्रदर्शन में शामिल मिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव पर तीन-तीन मंत्रियों ने प्रेसवार्ता ले कर गंभीर आरोप लगाये थे और इसके बाद जब पुलिस ने देवेन्द्र यादव को पूछताछ के लिए बुलाया तभी से उन पर गिफ्तारी की तलवार लटकने लगी थी।

कल सुबह 6 बजे अचानक पुलिस देवेन्द्र यादव के घर पहुंच गई, और पुलिस के पहुंचने की खबर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बेज सहित बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता यादव के घर पहुंच गये । एक पुलिस अधिकारी ने इस बात की जानकारी दी। वहीं यादव ने भाजपा सरकार पर आगजनी मामले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को फंसाने का आरोप लगाया।बलौदाबाजार के पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल ने बताया कि यादव को दुर्ग जिले में उनके आवास से गिरफ्तार किया गया। पुलिस की कार्रवाई की खबर फैलने के बाद दुर्ग के भिलाई नगर इलाके में यादव के आवास के बाहर उनके कई समर्थक जमा हो गए और नारेबाजी करने लगे। पार्टी का प्रभावशाली युवा चेहरा यादव भिलाई नगर निर्वाचन क्षेत्र से दूसरी बार विधायक हैं।अग्रवाल ने बताया कि यादव को बलौदाबाजार आगजनी की घटना में कोतवाली पुलिस थाने में दर्ज मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है।

यह मामला भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 147 (दंगा करने की सजा), 186 (किसी लोक सेवक को अपने कर्तव्यों का पालन करने से स्वैच्छिक रूप से रोकना), 353 (लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), 307 (हत्या का प्रयास) और अन्य तथा सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 1984 के तहत दर्ज किया गया था।अग्रवाल ने बताया कि यादव को स्थानीय अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 20 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। सूत्रों के अनुसार, पुलिस ने यादव को बयान दर्ज करने के लिए कम से कम तीन बार बुलाया था, लेकिन उन्होंने सहयोग नहीं किया, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

बलौदाबाजार से पुलिस के जवान दुर्ग पुलिस के साथ सुबह करीब 7 बजे यादव के घर पहुंचे। खबर फैलते ही यादव के समर्थकों ने विधायक को बचाने की कोशिश की और नारे लगाए। एक अधिकारी ने बताया कि पुलिस शाम करीब 5 बजे यादव को अपने साथ ले जाने में कामयाब रही।

इस साल 15 और 16 मई की मध्य रात्रि को बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के गिरौदपुरी धाम में अमर गुफा के पास अज्ञात व्यक्तियों ने सतनामी समुदाय द्वारा पूजे जाने वाले पवित्र प्रतीक ‘जैतखाम’ (विजय स्तंभ) को तोड़ दिया था, जिसके बाद जून में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था।

10 जून को, बलौदाबाजार शहर में ‘विजय स्तंभ’ की कथित तोड़फोड़ के खिलाफ सतनामियों द्वारा विरोध प्रदर्शन के दौरान भीड़ ने एक सरकारी कार्यालय भवन और 150 से अधिक वाहनों में आग लगा दी, जिसके कारण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 लागू कर दी गई।

यादव सहित कांग्रेस नेताओं ने कथित तौर पर दशहरा मैदान में सतनामियों द्वारा आयोजित प्रदर्शन के दौरान एक सार्वजनिक बैठक में भाग लिया था। 10 जून की आगजनी के सिलसिले में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) और भीम “रेजिमेंट” के सदस्यों सहित लगभग 150 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।मध्यकालीन समाज सुधारक बाबा गुरु घासीदास द्वारा स्थापित प्रभावशाली सतनामी समुदाय, छत्तीसगढ़ में सबसे बड़े अनुसूचित जाति समूह का प्रतिनिधित्व करता है।

सत्तारूढ़ भाजपा की आलोचना करते हुए यादव ने कहा कि वह सरकार से नहीं डरते और जनता के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने भिलाई में कहा, “राज्य सरकार बलौदाबाजार आगजनी मामले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को फंसाने की कोशिश कर रही है। सतनामी समुदाय के युवाओं और निर्दोष लोगों के लिए आवाज उठाने पर सरकार ने मेरे खिलाफ कार्रवाई की। मैं सरकार से नहीं डरता और कानूनी लड़ाई लड़ रहूंगा।” यादव ने दावा किया कि वह पहले भी बलौदाबाजार पुलिस के समक्ष सम्मन मिलने पर उपस्थित हुए थे।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यादव की गिरफ्तारी को राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया और पुलिस से राजनीतिक दबाव में कार्रवाई नहीं करने को कहा।

बघेल ने आरोप लगाया, “पूरे घटनाक्रम में सरकार और पुलिस की भूमिका संदिग्ध है। भाजपा के किसी भी सदस्य से न तो पूछताछ की गई और न ही उन्हें गिरफ्तार किया गया, जबकि घटना में उसके पूर्व विधायक सनम जांगड़े की कथित भूमिका सामने आई थी।” सतनामी समुदाय के प्रदर्शन का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें यादव न तो मंच पर चढ़ते हैं और न ही वहां लंबे समय तक इंतजार करते हैं। उन्होंने कहा कि देवेंद्र यादव की गिरफ्तारी पूरी तरह से राजनीतिक द्वेष के कारण की गई है और हम इसका विरोध करते हैं।

बघेल ने कहा, “हम कानूनी सुझाव लेंगे और उसके अनुसार आगे की कार्रवाई तय करेंगे।” यादव, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान सामने आए कथित कोयला लेवी घोटाले के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय और राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो/आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज मामलों में भी आरोपी हैं