शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024

अम्बेडकर और आरएसएस

 अम्बेडकर और आरएसएस


इन दिनों पूरे देश में संविधान को लेकर चल रही बहस के बीच आरएसएस और बीजेपी में संविधान निर्माता अम्बेडकर से निकटता

दिखाने के लिए तरह तरह के तर्क प्रस्तुत किए जा रहे है, और इन तर्को की पुष्टि के लिए कांग्रेस से बाबा साहेब के मतभेद को बढ़ा चढ़ाकर पेश भी किया जा रहा है ताकि उस झूठ को सच साबित किया जा सके ।

जबकि बाबा साहेब ने अपनी किताब पाकिस्तान एंड पाकिस्तान ऑफ़ इंडिया में हिन्दूराष्ट्र को स्वतंत्रता, मानवता और बंधुत्व का दुश्मन बता चुके है। ऐसे में हिन्दूराष्ट्र की वकालत करने वाले मोहन भागवत और बीजेपी  का अम्बेडकर के प्रति प्रेम उमड़ना क्या दर्शाता है?

अम्बेडकर को लेकर निकटता दर्शाने की कोशिश को लेकर अम्बेडकरवादी दिलीप मण्डल का यह लेख सब कुछ स्पष्ट करता है, उनके द्वारा उठाये सवाल गंभीर है…

सबसे पहले जान लेते हैं कि आरएसएस डॉ. आंबेडकर के साथ अपने संबंधों को स्थापित करने के लिए कौन सी बातों को सामने रख रहा है.

आरएसएस का पूरा तर्क इन चार बिंदुओं पर खड़ा है-

1. बाबा साहेब का आरएसएस से कोई वैचारिक विरोध नहीं था. वे तो संघ के एक कार्यक्रम में भी आए थे.

2. बाबा साहेब के चुनाव में इलेक्शन एजेंट दत्तोपंत ठेंगड़ी थे, जो आरएसएस के नेता थे

3. ठेंगड़ी बाबा साहेब के संगठन शिड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के सेक्रेटरी थे.

4. बाबा साहेब ने भारतीय जनसंघ के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था.

ये चारों बातें अप्रामाणिक हैं. आरएसएस इन बातों के समर्थन में दत्तोपंत ठेंगड़ी की लिखी एक किताब और अपनी ही पत्रिका ऑर्गनाइजर के लेख आदि को प्रमाण के तौर पर पेश करता है, जिसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है.

इतिहास लेखन में स्रोत के चयन का निर्णायक महत्व है. स्रोत अगर गलत होंगे तो गलत बात स्थापित हो जाएगी.

इस बुनियादी सिद्धांत के आधार पर अगर आरएसएस की स्थापनाओं को देखें तो आप समझ पाएंगे कि आरएसएस की बातें क्यों अप्रामाणिक हैं. बाबा साहेब ने अपने तमाम लेख और भाषणों का ब्यौरा रखा था. वे पश्चिमी शिक्षा परंपरा में दीक्षित थे और वहां डॉक्युमेंटेशन का बहुत महत्व माना जाता है. बाबा साहेब धुरंधर लेखक थे. उनके रचना संग्रह का वजन ही कई किलो है. उनका सारा लेखन महाराष्ट्र सरकार और भारत सरकार ने प्रकाशित किया है. उनके जीवन काल और उनकी जीवन की घटनाओं और विचारों को समझने का सबसे प्रामाणिक स्रोत उनके लेख और भाषणों का संग्रह है, जिसे भारत सरकार ने डिजिटल रूप में भी प्रकाशित किया है.

आश्चर्यजनक है कि आरएसएस जब बाबा साहेब से अपनी नजदीकी दिखाता है तो स्रोत सामग्री के रूप में उसके पास डॉ. आंबेडकर के रचना संग्रह से कोई प्रमाण नहीं है.

बाबा साहेब के समय की घटनाओं का दूसरा प्रमाण उस समय के अखबार और पत्रिकाएं भी हो सकती हैं. मिसाल के तौर पर बाबा साहेब अगर संघ संस्थापक हेडगेवार से मिलते या संघ की शाखा देखने के लिए जाते तो ये दोनों अपने समय के इतने बड़े नेता थे कि उस समय पुणे के अखबारों में इसका कवरेज जरूर मिलता. यह दिलचस्प है कि आरएसएस के पास स्रोत के नाम पर उस समय के अखबार या पत्रिकाएं भी नहीं हैं.

बाबा साहेब और आरएसएस के तथाकथित अंतर्संबंधों के बारे में तीसरा स्रोत आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालकों का लेखन भी हो सकता है. मैं तो उन्हें भी प्रमाण मानने के लिए तैयार हूं. लेकिन हेडगेवार या गोलवलकर के लेखन में भी उन चार बातों का जिक्र नहीं है, जिसका जिक्र करके आज आरएसएस के लोग भ्रम फैला रहे हैं.

चौथी सामग्री उस समय प्रकाशित आरएसएस की पत्रिकाएं भी हो सकती हैं. लेकिन आरएसएस की उपर्युक्त चारों बातों के लिए उन पत्रिकाओं में भी कोई प्रमाण नहीं है.

एक और बात, आज जो लोग आरएसएस और बाबा साहेब के बारे में भ्रम फैला रहे हैं वे न तो आरएसएस के शीर्ष नेता हैं और न ही प्रवक्ता. कल आरएसएस आसानी से कह सकता है कि वे तो निजी विचार थे और आरएसएस उनके विचारों से सहमत नहीं है.

आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने सिर्फ एक बार इस बारे में अपनी बात कही है. उनका कहना है कि बाबा साहेब 1939 में पुणे में संघ के प्रशिक्षण शिविर में गए थे और वहां दलित विषय पर उनके भाषण की व्यवस्था संघ के संस्थापक हेडगेवार ने की थी. सवाल उठता है कि बाबा साहेब का वह भाषण बाबा साहेब के भाषण और लेखों के संग्रह में क्यों नहीं है? सिर्फ वहीं क्यों, पुणे के तत्कालीन अखबारों में इसकी रिपोर्टिंग है तो उसे ही पेश किया जाए. ये भी नहीं है तो हेडगेवार की जीवनी या उनके लेखन से ही इसका प्रमाण प्रस्तुत किया जाए. जाहिर है कि ऐसा कोई प्रमाण कभी प्रस्तुत नहीं किया गया.

बाबा साहेब का हर अध्येता जानता है बाबा साहेब और आरएसएस दो परस्पर विरोधी विचार परंपराओं से आते हैं. 1936 में एनिहिलेशन ऑफ कास्ट भाषण में बाबा साहेब कहते हैं कि वे हिंदू धर्म छोड़ देंगे और इसके 20 साल बाद 1956 में वे हिंदू धर्म का त्याग कर देते हैं. इस दौरान हिंदू धर्म औऱ हिंदू राज को लेकर उनके विचारों की निरंतरता कहीं नहीं टूटती. हिंदू धर्म और उसकी समाज व्यवस्था के पक्ष में बाबा साहेब ने न कहीं कुछ लिखा है और न कुछ बोला है. ये बात मैं पूरी प्रामाणिकता से कह रहा हूं.

अपनी इस बात के पक्ष में मैं बाबा साहेब के लेखन से सैकड़ों प्रमाण दे सकता हूं और इसके लिए मुझे दत्तोपंत ठेंगड़ी की किताब जैसे सेकेंडरी सोर्स या आरएसएस की पत्रिका के 2019 के लेख जैसे अपुष्ट और अप्रामाणिक स्रोत का हवाला देने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

मिसाल के तौर पर, अगर मैं ये लिखूं कि बाबा साहेब ने कहा था कि ‘आदर्श हिंदू को एक चूहे की तरह अपने ही बिल में रहना चाहिए’ या कि हिंदू धर्म में सुधार करना है तो उसके धर्म ग्रंथों ‘वेदों और शास्त्रों में डायनामाइट लगा देना होगा’ को तो मैं इसके प्रमाण के तौर पर ठेंगड़ी जैसे किसी लेखक की किताब नहीं, भारत सरकार या कोलंबिया यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित बाबा साहेब के रचना समग्र का हवाला दूंगा और कहूंगा कि ये बात एनिहिलेशन ऑफ कास्ट के क्रमश: 6ठें और 22वें अध्याय में दर्ज है.

या अगर मैं ये कहूं बाबा साहेब हिंदू राज के विरोधी थे और उन्होंने कहा था कि ‘अगर हिंदू राष्ट्र बनता है तो ये इस देश के लिए बड़ी आपदा होगी. हिंदू चाहें जो भी कहें, हिंदूवाद स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का दुश्मन है. हिंदू राष्ट्र को हर कीमत पर रोकना होगा.’ तो इस बात के प्रमाण के तौर पर मैं 2019 में छपी किसी पत्रिका के लेख को नहीं, बल्कि फिर भारत सरकार द्वारा प्रकाशित बाबा साहेब के रचना समग्र को ही कोट करूंगा और कहूंगा कि ये बात बाबा साहेब ने अपनी किताब पाकिस्तान एंड पार्टिशन ऑफ इंडियामें कही थी.


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