गुरुवार, 4 मार्च 2010

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे...,किसान पर राजनीति गर्म

यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना छत्तीसगढ़ की रमन सरकार किसानों को लेकर चुनावी घोषणा पत्र में किए वादों को पूरा करने की बजाए केन्द्र में जाकर राजनीति नहीं करती। कांग्रेस और भाजपा के इस मिलीजुली कुश्ती से छत्तीसगढ़ के किसान हैरान है और वे भाजपा से वादा निभाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन की तैयारी में लग गए हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र जिसे वह संकल्प पत्र भी कहता है में किसानों को 270 रुपए प्रति क्विंटल बोनस और मुफ्त में बिजली देने की बात कही थी लेकिन चुनाव जीतकर सत्ता में आते ही भाजपा अपने इस संकल्प को टालने लगी तब छत्तीसगढ़ के किसानों ने आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया।
संयुक्त मोर्चा बनाकर आंदोलनरत किसानों को रोकने सरकार ने बहुत कोशिश की और जब पूरे प्रदेश में धरना और चक्काजाम कर रहे किसानों ने उग्र तेवर दिखाये तो सरकार ने 50 रुपए बोनस बढ़ा दी। इससे भी किसान जब नहीं माने और महाबंद का ऐलान किया तो इस महाबंद को असफल करने सरकार के नुमाईदों ने बेशर्मी पूर्वक आंदोलनकारियों को तोड़ने व व्यापारी जमात पर आंदोलन का विरोध करने दबाव बनाया।
सूत्रों की बात पर भरोसा करें तो सरकार ने आंदोलन को कमजोर करने भाजपा के लोगों का सहारा लिया और भाजपा किसान मोर्चा किसानों का साथ देने की बजाए अपने को आंदोलन से न केवल अलग कर लिया बल्कि यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि बंद की अपील वापस ली जा रही है ताकि भ्रम की स्थिति बन जाए।
वर्तमान राजनीति में सुचिता की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार का किसानों के प्रति यह रवैया आश्चर्यजनक है। जबकि किसान भाजपा को उसके वादों के अनुरूप कार्य करने की सिफारिश ही कर रहे हैं।
इधर किसान मोर्चा के नेता वीरेन्द्र पाण्डे, द्वारिका साहू, जागेश्वर प्रसाद, दिनदयाल वर्मा ने कहा कि किसान अब चुप बैठने वाला नहीं है। विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को घेरने राजधानी में 5 लाख किसान आ सकते है।
दूसरी तरफ इस मामले में कांग्रेस की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। बंद का समर्थन देने वाले कांग्रेसी बंद के दौरान कहीं नहीं दिखे। इसे लेकर भी कई तरह की चर्चा है। चर्चा तो रमन सिंह के केन्द्र में राजनीति करने को लेकर भी है और आम किसानों का कहना है कि पहले रमन सिंह अपने वादे निभाये फिर छत्तीसगढ़ के किसान दिल्ली जाने तैयार है।
बहरहाल किसान आक्रोशित है और सरकार ने उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं की तो इसका गंभीर परिणाम पड़ेगा ही विधानसभा सत्र भी सरकार को भारी पड़ सकता है।

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