गुरुवार, 4 मार्च 2010

अधिकारियों के इशारे पर होते हैं अवैध उत्खनन,मंत्री के नाम पर कमीशन

यह तो जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर खनिजों का अवैध उत्खनन नहीं होता। कभी कार्रवाई हुई तो खानापूर्ति के लिए की जाती है और अवैध उत्खनन करने वालों से विभागीय मंत्री तक के नाम पर कमीशन लेने की परंपरा है जबकि इन दिनों खनिज विभाग मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के पास है।
छत्तीसगढ़ में खनिजों का अकूत भंडार है और लीज पर खदानें दी जाती है। सभी खदानों का निर्धारित रकबा है लेकिन निर्धारित रकबों के अलावा भी उत्खनन का कार्य बड़े पैमाने पर चल रहा है। बताया जाता है कि अवैध उत्खनन तो सीधे अधिकारियों की जानकारी में होने लगा है। मंजीत सिंह ने बताया कि बगैर अधिकारियों की जानकारी के अवैध उत्खनन का काम हो ही नहीं सकता और इसके एवज में लाखों रुपया दिया जाता है।
एक अन्य लीज धारक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि अवैध उत्खनन के खिलाफ जो भी कार्रवाई होती है वह सब पूर्व निर्धारित और खानापूर्ति के लिए की जाती है। एक अन्य ठेकेदार ने बताया कि अकेले रायपुर जिले में हर साल दर्जनों मामले पकड़े जाते हैं और उन पर जुर्माना भी लगाया जाता है। नियमानुसार बार-बार पकड़ाये जाने वाले लीज धारकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन कड़ी कार्रवाई तो दूर जुर्माना तक ठीक से नहीं वसूला जाता।
बताया जाता है कि अकेले रायपुर शहर में आधा दर्जन लोग हैं जो बार-बार अवैध उत्खनन करते पकड़ा चुके हैं। इनमें से कई तो प्रभावशाली है और खनिज अधिकारी तक इनसे बात करने से घबराते है ऐसे लोगों की लीज रद्द की जा सकती है लेकिन अधिकारियों को गले तक पैसा खाने की आदत की वजह से सरकार को हर साल लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान केवल रायपुर जिले में हो रहा है।
बहरहाल जब रक्षक ही भक्षक बन जाए और विभागीय मंत्री अपने में मस्त हो तो प्रदेश की दुर्दशा स्वाभाविक है खनिज विभाग में इन दिनों यही सब हो रहा है अपने सीधे व सरल छवि के चक्कर में मुख्यमंत्री को फुरसत ही नहीं है कि वे अपने ही खनिज विभाग के अधिकारियों के कारनामों पर कार्रवाई करें। ऐसे में सरल और सीधे बने रहने के औचित्य पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है।

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