यह तो सीधे-सीधे लोगों की जेब में डाका डालने वाली बात है और जब यह डाका बैंक ही डालने लगे तो आम आदमी किस पर भरोसा करे। अब तो बैंक कर्मी एनओसी देने सौ रुपए ले ही रहे हैं। नोटों का बंडल गिनने भी पैसे वसूल रहे हैं। प्रति बंडल 15 रुपए की रसीद नहीं चाहिए तो इसके आधे में भी बंडल गिने जाते हैं।
राजधानी में चल रहे निजी बैंकों के इस ड्रामेबाजी से आम आदमी ही नहीं व्यापारी भी त्रस्त है लेकिन वे इसका दबी जुबान से विरोध भी कर रहे हैं। लेकिन बैंकों की हठधर्मिता के कारण वे खुलकर नहीं बोल पा रहे हैं।
निजी बैंकों की इस दादागिरी के संबंध में एक व्यापारी विजय जैन ने बताया कि यह तो हद है। उन्होंने बताया कि पीएनबी में प्रति बंडल गिनने के 15 रुपए लिए जाते हैं और इसका बकायदा रसीद भी दिया जाता है लेकिन यदि आपको रसीद नहीं लेना है तो आधी राशि में आपके रुपयों का बंडल गिन लिया जाएगा और यह राशि सीधे-सीधे बैंक कर्मियों की जेब में जाता है। श्री जैन ने इसकी शिकायत छत्तीसगढ चेम्बर से भी की है लेकिन चेम्बर भी अभी तक इस मामले में खामोश है।
बताया जाता है कि इस तरह का खेल कई अन्य निजी बैंकों में चल रहा है जिससे आम लोग या व्यापारी त्रस्त है। व्यापारी नेता कन्हैया अग्रवाल ने इसे सीधे-सीधे लोगों की जेब में डाका डालने वाला बताते हुए कहा कि यह उचित नहीं है और यदि बैंकों ने अपना रवैया नहीं सुधारा तो इसका जोरदार विरोध किया जाएगा।
दूसरी तरफ ऋण लेने वालों को अन्य बैकों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना पड़ता है लेकिन बैंक कर्मी बगैर रिश्वत लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं देते। लाखेनगर निवासी घनश्याम सोनकर ने कहा कि जिस बैंक से कोई लेना देना नहीं है वहां सिर्फ एनओसी के नाम पर सौ दौ सौ रुपए की उगाही से लोग त्रस्त है। राजधानी जैसी जगहों पर जहां दर्जनों बैंकों से एनओसी लेना पड़ता है हजारों रुपए बैंक कर्मियों के अवैध उगाही में चला जाता है। एक तो ऋण लेने वाले बेरोजगार युवकों को बैंकों का चक्कर लगाना वैसे ही भारी पड़ता है उपर से रिश्वत देना पड़े तो क्या हाल होता होगा। अंदाजा लगाया जा सकता है।
बहरहाल बैंक कर्मियों की इस अवैध उगाही से लोग त्रस्त है खासकर व्यापारी वर्गों में भारी नाराजगी है। लेकिन व्यापारियों की संस्था चेम्बर ऑफ कामर्स की चुप्पी आश्चर्यजनक है और इसे लेकर कई तरह की चर्चा है।
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