शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

शराब से सराबोर सरकार

कभी एक जमाना था जब छत्तीसगढ धान का कटोरा कहलाता था लेकिन मध्यप्रदेश के तत्कालीन सरकारों ने ऐसी लूट मचाई कि छत्तीसगढ़ राय की मांग उठने लगी और मांग पूरी हुई तो सरकार ने धान के इस कटोरे को दारू से लबरेज कर दिया।
नई आबकारी नीति में सरकार ने दारू ठेकेदारों को इतना प्रश्रय दिया है कि वे समनान्तर सरकार चलाने लगे हैं। प्रदेश के गृहमंत्री ननकीराम कंवर के अनुसार तो पुलिस वाले उनकी बजाय दारू वालों की बात मानते हैं। यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। दारु ठेकेदारों द्वारा खुले आम कानून का उल्लंघन किया जा रहा है और प्रशासन शिकायतों के बाद भी कार्रवाई नहीं कर रही है। जब धार्मिक स्थलों व शैक्षणिक संस्थानों के नजदीक दारू दुकान बंद नहीं कराई जा सकती तब भला सरकार ऐसे नियम बनाती ही क्यों है।
छत्तीसगढ़ के राजधानी में ही नियमाें का उल्लंघन करने वाली ऐसी दर्जन दुकानों को हटाने की मांग नागरिक कर रहे हैं। दुकानें तो हटाई नहीं जा रही है उल्टा शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे नागरिकों को ही पुलिस द्वारा परेशान किया जा रहा है। विवेकानंद आश्रम से लेकर तेलीबांधा तक जीई रोड में ही धार्मिक स्थलों और स्कूलों के पास दारु दुकान है और इसके विरोध में यहां के लोग सालों से आंदोलन करते आ रहे हैं। दारु ठेकेदारों की मनमानी और गुण्डागर्दी की कहानी तो ग्रामीण क्षेत्रों में सारी इंतेहा पार कर जाती है हालत यह है कि दारु ठेकेदार ही गांव-गांव में अवैध शराब बिकवाते हैं।
दारु दुकानवालों के अंधेरगर्दी का आलम यह है कि कोई उनसे दारु खरीदने पर बिल नहीं मांग सकता। नियमानुसार जिस तरह से दूसरे सामान खरीदने पर बिल दिया जाता है वैसा दारु दुकान में नहीं चलता। पिछले दिनों एक ग्राहक ने जीई रोड स्थित एक दारु दुकान से जब बोतल खरीदी और बिल मांगा तो उस ग्राहक के साथ गाली गलौज तक कर दी गई और ग्राहक ने जब थाने में इसकी शिकायत की तो उसे थाने से ही भगा दिया गया।
अंधेरगर्दी का आलम यहा है कि नेताओं द्वारा दारु ठेकेदारों को खुलेआम न केवल संरक्षण दिया जा रहा है। बल्कि पार्टनरशिप तक किया जा रहा है। वर्तमान सरकार के मुखिया के रिश्तेदार से लेकर तीन मंत्रियों पर दारु ठेकेदारों के साथ पार्टनरशिप की कहानी आम लोगों में जा सकती है। एक दारु ठेकेदार पर तो न केवल गुण्डागर्दी का आरोप है बल्कि इसके द्वारा सदर बाजार जैसे इलाके में ट्रस्ट की जमीन तक निगल रहा है और कलेक्टर ने इसे कैसे अनुमति दी यह भी जांच का विषय है।

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