छत्तीसगढ़ मेंराज्य सभा सीट को लेकर भीतर ही भीतर कांग्रेसियों में जबरदस्त सुगबुगाहट है और मोहसिना किदवई की तरह आनंद शर्मा या अन्य को थोपे जाने का दबी जुबान पर विरोध भी है लेकिन छत्तीसगढ़ की उपेक्षा के सवाल पर कांग्रेसी मौन है।
कभी केन्द्र में मंत्री देने वाला छत्तीसगढ़ प्रदेश पिछले दशक भर से केन्द्र सरकार की उपेक्षा का शिकार है तो इसकी वजह स्थानीय कांग्रेसियों की बुजदिली को बताया जा रहा है जो रायसभा की सीटों पर भी अपनी बात बेबाकी से नहीं रख पाते। दरअसल छत्तीसगढ क़ांग्रेस इन दिनों कुशल नेतृत्व की शून्यता से उबर नहीं पा रहा है। अजीत जोगी सरकार की पराजय के बाद से ही कांग्रेस में जबरदस्त बिखराव देखा जा रहा है। यह अलग बात है कि कांग्रेस में टूटन नहीं हुई है लेकिन कथित बड़े नेताओं की लड़ाई ने भाजपा को मनमाने तरीके से राज करने की छूट दे रखी है।
पिछली बार राज्य सभा में मोहसिना किदवई को छत्तीसगढ़ से भेजा गया तब भी इसका दबी जुबान से विरोध हुआ और इस बार तो आनंद शर्मा को भेजे जाने की खबर पर बड़े नेता चुप्पी साध रखी है। यह अलग बात है कि राज्य सभा के लिए किसी तरह का बंधन नहीं है लेकिन मोहसिना किदवई ने रायसभा में छत्तीसगढ क़े हितों की कितनी वकालत की है यह भी किसी से छिपा नहीं है। इसलिए इस बार थोपे जाने को लेकर दबी जुबान में विरोध करने वालों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन कथित बड़े नेता अब भी इस मामले में खामोश है।
छत्तीसगढ प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति मुख्यत: दो खेमों में बंट गई है एक खेमा अजीत जोगी का है जिनके पास विधायकों की फौज के अलावा जनसंपर्क भी है तो दूसरा खेमा कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा और जोगी विरोधियों का है। दोनों ही खेमों ने अभी तक रायसभा के लिए खुलकर पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन अजीत जोगी के पुत्र अमीत जोगी के पक्ष में एक गुट का सामने आने को थोपने की परिपाटी का विरोध के रुप में देखा जा रहा है।
कांग्रेस कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष धनेन्द्र साहू ने अपनी सक्रियता से जरूर कांग्रेस में उर्जा डालने की कोशिश की है लेकिन विधायकों के समर्थन का अभाव और पिछड़े वर्ग के नेता के रुप में प्रचारित कर उन्हें अभी से हाशिये में डालने की कोशिश शुरु हो गई है। ऐसे में मंत्री नहीं बनाने की वजह से उपेक्षा शिकार यहां के कांग्रेसी राज्य सभा में भी उपेक्षा की खबर को लेकर जहां हैरान है वहीं भाजपा एक बार फिर इसे मुद्दा बनाने में लग गया है।
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