छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में तमाम विपक्ष मंहगाई को लेकर हो हल्ला मचा रहे हैं केन्द्र सरकार ने पेट्रोल डीजल केरोसीन और घरेलू गैस से यह कहते हुए सब्सिडी हटा दी कि यह सरकार के लिए बोझ है और यूपीए को छोड़ तमाम राजनैतिक दल मंहगाई के खिलाफ ऐसे कूद पड़े हैं मानों वे मैदान ए जंग में उतर आए हैं।
मंहगाई लगातार बढ़ रही है अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब नारकीय जीवन जीने मजबूर हैं। ऐसे में राजनैतिक दल महंगाई को लेकर सजग हैं यह एक अच्छी बात है लेकिन सवाल यह है कि क्या मंहगाई बढ़ने की वजह सिर्फ पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि है। यदि सरकार के लिए सब्सिडी बोझ है तो फिर जनता के लिए टैक्स बोझ है तब सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों पर कोई टैक्स नहीं लेना चाहिए। देश में ऐसे कई राय हैं जहां यूपीए के विरोधी राजनैतिक दलों की सरकार है यदि यूपीए महंगाई के लिए दोषी है तब वे राय सरकार आम लोगों से पेट्रोलियम पदार्थ पर टैक्स क्यों ले रही है।
दरअसल इस देश में नेताओं और अधिकारियों ने पूंजीवादी व्यवस्था की गोद में बैठकर ऐसे निर्णय लेना शुरू किया है ताकि गरीब और मध्यम वर्ग अपनी पेट परिवार की चिंता में लगे रहे और एक कुलीन व धनाडय वर्ग मजा करता रहे। महंगाई बढ़ने के पीछे सिर्फ पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि दोषी नहीं है। महंगाई बढ़ने की वजह सरकार की पेंशन नीति है, सांसदों विधायकों के वेतन में किए जा रहे लगातार बढ़ोत्तरी है जिन पर सीधे जनता का हक है और अधोसंरचना के नाम पर जनता के पैसों को भ्रष्टाचार कर सीधे जेब में रखने की प्रवृत्ति हैं।
महंगाई किसके लिए है। यदि महंगाई की इतनी चिंता नेताओं को है तो जिन नेताओं के पास अथाह पैसे हैं वे सरकारी वेतन भत्ता व अन्य सुविधा लेना बंद क्यों नहीं करते। क्या इस देश में महंगाई पर चिंता व्यक्त करने वाली सोनिया गांधी हो या लालकृष्ण आडवानी हो इनका गुजारा क्या सरकारी वेतन व अन्य सुविधाओं पर निर्भर है तब इस देश की खातिर वे सरकारी वेतन भत्ते नहीं लेने की घोषणा कर आदर्श राजनीति व अपना देश सेवा को नए सिरे से परिभाषित क्यों नहीं करते। देश व उसकी जनता की सेवा के बदले वेतन लेने वालों को दरअसल महंगाई की नहीं स्वयं की राजनीति की चिंता है। देश में राहुल गांधी, नवीन जिंदल से लेकर ऐसे कई सांसद हैं जिन्हें आगे आकर अपना वेतन नहीं लेने की घोषणा करनी चाहिए तभी अंधेरगर्दी खत्म होगी।
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