इन दिनों शहर के प्रतिष्ठित अखबारों के कर्मचारियों में कालम राईटर बनने की होड़ मची हुई है। ऐसा ही एक कर्मचारी इन दिनों कालम लिखने लगे हैं। सूर्या का वॉट लगाकर हकीकत का चोला पहनने वाले की हकीकत अब राजधानी में भी चर्चा का सबब बनने लगी है। गबन तो नाम के अनुरूप ही सब कर रहे थे लेकिन धमकाकर पैसा वसूलने और विज्ञापन छपवाने मजबूर करने की कहानी को अब तक इसके मालिकों ने क्यों नहीं सुनी। यह तो वही जाने। लेकिन यह चर्चा जोरों पर है कि दूध देने वाली गाय की लात भी अच्छी लगती है। इस बीच इसके द्वारा रायपुर संस्करण को ठेका में लिए जाने का दावा है हकीकत तो मालिक ही जाने।
फिर रिपोर्टर फायदे में फोटोग्राफरों में असंतोष
सलीम अशरफी ने वक्फ बोर्ड का चेयरमेन बनाते ही ख़ुशी मनाई और कवरेज के लिए पहुंचे मिडिया कर्मियों को पांच-पांच सौ दिए फोटोग्राफर खुश थे किचलो कोई तो है जो दोनों को सामान समझता है लेकिन प्रेस जाते ही उनकी हवा निकल गई क्योकि रिपोर्टरों को विज्ञापन भी दिया गया था जिसका कमीशन ही हजारो बनता है लेकिन बेचारे कर क्या सकते है .
पत्रिका के गिलास का
जवाब क्राकरी से
राजस्थान पत्रिका के आने की चर्चा से नवभारत की बाल्टी तो सभी जानते हैं लेकिन नेशनल लुक भी अपने अस्तित्व को बचाने छटपटाना शुरु कर दिया है। दरअसल पत्रिका के द्वारा कांच का गिलास गिफ्ट करना कई को अपने अस्तित्व पर हमला नजर आने लगा है। नेशनल लुक भी अपना प्रसार बढ़ाने बाल्टी के अलावा क्रॉकरी सेट का लालच देने लगा है।
प्रदीप की वापसी तो
कई हुई इधर-उधर
फोटोग्राफी में नाम कमा चुके प्रदीप डडसेना की लम्बे समय बाद हरिभूमि में वापसी हो गई है इतने दिनों तक प्रदीप जी क्या कर रहे थे उन्हीं से लोग पूछ ले तो बेहतर होगा। इधर पत्रिका की आमद से पत्रकारों का भाव बढ़ गया है और भाव तभी बढ़ेगा जब वे इधर से उधर जाएंगे। ऐसे ही वरुण झा हरिभूमि से भास्कर चले गए तो सोनू पाण्डे ने इसे बैलेंस कर दिया। तो शशांक खरे को भास्कर रास आने लगा है।
और अंत में....
रजबंधा मैदान में सरकारी जमीन पर बनाए भवन में समवेत शिखर शिफ्ट हो रहा है मशीन भी लग गई है अब वे उस इंजीनियर को कोस रहे हैं जिन्होंने मशीन रुम तो बना दिया लेकिन कागज का रोल मशीन तक पहुंचाने में दिक्कत हो रही है और जब तक रोल नहीं पहुंचेगा अखबार कैसे छपेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें