चोर-चोर मौसेरे भाई...
आईएएस अधिकारी बाबूलाल अग्रवाल की बहाली की सुर्खियां अभी शांत भी नहीं हो पाई है कि मालिक मकबूजा कांड के आरोपी नारायण सिंह को पदोन्नति देने पूरा रमन सरकार आमदा है। क्या छत्तीसगढ़ भ्रष्ट अधिकारियों की शरण स्थली है?
छत्तीसगढ़ में अफसरों का शासन है या डॉ. रमन सिंह का। यह सवाल अब गली मोहल्ले में गूंजने लगा है। आयकर विभाग के छापे के बाद जिस आनन फानन में बाबूलाल अग्रवाल को सरकार ने बहाल किया था। उसके चर्चे अभी थमें ही नहीं है कि इन दिनों एक और आईएएस अफसर नारायण सिंह चर्चा में है।
इस बार चर्चा की वजह नारायण सिंह को पदोन्नति देने की है। यह वही नारायण सिंह है जिन पर बस्तर में कलेक्टर-कमिश्नर रहते गरीब आदिवासियों की कीमती लकडिय़ों को माफियाओं के साथ सांठ-गांठ करने का आरोप पाया गया था। तब इस चर्चित वन कटाई में नारायण सिंह की संलिप्तता के चलते उनके खिलाफ कार्रवाई भी हुई थी। 93-94 की इस चॢचत मालिक-मकबूजा कांड में नारायण सिंह पर तब सिर्फ तीन वेतनवृद्धि रोकने की कार्रवाई हुई थी।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि जून 2010 के बाद से रमन सरकार की ओर से नारायण सिंह को पदोन्नति देने लगातार पत्र व्यवहार किया जाने लगा और पिछले दिनों मुख्य सचिव पी.जाय ओम्मेन की विभागीय पदोन्नति समिति ने नारायण सिंह को पदोन्नति भी दे दी।
अब मामला मंत्रिमंडल के पास है और जिस तरह से सरकार अधिकारियों के हाथों खेल रही है उससे आश्चर्य नहीं कि रमन मंत्रिमंडल भी नारायण सिंह को प्रमुख सचिव के पद पर पदोन्नति को हरी झंडी दे दे।
बहरहाल बाबूलाल अग्रवाल के बाद नारायण सिंह इन दिनों चर्चा में है और आम लोगों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया है। ऐसे में सरकार को इस पर फैसला लेना भारी पड़ सकता है।
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