भाजपा के लिए मुसीबत बनी, चावल, दारु और भ्रष्टाचार
1 अक्टूबर को मतदान 4 को गणना
भटगांव उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रही खंदक की लड़ाई अंतिम चरण पर पहुंच गई है। कांग्रेस ने जहां जबरदस्त एकता का परिचय दिया है तो भाजपा अभी तक आम लोगों को विकास के मायने समझाने में ही उलझी हुई है जबकि चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग और गांव-गांव में बिक रहे शराब के अलावा सड़क और स्कूलों की दुर्दशा के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी यहां प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा है।
वैसे तो भटगांव उपचुनाव के परिणाम को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही संशय की स्थिति में है। वैशालीनगर विस चुनाव के साथ रायपुर बिलासपुर और राजनांदगांव नगर निगम चुनाव में बुरी तरह पीट चुकी भाजपा के लिए इस सीट को जीतना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके परिणाम डॉ. रमन सिंह के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है। आदिवासियों की बड़ी तादात के अलावा राज परिवार के प्रभाव ने सत्ता के प्रकरण को यहां जिस तरह से नेस्ताबूत किया है उससे भाजपाई खेमें में हड़कम्प मचा हुआ है। कहा जाता है कि बृजमोहन अग्रवाल का पिछले दिनों प्रचार कार्य छोड़कर बीच में रायपुर आना और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से मुलाकात करने की वजह बताती है कि भटगांव में जो कुछ चल रहा है वह भाजपा के हित में नहीं है।
वैसे भी भाजपा ने शिवप्रताप सिंह की पार्टी में वापसी मजबूरी में कराया है लेकिन चुनाव लड़ने वाले उसके बेटे की स्थिति स्पष्ट नहीं है ऐसे में आदिवासी वोट को लेकर संशय कायम है। दूसरी तरफ सरकार के चावल योजना से मध्यम वर्ग पूरी तरह त्रस्त है क्याेंकि इस योजना से मजदूरों की किल्लत भुगतना पड़ रहा है ऐसे में मध्यव वर्ग का भाजपा को कितना साथ मिलेगा कहना मुश्किल है। जबकि रोजगार गारंटी योजना के मजदूरों को महिनों से भुगतान नहीं होने का मामला भी तूल पकड़ता जा रहा है। इधर गांव-गांव में बिक रहे अवैध शराब से महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश देखा जा रहा है जबकि बदतर सड़कों के अलावा बदहाल स्कूलों पर पीडब्ल्यूडी व शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को जवाब देते नहीं बन रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस में जबरदस्त एकता दिखाई देने लगा है हालांकि कांग्रेसियों ने सत्ता का दुरुपयोग का आरोप लगाकर भाजपा को बांधने की कोशिश भी की है ऐसे में यदि सत्ता विरोधी मत का प्रयोग अधिकाधिक हुआ तो कांग्रेसी एक बार फिर खुश हो सकते हैं।
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