शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए अंधे-बहरे की तलाश...

 पहले ही भाजपा के आगे अपनी गत पिटवा चुकी छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस को ऐसे अध्यक्ष की तलाश है जो यश बास की भूमिका बखूबी निभाता हो। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस बार भी अध्यक्ष चयन में मोतीलाल वोरा की चलेगी और उन्हें अंधे-बहरे अध्यक्ष ही चाहिए।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है। कायदे से यहां वीसी शुक्ल और अजीत जोगी को ही दमदार नेता माना जाता है लेकिन इन दोनों से सर्वाधिक खतरा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा को है इसलिए वे ऐसे अध्यक्ष चाहते हैं जो न केवल उनकी बात सुने बल्कि उनके राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर प्रहार न करें। यही वजह है कि कांग्रेस की हालत छत्तीसगढ़ में दयनीय हो गई है। नेता प्रतिपक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष के मनोनयन में अब तक जो मनमानी हुई है और वीसी-जोगी की उपेक्षा की गई है उसका परिणाम है कि कांग्रेस के भाजपा के हाथों बिक जाने की चर्चा है। संगठन में वे लोग अब तक हावी रहे हैं जिनका न तो कोई जनाधार है और न ही जिनमें भाजपा के खिलाफ आक्रमण करने की औकात ही रही है।
इधर छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर एक बार फिर कवायद शुरु हो गई है। कहा जा रहा है कि वोरा गुट जहां वर्तमान अध्यक्ष धनेन्द्र साहू को ही अध्यक्ष बनाने के फेर में है वहीं वीसी ने अपने को किनारा कर दिया है। इधर आम कांग्रेसियों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को कोई दमदारी से चला सकता है तो उनमें वीसी शुक्ल और अजीत जोगी ही है यदि इन दोनों से परहेज हो तो अन्य नामों में पवन दीवान, सत्यनारायण शर्मा और मोहम्मद अकबर के नाम है जिनके आगे भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। लेकिन इन सभी नामों के साथ सर्वाधिक दिक्कत मोतीलाल वोरा को है जो केन्द्र में मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं।
इधर कांग्रेस में चल रहे अध्यक्ष चयन को लेकर यह चर्चा भी जोरों पर है कि प्रदेश के बड़े नेता नहीं चाहते कि उनके अलावा किसी दमदार को नेतृत्व सौंपा जाए इसलिए ऐसे नाम की खोज हो रही है जो अंधे-बहरे या लाचार की श्रेणी में गिने जाते हो या नाम का अध्यक्ष रहे। पिछले सालों से जिस तरह से कांग्रेस की राजनीति रही है वह शर्मनाक मानी जा रही है। भाजपा सरकार से सेटिंग और दलाली तक के आरोप लगे हैं ऐसे में नया अध्यक्ष का चयन ही कांग्रेस की दिशा तय करेगा अन्यथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति सुधरने की उम्मीद कम ही है।

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