अंधेर से उजाले की ओर चलो। इस वाक्य का साफ शब्दों में यही अर्थ है। पर आम आदमी के लिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कैसे अंधेर से उजाले की ओर चला जा सकता है। अंधेरा घना है और सब तरफ अपराध बड़े हैं। आम आदमी भी स्वार्थी हो गया है। मुंह देखी बात करने वालों की जमात बढ़ने लगी है इसलिए अपराध बढ़े हैं। अंधेरगर्दी बढ़ा है और भगवान के घर देर है अंधेर नहीं का जुमला भी थोथा साबित होने लगा है।
छत्तीसगढ राय की कल्पना या सपना देखने वालों ने कभी कल्पना नहीं की होगी कि राय बनते ही लुटेरों की जमात सामने आ जाएगी और पूरे देश में अपनी करतूतों का ऐसा डंका बजाएंगे कि छत्तीसगढ़ महतारी को भी शर्म आ जाए। सरकारी अंधेरगर्दी की असली वजह उन लोगों की चुप्पी है जो अपने लिए जी रहे हैं। या उन लोगों की वजह से अंधेरगर्दी बढ़ी है जो समाज का हित तो चाहते हुए गरीबों को खाना, दवाई, कपड़ा देते नहीं थकते लेकिन गलत बातों का विरोध करने से डरते हैं।
जब किसी चीज का विरोध ही नहीं होगा तो कोई गलत काम करने से कैसे रुख सकता है। छत्तीसगढ़ में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनका समाज में अपनी पहचान है और लोग जिनकी बातों को गंभीरता से लेते भी हैं लेकिन ये लोग भी वृक्षारोपण और दान-धर्म पर यादा भरोसा करते है। विरोध करने से डरते हैं और यही से अंधेरा अंधेरगर्दी का शक्ल अख्तियार करता है। क्या सरकारी जमीनों को बंदरबांट वह भी अपने लोगों में यह अंधेरगर्दी नहीं है फिर इसका विरोध कोई क्यों नहीं करता क्योंकि जिन भाजपा के दिग्गजों को ये जमीन दी गई है वे नाराज हो जाएंगे। नदियों का पानी बेच देना क्या अंधेरगर्दी नहीं है या फिर एक ही सड़क को हर साल बार-बार बनाना अंधेरगर्दी नहीं है।
सरकार का ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां मंत्रियों और अधिकारियों की हरामखोरी नहीं हो रही है। फिर भी लोग खामोश है। दीपावली का मतलब सिर्फ दीप या रोशनी करके अंधेरे को दूर करना नहीं है। यह तो प्रतीक है राम के अयोध्या लौटने पर संभावित राम राय की कल्पना का। वास्तव में आम आदमी अपनी पेट के खातिर मरा जा रहा है। लेकिन सरकारी अंधेरगर्दी उसे ठीक से जीने नहीं दे रही है। क्या कोई सोच सकता है कि इस शहर ने पंचर वाले, नाका चोर, पंखा चोर को कहां से कहां बढ़ते देखा है या फिर अपनी शादी के लिए फर्जी एजेंसी का सहारा लेने वाले कहां पहुंच गए। सिर्फ मेहनत से तो दो-चार सौ करोड़ रुपए नहीं कमाए जा सकते। कम से कम इन लोगों ने कैसे कमाया है कोई भी बता देगा। दलाली से लेकर चोरी तक में डूबे इन लोगों के अचानक करोड़पति बनने की कहानी जितनी विभत्स है उससे कहीं अधिक विभत्स उन लोगों की करतूतें हैं जो गलत कार्यों पर प्रहार नहीं करते क्योंकि विष बेल को नहीं रोका गया तो वह आने वाली पीढ़ी को डस लेगा जिसके जिम्मेदार आप हम सब होंगे।
अंधेरे से रोशनी की ओर चलने का मतलब सिर्फ दीप जलाना नहीं है। अंधेरे से रोशनी की ओर चलने का मतलब न तो गरीबों को दवा, खाना या उपहार देना है। अंधेरे से रोशनी की ओर चलने का मतलब सिर्फ और सिर्फ अंधेरे पर प्रहार करना है और इसके लिए हमें स्वयं रोशनी बननी होगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें