इसे सरकार की बेबसी कहें या बेईमानों की ताकत। आम लोगों ने आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के कारनामों को अखबारों में खूब पढ़ा सुना है। वैसे भी सरकार पर आईएएस व आईपीएस भारी होते हैं।
राजस्व मंडल के सदस्य आईएएस बाबूलाल अग्रवाल तो सुर्खियों में तभी से थे जब वे स्वास्थ्य सचिव थे। स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर वे कटघरे में रहे हैं लेकिन उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत न तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने दिखाई और न ही स्वास्थ्य विभाग के कारनामों पर टिप्पणी करने वाले लोग ही सामने आए। आईएएस बाबूलाल अग्रवाल तब छपने लगे जब आयकर विभाग ने छापे की कार्रवाई की छापे में अनुपातहीन संपत्ति का खुलासा हुआ और कांग्रेस सहित आम लोगों ने जब हल्ला मचाना शुरु किया तब कहीं सरकार जागी और उन्हें निलंबित किया गया। छापे में क्या कुछ मिला कहने की जरूरत नहीं है। गांव के गांव का पेन कार्ड से लेकर बैंक खाता जैसे गंभीर मामले सामने आए। लोग चिखते रहे लेकिन इतने बड़े चार सौ बीसी कांड में सरकार ने अपनी तरफ से रिपोर्ट लिखाने की जरुरत नहीं समझी। पैसा और पहुंच किस तरह सर चढक़र बोलता है यह आईएएस बाबूलाल अग्रवाल प्रकरण से आसानी से समझा जा सकता है।
बात सिर्फ निलंबित कर देने की नहीं है सरकार ने चालान पुटप यानी 90 दिन का किस बेसब्री से इंतजार किया यह भी देखने में आया। 90 दिन होते ही सरकार की बेसब्री सामने आ गई और बिना एक पल गंवाये आईएएस बाबूलाल अग्रवाल को राजस्व मंडल का सदस्य बना दिया गया। राजस्व मंडल को एक तरह से न्यायालय ही माना जाता है और न्यायालय का मतलब न्याय मंदिर होता है और ऐसी जगह में आईएएस बाबूलाल अग्रवाल का बैठना कितना उचित है यह आम लोग भी समझते हैं। सरकार किसी की भी हो पैसा और पहुंच वालों के अपने मजे हैं। यह कुछ सजा बन सके इसी उम्मीद में...।
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सिरतोन गोठियाय हस जी.
जवाब देंहटाएंसरकार की पारदर्शिता को नमन.
जवाब देंहटाएंसबको पता ज़रूर होगा कि यह क्यों किया गया है !