शुक्रवार, 23 मार्च 2012

प्रदर्शन में असामाजिक तत्व


छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकी राम कंवर का कहना है कि आदिवासी समाज के प्रदर्शन में असामाजिक तत्व घुस आये थे इसलिए आंदोलन हिंसक हो गया। ऐसा नहीं कि किसी प्रदर्शन या आंदोलन के हिंसक हो जान पर असामाजिक तत्व के शामिल होने की बात कहने वाले के इकलौते सत्ताधारी नेता है। इससे पहले जब भी आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठियां लहराई है सत्ता पक्ष के लोग इसी जुमले का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ एक और जुमला प्रचलित है विरोधियों द्वारा भड़काना!
राजनीति में आंदोलनों को कुचलने के बाद चाहे किसी की सरकार हो इस तरह से पुलिस व सरकार को बचाने की कोशिश हमेशा ही होते रही है। और यह सवाल इस जुमले में दब जाता है कि आखिर कोई आंदोलन हिंसा का रूप कब लेता है। ये बात सच है कि प्राय सभी आंदोलन में इस तरह के लोग होते हैं जो अपनी मांग तत्काल मंगवाने के  चक्कर में जोशीला भाषण देते हैं। लेकिन ऐसे लोगों  को असामाजिक तत्व या विरोधियों की साजिश करार देने से काम नहीं चलेगा।
जिस तरह से सरकारें लूट खसोट में लगी है नेता से लेकर अधिकारियों में गलत ढंग से पैसा कमाने की भूख बढ़ी है यह उसी का परिणाम है कि लोगों में गुस्सा गले तक भर गया है। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि कोई अपनी मागे पूरी कराने के लिए हिंसा का सहारा लें। हम किसी भी तरह के हिंसा के खिलाफ है और हिंसा के खिलाफ लिखते रहेंगे।
लेकिन जिस तरह से अधिकारी व नेता लगातार आम लोगों का हक छिनकर इस देश को लुटने में लगे हैं तब आम आदमी के पास इसके सिवाय क्या रास्ता है? गफलत करने वालों को सजा न मिलने और लूट के सिलसिले में आम आदमी का जीवन नाटकीय होता चला जाए तब आखिर कोई कितनी बर्दाश्त करेगा।
हम पहले ही यहां लिख चुके हैं कि सरकार में बैठे जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को राजधानी का मोह  त्याग कर संतुलित विकास पर ध्यान देना चाहिए।
एक तरह राजधानी में तमाम सुविधाओं के लिए कार्पोरेट सेक्टर से समझौते किये जाते हैं और दूसरी तरफ आम आदमी को पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के अभाव में गुजरना पड़ रहा है।
लगातार उपेक्षा और संघर्ष के बीच क्रोध को आखिर कोई कितने दिन दबा कर रख सकता है। सरकारी धनों व संसाधनों के दुरूपयोग पर आखिर कोई कितने दिन अपनी आंखे बंद करेगा। अब तो देश की राजधानी  से चौपाल तक भ्रष्टाचार के किस्से आय हो गये हैं जिन पर भरोसा किया जा रहा है वहीं लूट खसोट में लगे हैं। ऐसे में ईमानदारी से जीवन जीने वाले क्या करें. गरीबों के हक मारकर अपने लिए ऐशो आराम का इंतजाम क्या साजिश और हिंसा नहीं है। खुद गृहमंत्री ने विधानसभा में अपनी सरकार की करतूतों पर बेबाक बोल चुके हैं। मुख्यमंत्री के गृह जिले के कलेक्टर एसपी को वे खुद दलाल व निकम्मे का तमगा दे चुके हैं। शराब माफियाओं से 10 हजार में थाने बिकने की बात तो वे विधानसभा में स्वीकार कर चुके हैं। और अब टूजी के बाद कोयला का मामला क्या आज लोगों को उद्देलित नहीं करेगा तब यदि कुछ घटना हुई तब भी इससे साजिश या असामाजिक तत्वों की हरकत कही जायेगी।

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