शनिवार, 7 अप्रैल 2012

दाग अच्छे क्यों है...


कल तक एक सहज सुलभ और साफ सुधरे छवि के लिए पहचाने जाने वाले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को न केवल बिजली का झटका लगा है बल्कि उन पर कोयले की कालिख पूत गई है। और उनका नाम भी दागी नेताओं के फेहरिश्त से जुड़ गया है। लेकिन राजनीति इन सबको बहुत पीछे छोड़ चली है। जनता जानती है कि सभी पार्टी में इस तरह के लोग हैं और कोई दूध का धूला नहीं है।
डॉ. रमन सिंह पर उंगली उसी दिन से उठने लगी थी जब ओपन एक्सेस घोटाले से लेकर रतन जोत में घपलेबाजी सामने आई थी लेकिन भाजपा को जिस तरह से अपने इस योद्धा पर पहले भरोसा था वैसा आज भी है। डॉ. रमन सिंह पर तो तब भी उंगली उठाये गये थे जब उन्हें अपने पुत्र अभिषेक की शादी किसी राजा महाराजा की तर्ज पर किया था। लेकिन तब यह कहकर उन सवालों के मुंह में ताला जड़ दिया गया था कि इनमें होने वाले खर्च ड़ॉ. साहब स्वयं नहीं कर रहे है बल्कि उनके शुभचिंतक कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया पर ही जब उनके विभागों की कारगुजारी सामने आ रही है। कुर्सी में बने रहने अपने अध्यक्ष को खुश करने किसी भी हद तक जाने की बात सामने आ रही हो तब दूसरे मंत्रियों से कोई किस तरह उम्मीद कर सकता है। वनमंत्री विक्रम उसेंडी के भाई ने जिस तरह से जंगल काटने में कमी नहीं रखी। इस सरकार ने जिस तरह रोगदा बांध बेच दिया क्या यह किसी से छिपा है लेकिन राजनीति में अब न सुचिता का मतलब है और न ही चाल चेहरा और चरित्र ही मायने रखता है। छत्तीसगढ़ में अथाह पैसा है और इसका भरपूर दोहन स्वयं के फायदे के लिए जनप्रतिनिधि करने लगे है। जिस तरह से एक के बाद एक रमन सरकार भ्रष्टाचार में घिरते चली जा रही है। इसके बाद तो आने वाले दिनों की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना ही की जा सकती है।
ऐसा नहीं है कि दाग सिर्फ डॉ. रमन पर ही अच्छे लग रहे हैं। कांग्रेस में भी यही हाल है जब किसी प्रदेश का नेता प्रतिपक्ष सरकार का 14 वां मंत्री कहलाये तो इसका अर्थ समझा जा सकता है। कांग्रेस के पदाधिकारी मंत्रियों से महिना लेने लगे तो इसका सीधा सा अर्थ है कि वे भी सरकार के लूट के भागीदार हैं और वे  ऐसा कुछ नहीं करने वाले हैं जिससे आम जनता को राहत मिले।
चोर-चोर मौसेरे भाई  की तर्ज पर जिस तरह से जनप्रतिनिधियों ने अपने को अधिकारियों की गोद में बिठाकर उद्योगपतियों की दलाली करने लगे है और इस पर खबर नहीं छपना मीडिया पर भी उंगली उठाने वाला है। यह अलग बात है कि छत्तीसगढ़ की मीडिया आज भी उतनी करप्ट नहीं है और मुुद्दे को उठाने से परहेज नहीं करती है लेकिन जब दाग सभी पर लगने लगे तो जनता आखिर क्या करे?

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